डेटा प्रोटेक्शन बिल पर लोग नहीं एकमत, फिर सरकार इस सत्र संसद में करेगी पेश

आगामी सत्र में सरकार डेटा प्रोटेक्शन बिल को संसद से मंजूरी देकर नया कानून लाने को तैयार है। हर पक्ष से सुझाव मिलने का बाद कुछ को अमल किया है। इस बिल के प्रारुप को अगली कैबिनेट बैठक में मंजूरी मिल सकती है, जिसके बाद तुरंत ससंद में भी पेश किया जाएगा

Update:2019-11-15 22:31 IST

जयपुर: आगामी सत्र में सरकार डेटा प्रोटेक्शन बिल को संसद से मंजूरी देकर नया कानून लाने को तैयार है। हर पक्ष से सुझाव मिलने का बाद कुछ को अमल किया है। इस बिल के प्रारुप को अगली कैबिनेट बैठक में मंजूरी मिल सकती है, जिसके बाद तुरंत ससंद में भी पेश किया जाएगा।

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इस बार शीतकालीन सत्र 18 नवंबर से शुरू हो रहा है। इस बिल को संसद से मंजूरी मिलते ही सभी सोशल मीडिया को भारत से जुड़े यूजर्स का डेटा भारत में ही रखना होगा। सरकार का तर्क है कि ये कंपनियां देश के अंदर कानूनी प्रक्रिया से इसलिए बच जाती है क्योंकि इनका लाइसेंस देश के अंदर से नहीं लिया जाता है।

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सरकार ने डेटा प्रोटेक्शन से जुड़ी बहुत सारी बातें कई देशों से जुड़े कानूनों की जांच कर एक नया कानून बनाया गया है। इस बिल में यूरोप के डेटा प्रोटेक्शन कानून से कई इनपुट लिए गए हैं। इस ड्राफ्ट बिल में किन-किन परिस्थिति में आम लोगों से जुड़ी कौन-कौन सी सूचना और किस हद तक साझा की जा सकती है इस बारे में साफ-साफ गाइडलाइंस बनाए गए हैं। इस बिल पर लोगों का एकमत नहीं है।विरोधियों का कहना है कि अगर इसे मौजूदा रूप में पास किया गया तो इसका व्यापक रूप से विरोध होगा।

क्या है बिल में

भारत में बाहरी कंपनी का बिजनेस आने वाले दिनों में इसी पर निर्भर करेगा।क्या है इसमें...

* डेटा की सुरक्षा के लिए आधार एक्ट में संशोधन हो। यूजर की सहमति के बिना निजी डेटा की प्रोसेसिंग ना हो,यूजर को नुकसान होने पर जिम्मेदारी भी तय हो।

*डेटा देश से बाहर ले जाने के लिए कंपनी यूजर की सहमति ले। डेटा सुरक्षा के लिए आधार एक्ट में संशोधन हो लेकिन यह पिछली तारीख से लागू ना हो।

*डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी का गठन हो। इसके आदेशों पर सुनवाई के लिए सरकार ट्रिब्यूनल बनाए या मौजूदा ट्रिब्यूनल को अधिकार दे।

*नियम उल्लंघन पर पेनाल्टी का प्रावधान हो।

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इस बिल के कानून सरकारी और निजी कंपनियां दोनों इस कानून के दायरे में होंगी। कंपनियों को डेटा भारत में ही स्टोर करना पड़ेगा। कोई कंपनी अगर डेटा सुरक्षा कानून का उल्लंघन करती पाई जाती है तो उसे अपने कुल वैश्विक टर्नओवर का 2 % या 5 करोड़ रुपए, दोनों में जो अधिक हो, बतौर दंड भरना होगा।सार्वजनिक हित, कानून व्यवस्था, आपात परिस्थितियों में राज्य, यूजर से सहमति लिए बगैर उसके डाटा को प्रोसेस कर सकता है अन्यथा यूजर की सहमति लेनी होगा। डेटा आज किसी संपत्ति से कम नहीं इसलिए सरकार भी इसे गंभीरता से ले रही है लेकिन सवाल ये है कि क्या आपकी निजता को सरकार संभाल कर रख पायेगी और क्या इस्तेमाल जन कल्याण के लिए होगा?

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