नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली का खान मार्केट इलाका बंटवारे के समय पाकिस्तान से आए रिफ्यूजियों के लिए बसाया गया था लेकिन बरसों बाद भी राजनीति ने इसका पीछा नहीं छोड़ा है। आज तंग गलियों में सिमटा यह बाजार राजनीति में फिर सामने आ गया है। खान मार्केट तब चर्चा में आया जब हाल के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए ‘खान मार्केट गैंग’ शब्द का इस्तेमाल किया। दरअसल प्रधानमंत्री ने यह शब्द अंग्रेजी भाषी राजनीतिक उच्च वर्ग यानी एलीट क्लास पर निशाना साधने के लिए इस्तेमाल किया था। मोदी का यह कहना उस दौर की याद दिलाता है जब ब्रिटेन की लेबर पार्टी के नेतृत्व को ‘शैंपेन सोशलिस्ट’ कहा जाता था।
खान मार्केट के दुमंजिला कॉम्प्लेक्स के बीच बने बंगले और अपार्टमेंट विशेष तौर पर सांसदों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के लिए आरक्षित हैं। साथ ही इस इलाके में स्थित रेस्टोरेंटों में तरह तरह के विदेशी व्यंजन खूब मिलते हैं। रोजमर्रा का सामान भी अन्य बाजारों की तुलना में काफी महंगा है। मशहूर और नामचीन ब्रांड भी अब इस बाजार का रुख कर रहे हैं। राजनेता, वकील, वरिष्ठ अधिकारी और पत्रकारों के लिए खान मार्केट गप्पें मारने से लेकर नीतियां तय करने का अड्डा है।
रियल एस्टेट बाजार के मुताबिक खान मार्केट भारत के सबसी महंगी प्रॉपर्टियों में से एक है जबकि ये बाजार कोई खास व्यवस्थित नहीं है। बाजार का उबड़-खाबड़ फुटपाथ, खंभों पर लटकते केबल और संकरी सीढिय़ां और दरवाजे शायद लोगों को डरा कर रख दें। इंडियन एक्सप्रेस अखबार को दिए इंटरव्यू में मोदी ने कहा था, ‘मोदी की छवि खान मार्केट गैंग या लुटियंस दिल्ली ने नहीं, बल्कि 45 साल के उनके काम ने बनाई है। काम अच्छे हों या बुरे आप उसको नकार नहीं सकते।’ इंटरव्यू में मोदी ने खान मार्केट का जिक्र करीब छह बार किया। इस जिक्र के पीछे मोदी विपक्षी नेताओं, बुद्धिजीवियों और कम्युनिस्ट नेताओं पर निशाना साध रहे थे। यहां तक की बीजेपी की जीत के बाद कई मोदी समर्थक खान मार्केट जश्न मनाने भी पहुंचे। ट्विटर पर कहा गया कि इस जश्न से ज्यादा उदारवादियों को कुछ परेशान नहीं करेगा। बीजेपी के प्रवक्ता तजिंदर सिंह बग्गा कहते हैं, ‘खान मार्केट कुछ खास लोगों का इलाका नहीं रह सकता, अब यह हमारे लिए भी चहलकदमी का ठिकाना बनेगा।’
‘खान मार्केट गैंग’ शब्दावली सबसे पहले अरुण जेटली ने चलाई थी जब उन्होंने ढनाढ्य घरानों के युवा सांसदों द्वारा संद के लंच ब्रेक के दौरान खान मार्केट में जा कर खाने पीने का मजाकिया जिक्र किया था। वैसे मूल रूप से खान मार्केट गैंग में मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, मानवेन्द्र सिंह और सुप्रिया सुले शामिल थे। २०१४ के बाद सिर्फ सुप्रिया सुले इसमें रह गईं। बाद में कनिमोझी और के. कविता इसमें शामिल हो गईं।
ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडिवन लुटियंस नई दिल्ली को तैयार करने वाले वास्तुकार थे। लुटियंस ने जिस योजना की रूप-रेखा तैयार की थी उसमें खान मार्केट भी शामिल था। आजादी के पहले सुजान सिंह पार्क में ब्रिटिश सेना के जवान रहते थे। इनकी तादाद ज्यादा होने के कारण रोजमर्रा की जरूरतों का सामान उपलब्ध कराने वाली कुछ दुकानें भी यहां खुल गई थीं। इसलिए इसे लोग बैरक मार्केट ही कहते थे। बहरहाल आजादी के बाद भारत सरकार ने इस इलाके का नाम अब्दुल जब्बार खान के नाम पर रखा था। अब्दुल जब्बार स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय नेता और महात्मा गांधी के मित्र अब्दुल गफ्फार खान के भाई थे।
अब्दुल गफ्फार खान को फ्रंटियर गांधी भी कहा जाता था। खान मार्केट ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव मेहरा ने बताया कि अब्दुल जब्बार खान को यह सम्मान विभाजन के वक्त किए गए उनके कामों के लिए दिया जाता है। विभाजन के वक्त सांप्रदायिक तनाव के माहौल में अब्दुल जब्बार लाखों हिंदुओं को पाकिस्तान से सुरक्षित निकाल कर भारत लाए थे। बंटवारे के बाद पाकिस्तान से बड़ी संख्या में शरणार्थी दिल्ली आए थे। पुनर्वास मंत्रालय ने यहां शरणार्थियों को यह जगह अलॉट की थी। पहले 80 से 100 लोगों को कुल 156 दुकानें अलॉट की गई थीं। पाकिस्तान में जिसका ज्यादा नुकसान हुआ उसे यहां भी उसी आधार पर ज्यादा संपत्ति आवंटित की गई थी। बशर्ते नुकसान संबंधी कागजाज दिखाने पड़ते थे। डॉक्टर समेत कुछ पेशेवरों को एक से ज्यादा दुकान आवंटित की गई थीं। अब तो बहुत से दुकानदार यहां से छोड़ कर कहीं और शिफ्ट हो गए हैं।
खान मार्केट में बनी दुकानों का मालिकाना हक करीब 70 लोगों के पास है, जो दुकानों के ऊपर बने घरों में रहते हैं। सभी के परिवार पाकिस्तान छोड़ कर भारत आ गए थे। अधिकतर दुकानदार ये नहीं मानते कि मोदी का खान मार्केट बोलना उनके ऊपर कोई निशाना था। हालांकि वे ये जरूर कहते हैं कि मोदी का निशाना उन चंद लोगों पर था जो खान मार्केट में चाय-कॉफी पीने आते हैं और घंटों बैठकर राजनीतिक बहसें करते हैं। हालांकि अधिकतर दुकानदार इस बात पर जरूर सहमत हैं कि एक बीजेपी नेता की ओर से दिए गए नाम बदलने के प्रस्ताव ने अब बहुत बड़ी बहस का रूप ले लिया है। ट्रेडर एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव मेहरा कहते हैं कि इस जगह का एक समृद्ध इतिहास रहा है और दुकान मालिकों ने बाजार का नाम बनाने के लिए बहुत मेहनत की है। उन्होंने कहा कि नाम बदलने का एक आदेश सारी विरासत को धराशाई कर सकता है।
राहुल को बर्गर स्मृति को पास्ता है पसंद
एक दुकानदार बताते हैं कि राहुल गांधी खान मार्केट में स्मोक हाउस डेली में आते हैं। उन्हें यहां का बर्गर बहुत ही पसंद है। जब वो यहां आते हैं तो टेरेस पर बैठकर एक कप काफी के साथ बर्गर खाना पसंद करते हैं। वहीं स्मृति ईरानी भी अक्सर यहां आती हैं एवं पिज्जा एवं पास्ता खाना पसंद करती हैं। शीला दीक्षित और रेल मंत्री पीयूष गोयल भी अक्सर यहां दिख जाते हैं। राबर्ट वाड्रा भी यहां आते हैं। सलमान खान भी अपनी फिल्म ‘भारत’ की शूटिंग के दौरान खान मार्केट खाना खाने आए थे।
गांधी परिवार की पसंद
महेश दत्त शर्मा अपनी पुस्तक ‘सोनिया गांधी’ में लिखते हैं कि 1977 के चुनाव में पराजय के बाद इंदिरा जी अपने परिवार के साथ 12, विलिंगडन क्रिंसेट पर आकर रहने लगीं। यह घर प्रधानमंत्री आवास से अपेक्षाकृत छोटा था। सोनिया अपने बच्चों राहुल और प्रियंका की देखभाल खुद करती थीं। वे दोनों समय खाना भी स्वयं बनाती थीं। निकट के खान मार्केट में जाकर सोनिया स्वयं सब्जी व घर की जरूरत का सामान खरीदकर लाती थीं।