आखिर इन देशों के अल्पसंख्यकों की चिंता कौन करेगा?

देश में नागरिकता कानून में बदलाव के बारे में तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं। किसी खास मकसद से विशेषकर मुस्लिमों को भडक़ाया जा रहा है मानो उन्हें इस कानून के तहत देश से निकाल दिया जाएगा या उनकी नागरिकता छीन ली जाएगी मगर सच्चाई तो ये है कि ऐसा कुछ भी इस कानून में नहीं है।

Update: 2019-12-19 14:22 GMT

नीलमणि लाल

लखनऊ: भारत ने नागरिकता देने के लिए अपने कानून में बदलाव किया है। इस बदलाव का फायदा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में रहे हिन्दुओं, ईसाईयों, सिखों, पारसियों और बौद्धों को ही मिलेगा। सिर्फ इन्हीं लोगों को भारत की नागरिकता में ‘प्रिविलेज और प्रायोरिटी’ देने की बहुत बड़ी वजह है। देश में नागरिकता कानून में बदलाव के बारे में तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं। किसी खास मकसद से विशेषकर मुस्लिमों को भडक़ाया जा रहा है मानो उन्हें इस कानून के तहत देश से निकाल दिया जाएगा या उनकी नागरिकता छीन ली जाएगी मगर सच्चाई तो ये है कि ऐसा कुछ भी इस कानून में नहीं है।

दरअसल, हिन्दुओं, ईसाईयों, सिखों, पारसियों और बौद्धों को भारत की नागरिकता में ‘प्रिविलेज और प्रायोरिटी’ देने की सबसे बड़ी और एकमात्र वजह है पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में इन धर्मों के लोगों पर हुए और हो रहे जुल्म व अत्याचार। इन देशों में रहने वाले हिन्दू प्रताडऩा के शिकार हुए। कई हिन्दू परिवारों का जबरन धर्मांतरण किया। इन मुल्कों में हिन्दू लड़कियों के अपहरण और उनके साथ रेप की घटनाएं आम हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान की जनसंख्या को धर्म की नजर से देखें तो पाएंगे कि यहां लगातार हिन्दुओं, ईसाईयों, सिखों, पारसियों और बौद्धों की तादाद घटती गई है।

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बांग्लादेश में सिर्फ 8.54 फीसदी हिन्दू बचे

बांग्लादेश की बात करें तो इस देश में 2011 की जनगणना के अनुसार 90.39 फीसदी लोग मुस्लिम हैं। दूसरे नंबर पर हिन्दू-8.54 फीसदी, फिर 0.60 फीसदी बौद्ध, 0.37 फीसदी ईसाई और 0.14 फीसदी अन्य धर्मों वाले हैं। देश में मुस्लिम जनसंख्या 14 करोड़ 60 लाख की है जिसमें 88 फीसदी बंगाली मुस्लिम और 2 फीसदी बिहारी व असमी मुस्लिम हैं। 1941 में यहां हिन्दू कुल जनसंख्या का करीब 28 फीसदी थे जो 1951 में घटकर 22.05 फीसदी रह गए।

जमीन-जायदाद पर कब्जा

जब ये पूर्वी पाकिस्तान था तब सरकार ने हिन्दुओं की संपत्ति को ‘दुश्मन संपत्ति’ करार देकर उसपर कब्जा कर लिया। आजादी के बाद बांग्लादेश सरकार ने विवादास्पद ‘वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट’ के हिन्दुओं की जमीन-जायदादें जब्त कर लीं। नतीजतन 60 फीसदी से ज्यादा हिन्दू भूमिहीन हो गए। सबसे बुरा हाल 1971 में बांग्लादेश की आजादी के युद्ध के समय हुआ। लाखों का नरसंहार हुआ और बड़ी तादाद में लोग भारत भागने को मजबूर हुए।हाल ये हो गया कि 1974 की जनगणना में यहां हिन्दू जनसंख्या 13.5 फीसदी रह गई। बांग्लादेश ब्यूरो ऑफ स्टैटिसटिक्स के अनुसार 2015 में यहां 1 करोड़ 70 लाख हिन्दू थे।

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30 साल में एक भी हिन्दू नहीं बचेगा

ढाका यूनीवर्सिटी के प्रोफेसर बरकत ने 2016 में अपनी एक किताब में लिखा कि बीते ४९ साल से जिस तरह हिन्दुओं का बांग्लादेश से पलायन हो रहा है उससे 30 साल बाद यहां एक भी हिन्दू नहीं बचेगा। प्रो. बरकत ने इस विषय पर तीस साल शोध किया है। उनके अनुसार 1964 से 2013 के बीच एक करोड़ 13 लाख हिन्दू जान बचाकर बांग्लादेश से पलायन कर गए। यानी हर रोज 632 लोगों ने पलायन किया। बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ 1992,2001, 2013 और 2014 में बड़े-बड़े दंगे हो चुके हैं। मंदिरों को तोड़ा गया, जमीनों-मकानों पर कब्जे हुए और हर तरह के अत्याचार किए गए।

पाकिस्तान में गैर मुस्लिमों पर कहर

पाकिस्तान में 96.28 फीसदी जनसंख्या मुस्लिम है। बाकी चार फीसदी में हिन्दू, ईसाई, सिख और अहमदिया आदि हैं। 1988 की जनगणना के अनुसार पाकिस्तान की जनसंख्या 21 करोड़ है जिसमें मात्र 21 लाख हिन्दू हैं। इनमें 3 लाख 32 हजार अनुसूचित जाति के हैं। 2017 में भी जनगणना हुई थी जिसके आंकड़े अभी तक जारी नहीं किए गए हैं। 1951 की जनगणना के अनुसार अविभाजित पाकिस्तान में गैर मुस्लिम जनसंख्या 14.20 फीसदी थी। पश्चिमी पाकिस्तान में 3.44 फीसदी तथा पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में 23.2 फीसदी। 1988 की जनगणना बताती है कि पाकिस्तान में तब हिन्दुओं की तादाद कुल जनसंख्या की 1.85 फीसदी रह गई थी। यहां सिंध प्रांत में ही हिन्दुओं की सबसे अधिक संख्या है।

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हर साल पांच हजार हिन्दू कर रहे पलायन

2014 में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के नेता डा. रमेश कुमार वांकवाणी ने नेशनल एसेम्बली में बताया था कि पाकिस्तान से हर साल पांच हजार हिन्दू भारत पलायन कर जाते हैं। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के अनुसार 2013 में एक हजार हिन्दू परिवार भागकर भारत चले गए।पाकिस्तान में धार्मिक आधार पर भेदभाव बहुत बड़ा और गंभीर मसला है। ईसाई, हिन्दू, अहमदिया आदि के साथ भेदभाव आम है। अल्पसंख्यकों के साथ सबसे बड़ा मुद्दा ईशनिंदा कानून का है जिसकी आड़ में काफी उत्पीडऩ होता है। अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं व लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन और उनसे शादी करने के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। 1989 से दीन मोहम्मद मिशन ने एक लाख से ज्यादा लोगों का धर्म परिवर्तन कराया है।

428 मंदिरों में सिर्फ 20 बचे

मंदिरों की बात करें तो ऑल इंडिया पाकिस्तान हिन्दू राइट्स मूवमेंट के एक सर्वे के अनुसार पाकिस्तान के 428 हिन्दू मंदिरों में से आज सिर्फ 20 बचे हुए हैं। अप्रैल २०१९ में इमरान खान सरकार ने 400 से अधिक मंदिरों के पुनरुद्धार का फैसला किया। इनमें से कई मंदिर अन्य काम में उपयोग किए जा रहे हैं।

जहां तक ईसाईयों की जहां तक बात है तो पाकिस्तान में 2015-16 में 76 ईसाईयों की हत्या कर दी गई। देश के 1329 गिरिजाघरों में से 600 पर इसी एक साल में हमले किए गए।

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अफगानिस्तान में सिर्फ तीन हजार हिन्दू-सिख

अफगानिस्तान कभी हिन्दू सभ्यता के प्राचीनतम केंद्रों में से एक था और यहां हिन्दुओं की बड़ी आबादी थी। दूसरी और सातवीं सदी में ये देश बौद्ध धर्म का भी केंद्र रहा। आज यहां अधिसंख्य आबादी मुस्लिमों की है। बहुत ही कम संख्या में सिख, हिन्दू या अन्य धर्मों के लोग बचे हैं। कभी इस देश में हिन्दुओं और सिखों की अच्छी खासी संख्या थी। सत्तर के दशक में अफगानिस्तान में करीब सात लाख हिन्दू और सिख थे जो 1992 में 2 लाख 20 हजार रह गए और अब मात्र 3 हजार के करीब ही रह गए हैं। ये भी काबुल, गजनी और नंगरहार प्रांतों तक सीमित हैं। खोस्त में सौ हिन्दू परिवारों में सब पलायन कर गए हैं। एक अनुमान के अनुसार अब अफगानिस्तान में गैर मुस्लिम मात्र 0.3 फीसदी ही बचे हैं जिनमें हिन्दू, सिख, बहाई और ईसाई शामिल हैं। अफगानिस्तान से हिन्दू व सिख मुख्यत: पश्चिमी देशों को पलायन कर गए। भारत की बात करें तो 1992 में करीब 25 हजार हिन्दू-सिख शरणार्थी यहां आए थे।

तालिबान शासन में हुए जुल्म

अफगानिस्तान के सिख मानवाधिकार कार्यकर्ता रवैल सिंह बताते हैं कि तालिबान शासन के दौरान अल्पसंख्यकों का सबसे बुरा हाल रहा। तालिबानी आदेश के तहत हिन्दुओं और सिखों को पीले रंग का बैज पहनना होता था ताकि उनकी पहचान हो सके। हिन्दू महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए इस्लामी हिजाब पहनना पड़ता था। उस दौरान हिन्दुओं व सिखों की जमीन-जायदाद छीन ली गईं, धार्मिक कार्यकलाप चोरी-छिपे करना पड़ता था। आज भी हालात बहुत बदले नहीं हैं। बामियान में तालिबान के बौद्ध प्रतिमाओं को तोडऩे की खबर अन्तरराष्ट्रीय मीडिया में खूब छाई थीं।

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जो यहूदी वो इजरायली

इजरायल का ‘लॉ ऑफ रिटर्न’ अपने आप में एक अनोखा कानून है। इस कानून के तहत दुनिया के हर एक यहूदी को इजरायल में रहने और इजरायली नागरिकता पाने का अधिकार प्राप्त है। ये कानून 1950 में बना था। इजरायल देश की स्थापना के बाद दुनिया भर से यहूदी इजरायल आकर बस गए। 1970 में ‘लॉ ऑफ रिटर्न’ में संशोधन किया गया और हर उस व्यक्ति को इसके दायरे में ले आया गया जिनके दादा-नानी में से कोई एक यहूदी हो। इसके अलावा यहूदी धर्म अपनाने वालों को भी यही अधिकार दे दिए गए।

इजरायली संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन ने ‘लॉ ऑफ रिटर्न’ के बारे में कहा था कि ये कानून किसी यहूदी को अधिकार नहीं देता है बल्कि ये अधिकार तो हर यहूदी को स्वत: प्राप्त है। कानून तो सिर्फ उस अधिकार की पुष्टिï करता है। इस कानून पर अरब देशों और फलस्तीनियों का सख्त विरोध रहा है।

राइट टू रिटर्न

राइट टू रिटर्न यानी वापसी का अधिकार दरअसल अंतरराष्ट्रीय कानून का एक सिद्धांत है जिसमें हर किसी को स्वेच्छा से अपने मूल देश लौटने या मूल नागरिकता को पुन: हासिल करने का अधिकार प्राप्त है। 1948 के यूनीवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यïूमन राइट्स, 1966 के सइंटरनेशनल कोवेनेंट ऑन सिविल एंड पोलीटिकल राइट्स और 1948 के जिनीवा कन्वेंशन में राइट टू रिटर्न समाहित है। शरणार्थी गुट अपने देश लौटने के लिए इसी अधिकार की बात करते हैं।

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नेहरू-लियाकत समझौता

भारत विभाजन के समय भीषण दंगों से लोग पीडि़त थे और इधर से उधर पलायन कर रहे थे। इसी पृष्ठभूमि में 1950 में दिल्ली में दोनों देशों के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और लियाकत अली खान ने एक समझौते पर दस्तखत किए थे। समझौते के तहत ये निश्चित किया गया कि दोनों देश अपने-अपने अल्पसंख्यकों का ध्यान रखेंगे। भारत ने तो उसका अनुसरण किया, लेकिन पाकिस्तान में ये समझौता धरा का धरा रह गया। वहां पर इसका पालन नहीं किया गया और हिन्दुओं पर जमकर जुल्म किए गए।

पाक बौखलाया, शरणार्थियों को नहीं लेगा वापस

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर मुद्दे पर पूरी दुनिया में मुंह की खाने वाले पाक पीएम इमरान खान इस मुद्दे को लेकर समर्थन पाने की कोशिश में जुटे हैं। उनका कहना है कि इस कानून के कारण लाखों मुस्लिमों को भारत छोडऩा पड़ेगा और यह इस प्रकार की शरणार्थी समस्या होगी जिसके आगे दुनिया की सारी समस्याएं छोटी लगेंगी।

जेनेवा में आयोजित ग्लोबल फॉरम ऑफ रेफ्यूजीमेंबोलतेहुएपाक पीएम ने कहा कि भारत के इस कदम के कारण पैदा होने वाले गंभीर शरणार्थी संकट के सामने दुनिया के अन्य संकट छोटे लगेंगे। उन्होंने कहा कि इस शरणार्थी संकट की वजह से दक्षिण एशिया के दो परमाणु संपन्न देशों के बीच संघर्ष भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान विवादित कश्मीर में भारत द्वारा लगाए गए कफ्र्यू के मद्देनजर भारत से आने वाले अधिक शरणार्थियों को स्थान नहीं देगा। पाक पीएम ने यह भी आरोप लगाया कि भारत कश्मीर की मुस्लिम बहुल जनसांख्यिकीकोबदलनेकीकोशिशकर रहाहै।

उन्होंने कहा कि कश्मीर में कफ्र्यूऔर नए नागरिकता कानून की वजह से लाखों मुस्लिम भारत से भाग सकते हैं। फिर ऐसी समस्या खड़ी होगी कि सारी समस्याएं बौनी हो जाएंगी। इमरान ने आरोप लगाया कि भारत के मुसलमानों की नागरिकता छीनने के लिए यह कानून बनाया गया है। भारत में मुस्लिमों के अधिकार छीने जा रहे हैं। लोग इस कानून के खिलाफ सडक़ों पर उतर आए हैं और भारत में दंगे हो रहे हैं।

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बांग्लादेश अपने लोगों को वापस लेने को तैयार

बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए.के.अब्दुल मोमिन ने कहा कि उनके देश ने भारत से आग्रह किया है कि अगर बांग्लादेशी नागरिक भारत में अवैध रूप से रहते पाए गए हैं तो उनकी सूची बांग्लादेश को दी जाए। हम ऐसे लोगों को वापस आने की इजाजत देंगे क्योंकि अपने देश में वापस आना उनका अधिकार है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर उनके नागरिकों के अलावा किसी और ने बांग्लादेश में घुसने की कोशिश की तो उसे वापस भेज दिया जाएगा।

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के सलाहकार गौहर रिजवी ने भी कहा कि अगर भारत में किसी भी बांग्लादेशी नागरिक के अवैध रूप से रहने का सबूत दिया जाता है तो उनका देश उसे वापस बुलाएगा। रिजवी ने कहा कि संशोधित नागरिकता कानून का मुद्दा भारत का आंतरिक मामला है। उन्होंने कहा कि हम भारत में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों को वापस बुलाएंगे, लेकिन भारत को इसका सबूत देना होगा। इसे कोई मुद्दा बनाने की कोई जरुरत नहीं है।

रिजवी ने कहा कि बांग्लादेश में मुस्लिम, हिंदू, ईसाई और बौद्ध शांतिपूर्वक एक साथ रहते हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमें आश्वस्त किया था कि बांग्लादेश के लिए चिंता की कोई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश ने अनेकवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक समाज बनने का उदाहरण पेश किया है। हम प्रतिबद्धता से कभी पीछे नहीं हटे हैं।

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