... और जब गांधीनगर की मोहब्बत चढ़ी नई दिल्ली में परवान

Update:2017-10-10 16:47 IST

नई दिल्ली : नोटबंदी, जीएसटी, मेक इन इंडिया और भी न जाने क्या क्या-क्या हैं मोदी की लिस्ट में। जिसके नाम पर आज हर मंच से वो विरोधियों को परास्त करने के लिए शब्द बाण चलाते हैं। बदले में उनको लखनऊ से लास वेगास तक जमकर तालियां मिलती हैं। देश के सामने मोदी गुजरात के विकास की तस्वीर ऐसे पेश करते हैं, जैसे वो भ्रष्टतंत्र से पूरी तरह मुक्त हो वहां राम राज स्थापित हो। लेकिन आज हम आपको बताते हैं मोदी के राज्य का वो सच जिसे जानकर आप स्वयं समझ सकते हैं, कि सरकार भले ही किसी पार्टी कि हो लेकिन वो खेलती कारोबारियों की गोद में ही।

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कारोबारी से मेल- हो गया सत्ता का खेल

वर्ष 2006 में बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (जीयूवीएनएल) ने 2000 मेगावाट बिजली खरीदने के लिए टेंडर निकाले। इसके बाद इस टेंडर में रूचि दिखाते हुए 26 जून 2006 को जिंदल पावर लिमिटेड, अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड और पीटीसी इंडिया लिमिटेड ने टेंडर डाले।

अडानी ने जहां 3.70 रूपया प्रति यूनिट, जिंदल और पीटीसी ने 3.48 रूपया और 3.25 रूपया प्रति यूनिट के हिसाब से अपने टेंडर डाले। इसपर जीयूवीएनएल को लगा कि ये दर काफी अधिक है। तब उसने एक बार फिर बिजली आपूर्ति के लिए आवेदन मांगे। 9 नवम्बर 2006 को एक बार फिर अडानी, जिंदल और पीटीसी ने 3.30 प्रति यूनिट, 3.24 प्रति यूनिट और 3.25 प्रति यूनिट की दर से आवेदन किया। इसके बाद लगभग एक महीने बाद जीयूवीएनएल की टेंडर इवैल्युएशन कमेटी ने गहन चिंतन के बाद जिंदल पावर को इस लायक समझा की वो बिजली सप्लाई कर सकता है और कमेटी ने उसके नाम की सिफारिश कर दी।

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जब ये बात सामने आयी तो पीटीसी इंडिया और अडानी भी जिंदल के टैरिफ पर जीयूवीएनएल को बिजली देने के लिए तैयार हो गए। 8 दिसंबर 2006 को जीयूवीएनएल ने अडानी, जिंदल और पीटीसी को इसी टैरिफ पर बिजली देने के लिए लेटर ऑफ इंटेट भी जारी कर दिया। लेटर ऑफ इंटेट मिलने पर इन तीनो में से एक पीटीसी इंडिया ने जीयूवीएनएल को प्रस्ताव दिया कि वो बिजली आपूर्ति को 440 मेगावाट से बढ़ाकर 630 मेगावाट करना चाहता है, लेकिन जीयूवीएनएल ने उसके प्रस्ताव को नकार दिया। जबकि जीयूवीएनएल को उस समय बिजली कि जरुरत थी।

यहां ये जान लेना आवश्यक है कि उस समय तक इन तीनों ने मिलकर भी गुजरात को सिर्फ 1590 मेगावाट बिजली देने का ही प्रस्ताव दिया था। जबकि राज्य को 2000 मेगावाट कि आवशयकता थी। अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि जीयूवीएनएल ने पीटीसी इंडिया के 190 मेगावाट के प्रस्ताव से इंकार क्यों किया।

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परदे के पीछे था अडानी

दरअसल इसके पीछे था अडानी, जीयूवीएनएल शार्टटर्म पावर पर्चेज एग्रीमेंट के जरिए पहले से ही अडानी से 5.31 रूपये प्रति यूनिट और 5.45 रूपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद रही थी। अक्टूबर 2006 से अगस्त 2007 के 11 महीने के समय में गुजरात सरकार ने इस एग्रीमेंट के जरिए निजी कंपनियों से जितनी बिजली खरीदी उसमें से 90 फीसदी तो सिर्फ अडानी से खरीदी गयी थी। इन 11 महीनों में बिजली खरीद के लिए कुल 358 करोड़ खर्च किये गए जिनमें 322 करोड़ का भुगतान अडानी को किया गया।

अब ये बात साफ हो जाती है कि आखिर क्यों 2.89 रूपये प्रति यूनिट पर पीटीसी से 190 मेगावाट अतिरिक्त बिजली नहीं ली गयी थी। इससे ये पता चलता है, कि गुजरात सरकार अडानी को परदे के पीछे से फायदा पहुंचा रही थी।

11 दिसम्बर 2006 को जीयूवीएनएल ने एक नया खेल खेलते हुए अडानी, जिंदल और पीटीसी को पावर पर्चेज एग्रीमेंट भेजा। जिसे भरकर अडानी, जिंदल और पीटीसी ने वापस भेज दिया। इसके साथ ही जिंदल और पीटीसी ने जीयूवीएनएल को कहा कि पीपीए पर हस्ताक्षर की तारीख उनको बता दी जाये।

जीयूवीएनएल के अधिकारियों के मन में तो अडानी बसा हुआ था। उन्होंने हस्ताक्षर की सूचना के बदले इन दोनों को 12 जनवरी 2007 को सूचना दी कि टेंडर कैंसिल कर दिया गया है। इसके साथ ही दोनों कम्पनियों की बैंक गारंटी भी बिना कोई कारण बताये लौटा दी गई। दोनों ही कंपनियों के नुमाइंदे जीयूवीएनएल के चक्कर लगाते रहे लेकिन उनको टेंडर कैंसल करने का कारण नहीं बताया गया।

सूत्रों के मुताबिक 8 जनवरी 2007 को जीयूवीएनएल और अडानी के आलाधिकारी एक साथ बैठे और बिजली खरीद की दर 3.24 रूपया प्रति यूनिट से घटाकर 2.89 रूपये प्रति यूनिट पर सहमति बना ली।

जब ये बात जिंदल पावर और पीटीसी इंडिया को पता चली तो उन्होंने कोर्ट की शरण ले ली कोर्ट ने 24 जनवरी 2007 को आदेश दिया कि यथा-स्थिति बनाए रखी जाए। इस पर अडानी ने कोर्ट में आवेदन करते हुए कहा कि यदि जिंदल के पक्ष में फैसला आता है, तो उसे भी शामिल कर लिया जाएगा, लेकिन अभी रोक हटा ली जाए। इसके बाद कोर्ट ने 6 फरवरी 2007 को अपनी रोक हटा ली।

मौके की तलाश में लगी जीयूवीएनएल और अडानी ने इसी दिन 1000 मेगावाट बिजली खरीदने का पीपीए कर लिया। बाद में जिंदल पावर ने अपने को इस मामले से अलग कर लिया। वहीं पीटीसी इंडिया इस मामले को लेकर गुजरात हाईकोर्ट पहुँच गया। जहां कोर्ट ने आदेश दिया कि एक महीने के भीतर जीयूवीएनएल पीटीसी इंडिया से उसी पीपीए करे। वहीं जीयूवीएनएल ने अडानी से 3.25 रूपये प्रति यूनिट की दर से एक और पीपीए भी कर लिया और पीटीसी इंडिया को बाहर निकालने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया। इसके बाद कहा गया कि पीटीसी इंडिया ने बैंक गारंटी समय पर नहीं दी लेकिन जीयूवीएनएल कि ये दलील भी कोर्ट में टिक नहीं पायी। इसके बाद जीयूवीएनएल ने रिक्वेस्ट फॉर क्वालिफिकेशन को आधार बना पीटीसी इंडिया को बहार निकालने का प्रयास किया।

इससे ये साफ हो गया कि जब मोदी सिर्फ मुख्यमंत्री थे तब उनकी सरकार अडानी को फायदा देने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी तो अब किस हद तक जा सकती है जबकि यदि वो पीटीसी इंडिया से बिजली खरीद करती तो राज्य को कम दर पर बिजली मिलती और जनता को भी इसका लाभ मिलता।

कौन है गौतम अडानी

गौतम अडानी ने 1988 में अडानी ग्रुप की शुरुआत की। उस समय ग्रुप का फोकस सिर्फ एग्रो कमोडिटी और पावर पर रहा। वर्ष 1991 तक कंपनी ने अपने दोनों कारोबार में सफलता के झंडे लहरा दिए थे। इसके बाद गौतम ने दूसरे कारोबार में उतरने का मन बनाया।

फिर क्या था अडानी ग्रुप एनर्जी और लॉजिस्टिक्स के साथ ही पावर जेनरेशन और ट्रांसमिशन, कोल ट्रेडिंग एवं माइनिंग, गैस डिस्ट्रीब्यूशन, ऑयल एवं गैस एक्सप्लोरेशन में उतर आया।

पीटीसी इंडिया जब पहुंचा कोर्ट तो जीयूवीएनएल को मिला ये आदेश

 

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