धनतेरस की पूजा: अकाल मृत्यु से मिलता है छुटकारा, यहां जाने पूरी डीटेल
धनतेरस पर मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और धातु की खरीदारी कर उसको भी मां लक्ष्मी के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, माना जाता है कि इससे धन का स्थाई वास हो जाता है। सभी हिंदू पर्वों से जुड़ी हुई कुछ मान्यताएं व पौराणिक कथाएं होती है। धनतेरस की भी पौराणिक कथाएं है।
लखनऊ। कार्तिक कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि को मनाये जाने वाले धनतेरस के त्यौहार में मां लक्ष्मी, मृत्यु के देवता यमराज, आयुर्वेद के प्रणेता भगवान धनवंतरि और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी और कुबेर की पूजा से उनकी कृपा मिलती है और धन-धान्य की कमी नहीं होती है। इस अवसर पर लोग सोना-चांदी व बर्तन यानी कोई न कोई धातु खरीद कर समृद्धि की कामना करते है। खरीदारी को शुभ और समृद्धि से जोड़कर देखा जाता है।
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धन और संपदा की देवी
हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी को धन और संपदा की देवी कहा गया है। मान्यता है कि जिस पर भी मां लक्ष्मी की कृपा हो जाती है वह सुखी व सम्पन्न हो जाता है।
धनतेरस पर मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और धातु की खरीदारी कर उसको भी मां लक्ष्मी के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, माना जाता है कि इससे धन का स्थाई वास हो जाता है। सभी हिंदू पर्वों से जुड़ी हुई कुछ मान्यताएं व पौराणिक कथाएं होती है। धनतेरस की भी पौराणिक कथाएं है।
धनतेरस की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु पृथ्वीलोक की ओर आ रहे थे। ऐसे में मां लक्ष्मी भी उनके साथ चलने की हठ करने लगी। जिस पर भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी से कहा कि वह उनके साथ चल सकती है लेकिन उन्हे भगवान का कहना मानना होगा। मां लक्ष्मी ने ऐसा ही करने की बात कही।
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किसान के खेत में सरसों के फूल
इसके बाद मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ वह भी पृथ्वीलोक पहुंच गई। इसके बाद भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी से एक स्थान पर रूकने के लिए कह कर दक्षिण दिशा की ओर चल पडे़। इसी समय मां लक्ष्मी के मन में जिज्ञासा हुई कि भगवान कहा और क्यों गए है और वह भी चुपचाप उनके पीछे चल पड़ी।
इस यात्रा में मां लक्ष्मी ने एक किसान के खेत में सरसों के फूल देखे तो वह उससे श्रंगार करने लगी और यात्रा के कारण उनका कंठ सूख रहा था तो गन्ने का रसपान किया। मां लक्ष्मी जब गन्ने का रसपान कर रही थी तो भगवान विष्णु ने उन्हे देख लिया और उनकी आज्ञा का पालन न करने से क्रोधित होकर मां लक्ष्मी को 12 वर्षों तक किसान की सेवा करने का श्राप दे दिया।
अब 12 वर्ष मां लक्ष्मी के वास से किसान बहुत धनी व सम्पन्न हो गया। 12 वर्ष व्यतीत होने पर भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी को वापस लेने आए तो किसान ने उन्हे वापस भेजने से मना कर दिया।
इस पर मां लक्ष्मी ने किसान से कहा कि कार्तिक मास के तेहरवें दिन जो भी अपने घर की साफ-सफाई करके, स्वच्छ वस्त्रों में घी का दीपक जलायेगा और धातु के कलश में धन आदि भर कर उनकी पूजा करेगा, उसके घर वह पूरे वर्ष रहेंगी। किसान ने ऐसा ही किया और वह आजीवन धनी व सम्पन्न बना रहा। इसके बाद से ही धनतेरस की पूजा का विधान हुआ।
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हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट
कार्तिक मास की त्रयोदशी को आयुर्वेद के प्रणेता भगवान धन्वंतरि की भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि अमृत मंथन के समय इसी दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था और वह अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।
आयुर्वेद में विश्वास रखने वाले तथा सभी वैध इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करते है। मान्यता है कि इससे जीवन में सुख समृद्धि के साथ ही मन शांति आती है और विधिवत पूजा करने से शरीर निरोग रहता है।
त्रयोदशी को ही हिंदू धर्म में मृत्यु के देवता यम की पूजा का भी विधान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन यमराज की पूजा करने व उनके लिए दीपदान करने से व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होती। त्रयोदशी को धन के देवता कुबेर की भी पूजा की जाती है।
मान्यता है कि धन की देवी मां लक्ष्मी चंचल होती है और कही भी ज्यादा देर तक नहीं रूकती, जबकि कुबेर देवता को स्थिर माना जाता है। ऐसे में कुबेर देवता की पूजा करने से धनतेरस के पर्व पर पूजा से प्रसन्न मां लक्ष्मी जी द्वारा दिए गये धन-संपदा को कुबेर देवता स्थाई बना देते हैं।
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