Eid Mubarak: कुर्बानी का मतलब कुरान शरीफ में है खास, जरूरी नहीं है जीव हत्या
कुरान में बताया गया है कि जो लोग अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत हिस्सा समाज सेवा के लिए या जरूतमंद को दान में देते हैं उन्हें जानवर की कुर्बानी देने की जरूरत नहीं है। उनके द्वारा किया गया दान ही कुर्बानी के तौर पर अल्लाह कुबूल कर लेता है।
लखनऊ: ईद-उल-अजहा अर्थात बकरीद का त्योहार मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए बहुत विशेष होता हैं। इस दिन को कुर्बानी के लिए जाना जाता हैं। यह दिन यह संदेश देता है कि समाज की भलाई के लिए आपकी कितनी भी अजीज़ वस्तु ही क्यों न हो, उसे कुर्बान कर देना चाहिए। कुर्बानी का यह दिन त्याग की भावना जगाता है। जानते हैं कुरान शरीफ में कुर्बानी को लेकर क्या कहा गया हैं।
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कुरान की रोशनी में देखा जाए तो जो लोग हज करने जा रहे हैं, उन्हें कुर्बानी जरूर देनी चाहिए। साथ ही उन लोगों को भी कुर्बानी देनी चाहिए, जिनकी क्षमता है कुर्बानी देने की। हर किसी के लिए कुर्बानी देना अनिवार्य नहीं है।
यह है कुर्बानी का एक बड़ा नियम
इस्लामिक विषयों के जानकार ने बताया कि फुका में कुर्बानी का एक बड़ा नियम यह है कि जिनके पास 613 से 614 ग्राम चांदी है या आज के हिसाब से इतनी चांदी की कीमत के बराबर धन है। उनपर कुर्बानी फर्ज है। यानी उसे कुर्बानी देनी चाहिए।
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कुरान के अनुसार कुर्बानी देने के लिए किसी से कर्ज लेना जायज नहीं है। जिनके ऊपर कर्ज है उन्हें पहले अपना कर्ज उतारना चाहिए, कर्ज रहते कुर्बानी देना अल्लाह को पसंद नहीं है, इसे अल्लाह कुबूल नहीं करते हैं।
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कुरान में बताया गया है कि जो लोग अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत हिस्सा समाज सेवा के लिए या जरूतमंद को दान में देते हैं उन्हें जानवर की कुर्बानी देने की जरूरत नहीं है। उनके द्वारा किया गया दान ही कुर्बानी के तौर पर अल्लाह कुबूल कर लेता है।