जानिए शिरडी के साईं बाबा का इतिहास, क्यों छिड़ा है विवाद

साईं बाबा की जन्मस्थली को लेकर विवाद गहरा गया है। महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने पाथरी को साईं बाबा का जन्म स्थान बताकर उसका विकास कराने का ऐलान किया है। इसके बाद से ताउम्र उनकी 'कर्मस्थली' रहे शिरडी के बाशिंदे नाराज हो गए हैं।

Update: 2020-01-18 13:52 GMT

नई दिल्ली: साईं बाबा की जन्मस्थली को लेकर विवाद गहरा गया है। महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने पाथरी को साईं बाबा का जन्म स्थान बताकर उसका विकास कराने का ऐलान किया है। इसके बाद से ताउम्र उनकी 'कर्मस्थली' रहे शिरडी के बाशिंदे नाराज हो गए हैं। लोगों ने अगले दो दिन शहर बंद की घोषणा कर दी है।

मंदिर के बंद होने की भी बात कही जा रही थी। लेकिन श्री साई बाबा संस्थान न्यास के जनसम्पर्क अधिकारी मोहन यादव ने मंदिर बंद नहीं रहने की बात कही है, लेकिन होटल-रेस्टोरेंट बंद रहने से श्रद्धालुओं को परेशानी हो सकती है।

साई मंदिर के सीईओ दीपक मुगलीकर ने भी इसपर मंदिर प्रशासन का रुख सामने रखा। उन्होंने कहा कि मीडिया में ऐसी खबर आई है कि मंदिर 19 जनवरी को बंद रहेगा। लेकिन मैं स्पष्ट कर दूं कि ये महज अफवाह है। मंदिर 19 जनवरी को खुला रहेगा।

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क्या है विवाद

दरअसल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने साई बाबा की जन्मस्थली के विकास के लिए 100 करोड़ रुपये की निधि देने की घोषणा की। इसके बाद से ही विवाद शुरू हुआ। जब अहमदनगर जिले में स्थित शिरडी शहर में ही 19वीं सदी में साई बाबा का पूरा जीवन बीता था और इसी कारण यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं।

साईं बाबा के बहुत से अनुयायी शिरडी से करीब 275 किलोमीटर दूर मराठवाड़ा के परभणी जिले में स्थित पाथरी गांव को उनकी जन्मस्थली मानते हैं। लेकिन श्री साई बाबा संस्थान और शिरडी शहर के लोग इस दावे के खिलाफ हैं।

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साईं बाबा का इतिहास

साईं बाबा के अद्भुत चमत्कारों की चर्चा चारों तरफ होती है। साईं बाबा के भक्त पूरी दुनिया में है। हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग उनकी पूजा करते हैं। शिर्डी साईं बाबा को मानने वाले उन्हें योगी, संत, फकीर पुकारते हैं। शिर्डी साईं बाबा के धर्म और जन्म को लेकर लोगों में विरोधाभास है। कुछ लोग उन्हें हिन्दू मानते हैं तो कई लोग उन्हें मुस्लिम। साईं बाबा कहते थे कि सबका मालिक एक है।

साईं बाबा को भारत में एक महान संत के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि ये अद्भुत शक्तियों से सम्पन्न थे। बताया जाता है कि साईं एक युवास्था में फकीर के रूप में सबसे पहले शिरडी गए और जीवनभर वहीं रहे।

मान्यता है कि जो भी उनसे मिलने आया उसका जीवन बदल गया। साईं बाबा के जन्म स्थान को लेकर इतिहासकारों और विद्वानों में अलग-अलग मत हैं। कुछ लोग कहते हैं कि इनका जन्म महाराष्ट्र के पाथरी गांव में 28 दिसंबर के दिन साल 1835 में हुआ था। हालांकि उनके जन्म को लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं है।

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साईं सत्चरित्र नामक किताब के मुताबिक साईं 16 साल की अवस्था में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के शिर्डी गांव पहुंचे थे। जहां वे एक सन्यासी का जीवन व्यतीत कर रहे थे। वे हमेशा एक नीम के पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर भक्ति में लीन रहते थे। धीरे-धीरे लोग इनके उपदेशों को अपनाने लगे और इस तरह इनकी ख्याति आसपास के गांवों में बढ़ती गई।

साईं बाबा ने अपने जीवन का एक पुरानी मस्जिद में रहते थे जिसे वह द्वारका माई कहा करते थे। सिर पर सफेद कपड़ा बांधे हुए फकीर के रूप में साईं शिरडी में धूनी रमाए रहते थे। इनके इस रूप के कारण कुछ लोग इन्हें मुस्लिम मानते हैं। जबकि द्वारिका के प्रति श्रद्घा और प्रेम के कारण कुछ लोग इन्हें हिन्दू मानते हैं। लेकिन साईं ने कभी भी अपने को जाति बंधन में नहीं बांधा।

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महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के शिर्डी गांव में साईं का मंदिर स्थित है। इस मंदिर से आज भी लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इस मंदिर में साईं के दर्शन के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। यहां साईं बाबा की समाधि है।

सांईं बाबा ने शिर्डी में 15 अक्टूबर दशहरे के दिन 1918 में समाधि ली थी। बताया जाता है कि 27 सितंबर 1918 को साईं बाबा के शरीर का तापमान बढ़ने लगा। उन्होंने अन्न-जल सब कुछ छोड़ दिया।

बाबा के समाधिस्त होने के कुछ दिन पहले तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि जिंदा रहना मुमकिन नहीं लग रहा था। लेकिन उसकी जगह सांईं बाबा 15 अक्टूबर, 1918 को अपने नश्वर शरीर का त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए। उस दिन विजयादशमी (दशहरा) का दिन था।

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