धारचूला टू लिपुलेख : इस सड़क से भड़का हुआ है चीन, अपना रहा ये पैंतरे

ऐसा माना जाता है कि चीन ने नेपाल को लिपुलेख या कालापानी को अपना क्षेत्र बताने के लिए उकसाया है। चीन का आधिकारिक रुख तो यही रहा है कि भारत और नेपाल अपना सीमा विवाद आपस में दोस्ताना बातचीत के जरिये सुलझा लें।

Update:2020-06-20 17:04 IST
lipulekh road

नई दिल्ली: भारत चीन विवाद में चीन की आक्रामक पैंतरेबाजी के पीछे पवित्र तीर्थ कैलाश मानसरोवर को जाने वाला रास्ता भी एक कारण है। कैलाश मानसरोवर की तीर्थ यात्रा में हर साल हजारों लोग भारत से जाते हैं। कैलाश मानसरोवर जाने के लिए एक रास्ता नेपाल से हो कर जाता है जबकि दूसरा रास्ता उत्तराखंड से जाता है। ये दोनों रास्ते चीन के कब्जे वाले तिब्बत तक जाते हैं।

नेपाल जाने वाला रास्ता लंबा है और इसके अलावा भारतीय तीर्थयात्रियों को चीन के अलावा नेपाल, यानी दो देशों को पार करना होता है। उत्तराखंड से चीन को जाने जाना वाला बहुत दुर्गम और पैदल जाने वाला ही था लेकिन अब भारत ने इस रास्ते को पक्के और मोटर जाने योग्य सड़क में तब्दील कर दिया है।

उत्तराखंड में धारचूला से आगे 17.60 फुट की ऊंचाई पर हिमालय पर्वतश्रंखला में लीपुलेख दर्रा है। ये दर्रा भारत, नेपाल और चीन के त्रिमुहाने पर स्थित है। लिपुलेख दर्रे के आगे तिब्बत में तकलकोट या पुरंग नामक ट्रेडिंग पॉइंट है जहां से प्राचीन काल से व्यापार होता आया है। पुरंग से होकर ही कैलाश मानसरोवर के लिए तीर्थयात्री जाते हैं।

चीन की परेशानी

भारत ने अब धारचूला से लिपुलेख तक की 80 किलोमीटर की बढ़िया सड़क बना दी है। सड़क का काम 17 अप्रैल को पूरा हुआ और 8 मई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसका लोकार्पण किया। इस सड़क के बनने से चीन बौखलाया हुआ है और उसने नेपाल को भी भारत के खिलाफ भड़काया है।

चीन का मानना है कि भारत – नेपाल – चीन के त्रिमुहाने पर भारत की निर्माण गतिविधियां चीन के लिए खतरनाक हैं। 80 किलोमीटर की सड़क बन जाने से भारत की सीधी पहुँच तिब्बत में पुरंग से हो कर गुजरने वाली कंक्रीट की हाईवे तक हो जाएगी।

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चीन ने पुरंग में सीमा सुरक्षा के लिहाज से सड़क बना रखी है। पुरंग में चीन एक हवाई अड्डा भी बना रहा है जो 2021 में तैयार हो जाएगा। इतनी तैयारियों के बावजूद चीन को लगता है कि भारत इस क्षेत्र में नेपाल की भौगोलिक स्थिति का फायदा उठा कर चीन को चुनौती दे सकता है।

इसके चलते ऐसा माना जाता है कि चीन ने नेपाल को लिपुलेख या कालापानी को अपना क्षेत्र बताने के लिए उकसाया है। चीन का आधिकारिक रुख तो यही रहा है कि भारत और नेपाल अपना सीमा विवाद आपस में दोस्ताना बातचीत के जरिये सुलझा लें।

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भले ही चीन इसे भारत – नेपाल का मसला कह रहा है लेकिन उसे लगता है कि नेपाल के जरिये ही चीन स्वयं की सीमाओं को सुरक्षित रख सकता है। इसीलिए चीन भले ही भारत-नेपाल के बीच सैन्य हस्तक्षेप न करे लेकिन वह किसी दूसरे तरीके से भारत पर दबाव डाल कर ये चेतावनी देना चाहता है कि वह नेपाल से दूर ही रहे।

1950 की मैत्री संधि

भारत और नेपाल के बीच 1950 में एक मैत्री संधि हुई थी जिसके बाद से दोनों देश दोस्ताना रिश्ते निभाते आए हैं। 1962 में चीन से युद्ध के कारण भारत ने लिपुलेख दर्रे को बंद कर दिया था और नेपाल को मजबूरन टिंकर दरी से होकर व्यापार करना पड़ा था।

उसके बाद 1997 में जब भारत और चीन ने लिपुलेख दर्रे को दोबारा खोल दिया तब नेपाल ने इसका काफी विरोध किया था। अब लिपुलेख तक सड़क बन जाने से भी नेपाल नाराज है जबकि भारत ने साफ कर दिया है ये सड़क कहीं भी नेपाल के क्षेत्र से हो कर नहीं गुजरती है।

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