इन चीलों का अपना स्वाभिमान है, ये पड़े हुए टुकड़े नहीं उठाते हैं
पूरे दुनिया में भारत ही इकलौता ऐसा देश है जहां पशु पक्षी को भी देवी देवताओं को दर्जा प्राप्त है। राजस्थान में तो एक ऐसा राजघराना है जहां चीलों को चमुंडा देवी का रूप माना जाता है। अगर आप सोचते हैं कि ये दर्जा चीलों को अनायास ही मिल गया तो ऐसा बिल्कुल नहीं है।
पूरे दुनिया में भारत ही इकलौता ऐसा देश है जहां पशु पक्षी को भी देवी देवताओं को दर्जा प्राप्त है। राजस्थान में तो एक ऐसा राजघराना है जहां चीलों को चमुंडा देवी का रूप माना जाता है। अगर आप सोचते हैं कि ये दर्जा चीलों को अनायास ही मिल गया तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसके पीछे इन चीलों के शौर्य की वो कहानी है जिस पर आज भी मेहरानगढ़ नाज करता है। तभी तो मेहरानगढ़ में दोपहर हुई नहीं कि आसमान में उड़ने वाले चीलों के लिए लंच बाक्स लेकर लतीफ कुरैशी किले पर हाजिर हो जाते हैं।
यह भी पढें.....‘फिल्म पीरियड’: आज अमेरिका से ऑस्कर अवार्ड लेकर पहुँची बेटियां, जोरदार स्वागत
लतीफ कुरैशी की माने तो 500 साल पहले से शुरू हुई यह परंपरा विना नागा किए आज तक चलती आ रही है। कुरैशी के पूर्वज भी यही काम करते थे। अब इस जिम्मेदारी को लतीफ पूरी शिददत सेे निभा रहे हैं। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा की नीव कैसे पड़ी इसके बारे में लतीफ का कहना है कि मेहरानगढ़ राजघराने की मान्यता है कि चीलें इस राजवशं की रक्षक हैं और जब तक ये यहां रहेंगी तब तक राजघराना और मेहरानगढ़ का किला भी रहेगा।
यह भी पढें......इसका हम करते हैं खुद को संवारने में इस्तेमाल, जिसका है धार्मिक भी महत्व
लतीफ का कहना है इन चीलों को खिलाने के लिए कि एक बार में पांच से छ: किलो मांस लग जाता है। लतीफ की शहर में मांस की दुकान है। वो अकेले ही इतने मांस का इंतजाम करते हैं।कभी कभी लोग दान में दे कर चले जाते हैं।
इन चीलों का अपना स्वाभिमान है ये पड़े हुए टुकड़े नहीं उठातीं है। इसलिए इन्हें उछाल कर ही इनका निवाला दिया जाता है।