नेपाल की बड़ी साजिशः नो मेंस लैंड में बसा रहा आबादी, ऐसे तो गायब हो जाएगी सीमा
नेपाल की चीन से बढ़ रही नजदीकी के बीच पिछले एक साल से भारत नेपाल के बीच नो मेंस लैंड की स्थिति में बदलाव की लगातार खबरें आ रही हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
नेपाल की चीन से बढ़ रही नजदीकी के बीच पिछले एक साल से भारत नेपाल के बीच नो मेंस लैंड की स्थिति में बदलाव की लगातार खबरें आ रही हैं। हालात ऐसे हैं कि संकट के समय सीमा तय करने के लिए छोड़ी गई जमीन (नो मैंस लैंड) का अस्तित्व खतरे में आ चुका है। इस जमीन पर कहीं गांव बस गए हैं, तो कहीं फसल लहलहा रही है। हालात दिन पर दिन खराब होते जा रहे हैं। ताजा खबर यह है कि पीलीभीत से लगी नेपाल सीमा पर हुए अवैध निर्माण को नेपाल सुरक्षा बलों ने हटा दिया है लेकिन ये केवल एक जगह का मामला नहीं है पूरी सीमा पर अवैध कब्जे हो रहे हैं। ज्यादातर जगह नेपाली नागरिकों का कब्जा है।
नो मैंस लैंड पर कब्जा करने की कोशिश
यह भी बताया जा रहा है सीमा से लगे नो मैंस लैंड पर भारतीय लोग भी कब्जा करने में पीछे नहीं हैं। दस स्थान ऐसे है जहां नो मैंस लैंड पर गांव बस गए हैं। सीमा क्षेत्र के दोनों ओर किसानों ने भी जमीन पर कब्जा कर लिया है। यह लोग नो मैंस लैंड पर खेती करके फसल उगा रहे हैं। कुछ स्थानों पर बाग बगीचे लगे हैं।
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सूत्रों का कहना है भरथा रोशन गढ़ व ककरदरी की स्थिति और भी खराब है। यहां सीमा के दोनों ओर ऐसे बस्तियां बस गई हैं, जैसे क्षेत्र कोई गांव हो। यदि जल्द ही इन बस्तियों पर रोक नहीं लगी तो भारत नेपाल सीमा रेखा के गायब होने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। जो कि मौजूदा तनाव को देखते हुए घातक हो सकता है।
भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र के कई स्थानों पर अतिक्रमण
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक सीमा क्षेत्र के कई ऐसे स्थान हैं जहां अतिक्रमण है। इसमें ककरदरी, कोदिया, घुड़दौरिया, रोशनगढ़ व भारतीय सुइया क्षेत्र का नोमैंस लैंड शामिल है। वहीं नेपाल की ओर से उल्लनासपुरवा, शंकरनगर कोटिया, नेपाली घुड़दौरिया व रोश्यानगढ़, बनिया गांव महतनिया व नेपाली सुइया गांव में हालात चिंताजनक हैं।
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ताजा रिपोर्ट के मुताबिक पीलीभीत से लगने वाले नोमेंस लैंड पर 15 फरवरी को एक नेपाली नागरिक द्वारा भारत के सीमा स्तंभ संख्या 777/2 और 778/1 के बीच एक वाणज्यिक परिसर का निर्माण रात में शुरू किया गया था। जानकारी सामने आने पर एसएसबी और एपीएफ के बीच एक समझौते के बाद इसे हटा दिया गया है।
दोनों देशों के सुरक्षा बलों के बीच आपसी समझ से बनी यथास्थिति
दोनों देशों के सुरक्षा बलों के बीच आपसी समझ के तहत पिछले साल मार्च से कुछ स्थानों पर यथास्थिति बनाए रखी गई है।
गौरतलब है कि कोरोना महामारी के चलते अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारत और नेपाल के सर्वेक्षण कार्य को रोक दिया गया है।
इस सर्वेक्षण के दौरान दो स्थानों पर भारतीय भूमि पर नेपाली पक्ष द्वारा अतिक्रमण का संकेत दिया गया था। भारतीय पक्ष द्वारा भूमि पर भौतिक कब्जे के मुद्दे का नेपाली द्वारा आक्रामक रूप से विरोध किया गया था। संयुक्त सर्वेक्षण में सीमा पार के सटीक निर्देशांक तय करने के बाद ही ग्राउंड जीरो या नो मेंस लैंड पर स्थिति स्पष्ट होगी।
नो मेंस लैंड तकरीबन 43 फीट चौड़ा
भारत नेपाल सीमा पर नो मेंस लैंड तकरीबन 43 फीट चौड़ा (दोनों तरफ सात-सात गज) है। यहां नेपाल के लोगों का अवैध कब्जा लगातार जारी है। रिश्तों में तनातनी के बाद पिछले चार माह में यह गतिविधियां तेज हुई हैं। कुछ वर्ष पहले भारतीय क्षेत्र में स्थित पिलर संख्या 617 को क्षतिग्रस्त कर माओवादी लाल झंडा फहरा चुके हैं।
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नेपाल के सीमांत ताराताल, कोटिया घाट, ईश्वरीगंज, धनौरा, दुर्गागंज, शंकरपुर, अग्घरवा, भदई गांव, पचपकरा, पिपरहवा, जमुनहा, जैसपुर, सैनिक गांव, लालपुर, गनेशपुर, कुड़वा, होलिया, सोनबरसा जैसे गांवों में भारत विरोधी दुष्प्रचार और नेपाली युवकों को भड़काये जाने की खबरें भी आती रहती हैं। अतः जरूरी है कि समय रहते इस दिशा में आवश्यक कदम उठा कर नेपाल की विस्तारवादी नीतियों पर अंकुश लगाया जाए।