चुनाव आयोग-आरबीआई की बात सही! SC का चुनावी बांड पर चाबुक, जानिए क्या होगा असर?
Electoral Bonds: चुनावी बांड के माध्मय से लोग देश की राजनीतिक दलों को पैसा दे सकते हैं। इसको कोई भी लोग, कंपनी या फिर कारोबारी खरीद सकता है। इस योजना को एसबीआई ने बनाया है, इसलिए देशभर की 29 एसबीआई ब्रांच में इसको प्राप्त कर सकते हैं। फिलहाल अब इसमें रोक लग गई है।
Electoral Bonds: चुनावी बांड लगाने का उद्देश्य देश की राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे में पादर्शिता लाना था, लेकिन कहीं न कहीं यह चुनावी बांड अपने उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर पा रहा है, और अब इस पर भारत की सर्वोच्च अदालत ने अपना फैसला सुन दिया। जल्दी ही चुनावी बांड की विंडो खुलनी थी, लेकिन कोर्ट द्वारा इस पर फैसला देने की वजह से विंडो नहीं खुली और अब इस पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आ गया, जिसकी उम्मीद न राजनीतिक दल की होगी और न ही चुनानी चंदा देने वाले लोगों ने। Electoral Bond पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चांदा देने पर रोक लगा दी है और चुनावी बांड को असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट ने भले ही Electoral Bond को असंवैधानिक बताया हो, लेकिन जब उसको लॉन्च किया गया, तब सरकार, चुनाव आयोग व केंद्रीय बैंक मत कुछ और था। जानिए तब सरकार और आरबीआई ने चुनावी चंदा बांड पर क्या कहा था?
कोर्ट ने एसबीआई को दिया ये आदेश
चुनावी बांड की पॉलिसी को रद्द कर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा कि चुनाव बॉन्ड की योजना सूचना के अधिकार (RTI) के खिलाफ है। साथ ही, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को एससी ने आदेश दिया है कि वह अप्रैल 2019 से लेकर अब तक कितना चुनावी बांड खरीदा गया है, जिस बाद की सूचना तीन हफ्ते में दे। यह जानकारी मिलते ही चुनाव आयोग देश की जनता के समक्ष 2019 से लेकर अब तक कितने चुनावी बांड खरीदे गए कि जानकारी प्रस्तुत करेगा।
इस वजह से 2018 में लॉन्च हुआ चुनावी बांड
चुनावी चंदा में पादर्शिता लेने के लिए केंद्र सरकार ने 2 जनवरी, 2018 में Electoral Bond को लॉन्च किया था। लेकिन सरकार ने इस बांड को आरटीआई के दायरे से बाहर रखा था। मामला यहीं पर खराब हुआ। यानी कोई व्यक्ति आरटीआई के तहत चुनावी बॉन्ड से संबंधित जानकारी नहीं प्राप्त कर पाएगा। तब केंद्र सरकार ने कहा था कि पार्टियों के चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए चुनावी बॉन्ड जरूर है। इससे काल धन पर रोक लगेगी, लेकिन इस बांड पर चुनाव आयोग और आरबीआई का मत सरकार से बिल्कुल अगल था।
ये थे सरकार, चुनाव आयोग और आरबीआई के मत
सरकार बोल रही थी कि चुनावी बांड पारदर्शिता के लिए है, जबकि चुनाव आयोग ने कहा था कि इससे पारदर्शिता खत्म होगी। फर्जी कंपनियां खुलेंगी। वहीं, आरबीआई का कहना था कि इस बांड से देश में मनी लॉन्ड्रिंग का खतरा है और इससे ब्लैक पैसे को बढ़ावा मिलेगा। वहीं, आज सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि सरकार के पास काले धन को रोकने के लिए और भी दूसरे रास्ते हैं। साथ ही, कहा कि हर मतदाता को पार्टियों के फंड के बारे में जानकारी रखने का हक है।
क्या है चुनावी बॉन्ड स्क्रीम
चुनावी बांड के माध्मय से लोग देश की राजनीतिक दलों को पैसा दे सकते हैं। इसको कोई भी लोग, कंपनी या फिर कारोबारी खरीद सकता है। इस योजना को एसबीआई ने बनाया है, इसलिए देशभर की 29 एसबीआई ब्रांच में इसको प्राप्त कर सकते हैं। यह बांड 1 हजार, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपए तक होते हैं। यहां पर दानकर्ता को गोपनीय रखा जाता है।
यह पड़ेगा बड़ा असर
आज जब सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी बांड पर रोक लगा दी है। इसका सबसे बड़ा असर राजनीतिक पार्टियों को पड़ेगा,क्योंकि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और अब चुनावी बांड पर रोक लग गई है। ऐसे में दलों को चुनावी चंदे के समस्या से सामना करना पड़ेगा, क्योंकि लोकसभा चुनाव में पार्टियों को काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। अब इसको पैसे से लिए अन्य सोर्स का इंतजाम करना पड़ेगा, कि चंदा का कैसे इंतजाम किया जाए।