क्या सिद्धू बनना चाहते हैं कांग्रेस अध्यक्ष! या फिर चाहिए ये पद?
नाराज़ नवजोत सिंह सिद्धू अपने पोर्टफोलियो में बदलाव को डिमोशन के तौर पर देख रहे हैं। पिछले कई दिनों से वह इसी उम्मीद में दिल्ली में डेरा जमाए बैठे थे कि हाई कमान उनके हक में कोई फैसला ले।
नई दिल्ली: नाराज़ नवजोत सिंह सिद्धू अपने पोर्टफोलियो में बदलाव को डिमोशन के तौर पर देख रहे हैं। पिछले कई दिनों से वह इसी उम्मीद में दिल्ली में डेरा जमाए बैठे थे कि हाई कमान उनके हक में कोई फैसला ले। इस दौरान सिद्धू दो दफा कैबिनेट की बैठकों में भी गैरहाजिर रह चुके हैं। सिद्धू ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की।
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इसके अलावा वह प्रियंका गांधी से भी मुलाकात कर चुके हैं। उनकी राहुल या प्रियंका से क्या बातचीत हुई, इसकी जानकारी उन्हें है या फिर राहुल और प्रियंका को। हालांकि, कुछ चर्चाओं के मुताबिक नवजोत सिंह सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह कैबिनेट में लौटने के लिए कुछ शर्तें रखी हैं।
इनमें से एक उन्हें डिप्टी सीएम बनाए जाने की भी मांग थी, जिसे कहा जा रहा है कि रिजेक्ट कर दिया गया है। सिद्धू समर्थक यह भी कह रहे हैं कि सिद्धू अब अपना पुराना शहरी निकाय मंत्रालय वापस मांग रहे हैं या फिर नए विभाग के साथ-साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की मांग कर रहे हैं।
नवजोत सिंह सिद्धू से शहरी निकाय मंत्रालय छीनने के लिए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लोकसभा चुनाव में प्रदेश के शहरी इलाकों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का हवाला दिया था। इसके अलावा उन्होंने सिद्धू को ये संदेश भी देने की कोशिश की थी कि राहुल और प्रियंका गांधी के साथ उनकी करीबी उन्हें ज्यादा देर तक नहीं बचाए रख सकती।
ऐसा नहीं कि सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ खटास को दिल में दबाए रखा है। जब चंडीगढ़ में उनका मंत्रालय बदला जा रहा था तब वो दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह कह रहे थे कि उन्हें हलके में नहीं लिया जा सकता। उन्होंने कहा था, 'ये सामूहिक ज़िम्मेदारी है। मेरे विभाग को सरेआम चुनकर अलग किया जा रहा है। मुझे आप इस तरह हलके में नहीं ले सकते। मैं पंजाब की जनता के प्रति जवाबदेह हूं।”
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कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ सिद्धू की खींचतान लोकसभा चुनाव के दौरान अपने चरम पर पहुंच गई थी। पंजाब में वोटिंग के कुछ दिनों पहले सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू ने मुख्यमंत्री पर आरोप मढ़ दिया कि कैप्टन ने उनका अमृतसर से लोकसभा टिकट काटने के काम किया था। नवजोत सिंह सिद्धू तीन बार अमृतसर से सांसद रह चुके हैं। सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इन आरोपों को खारिज किया था और सिद्धू दम्पत्ति की टाइमिंग पर सवाल उठाए थे।
कैप्टन और सिद्धू के बीच खटास इतनी बढ़ गई थी कि नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब में दो चुनाव रैलियों को छोड़ कैम्पेनिंग तक नहीं की। वो सिर्फ बठिंडा और गुरदासपुर में दिखे थे वो भी प्रियंका गांधी के साथ। उस दौरान उन्होंने ज्यादा बालने से अपने वोकल कॉर्ड्स को नुकसान होने की बात भी कही थी।
बठिंडा में कांग्रेस उम्मीदवार अमरिंदर सिंह ‘राजा’ वडिंग के समर्थन मे रैली के दौरान सिद्धू ने कहा कि प्रदेश में ‘फ्रेंडली मैच’ खेला जा रहा है। साथ ही जनता से आग्रह किया कि वो उन लोगों को सबक सिखाए जो अब बेअदबी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाए हैं। इशारा कैप्टन अमरिंदर सिंह की पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखबीर बादल के साथ कथित मिली भगत की ओर था।
सिद्धू ने कहा था, “ठोक देओ ओना नूं जिनें बेअदबी कित्ती। जिनां दे 75:25 हिस्से, ओना नूं वी ठोक देओ”। (ठोक दो उनको जिन्होंने बेअदबी की, जिनकी 75:25 की हिस्सेदारी है उन्हें भी ठोक दो) “भज 75:25 वालेयां, भज बादलां भज। के सिद्धू औंदा ए, कुर्सी खाली कर” (भाग 75:25 वाले, भाग बादल भाग। कि सिद्धू आ रहा है, कुर्सी खाली कर)। इन बयानों में 75:25 का इशारा किसकी ओर था, ये साफ नहीं हो पाया, लेकिन सिद्धू के इस रवैये पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा था, “शायद वो महत्वकांक्षी है और मुख्यमंत्री बनना चाहता है।”
दिलचस्प बात यह है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे कद्दावर के साथ इस स्तर पर भिड़ने के बावजूद नवजोत सिंह कांग्रेस में डटे हुए हैं। कांग्रेस हाई कमान पूरे मुद्दे पर कुछ भी नहीं बोल रहा है और वैसे भी कांग्रेस के अंदर फिलहाल नेतृत्व का संकट चल रहा है क्योंकि राहुल गांधी ने अपना पद छोड़ने की पेशकश कर रखी है। ऐसे में सिद्धू के मसले पर कोई फैसला फिलहाल होता नहीं दिख रहा।
कयास लगाए जा रहे हैं नवजोत सिंह सिद्धू को संगठन में बड़ी ज़िम्मेदारी दी जा सकती है, शायद उन्हें महासचिव भी बना दिया जाए, लेकिन खबरें है कि सिद्धू ने पंजाब की राजनीति में ही बने रहने को प्राथमिकता दी है। सिद्धू को हाई कमान के इस रिश्ते को समझने के लिए कांग्रेस की जड़ों को खंगालने की ज़रूरत है।
कांग्रेस का इतिहास रहा है कि उसने प्रदेशों में सामानांतर नेतृत्व को बढ़ावा दिया है। ये रणनीति पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनाई थी और अब कांग्रेस, खासकर गांधी परिवार, के रोम-रोम में समा चुकी है। कांग्रेस आला कमान ने हमेशा ही प्रदेशों में एक पावर सेंटर या धड़ा खड़ा किया है जो मुख्यमंत्री को एकदम शक्तिशाली होने से रोकता रहा है। हर राज्य में, खासकर जहां कांग्रेस की सरकार रही है वहां, किसी एक ऐसे वफादार को मुख्यमंत्री के बिलकुल समानांतर खड़ा कर दिया जाता है जो उन्हें संगठन से बड़ा कद हासिल करने नहीं देता।
इस रणनीति के कई उदाहरण हैं। राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट है, मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया बनाम कमल नाथ चल रहा है, हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अशोक तंवर के धड़े हैं तो हिमाचल में वीरभद्र सिंह और सुखविंदर सिंह सुक्खू का छत्तीस का आंकड़ा रहा है। ये फेहरिस्त काफी लंबी है।
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पंजाब में स्थित कांग्रेस के मनमुताबिक नहीं रही है। मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ कैप्टन अमरिंदर सिंह पर वो लगाम नहीं कस सके हैं जो आलाकमान चाहता है। मुख्यमंत्री अपने हिसाब और मर्ज़ी से काम कर रहे हैं और झाखड़ उनके रोब को चुनौती नही दे पाए हैं। और अब मुख्यमंत्री ने सिद्धू का विभाग बदलकर पार्टी में अपनी ताकतवर छवि पर मुहर लगा दी है। पूर्व में कैप्टन अमरिंदर सिंह को पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल और प्रताप सिंह बाजवा को चुनौतियां ज़रूर दीं, लेकिन कैप्टन इन सबको पछाड़कर बहुत आगे बढ़ चुके हैं।
इधर, गुरदासपुर से लोकसभा चुनाव हारने के बाद सुनील जाखड़ ने भी प्रदेशाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि उनका इस्तीफा अभी आलाकमान ने कबूल नहीं किया है और मुख्यमंत्री सिंह, प्रदेश कांग्रेस प्रभारी आशा कुमारी और अन्य वरिष्ठ नेता केंद्रीय नेतृत्व पर जाखड़ का इस्तीफा नामंज़ूर करने का दबाव बना रहे हैं।
कैप्टन का इतना शक्तिशाली बन जाना, एक कमज़ोर पड़ चुकी कांग्रेस के हित में कतई नहीं है और उनका ये रवैया दूसरे राज्यों के नेताओं को ऐसा रुख अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने का सामर्थ्य रखता है। ये कांग्रेस के हित में कतई नहीं। विश्लेषक भी मानते है कि जब भी कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुना जाएगा, या राहुल ही बने रहेंगे, तो इनमें कोई अचरज नहीं होगा जब सिद्धू पंजाब सूबे के कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं।