Politics : 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के लिए जेपीसी गठित, राज्यसभा से 10 और लोकसभा से 21 सदस्य शामिल, प्रियंका सहित इन्हें मिला मौका
Politics : 'एक राष्ट्र एक चुनाव' के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में राज्यसभा से 10 सदस्य और लोकसभा से 21 सदस्य शामिल होंगे।
Politics : 'एक राष्ट्र एक चुनाव' के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया गया है, इसमें राज्यसभा से 10 सदस्य और लोकसभा से 21 सदस्यों को शामिल किया गया है। इस सूची में कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा, मनीष तिवारी, धर्मेंद्र यादव, कल्याण बनर्जी, सुप्रिया सुले, श्रीकांत एकनाथ शिंदे, संबित पात्रा, अनिल बलूनी और अनुराग सिंह ठाकुर सहित 31 नेताओं को जेपीसी के सदस्य के रूप में नामित किया गया।
यह संसदीय समिति उस विधेयक पर विचार-विमर्श करेगी, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है। बुधवार को जारी अधिसूचना के अनुसार, जेपीसी बजट सत्र के अंतिम सप्ताह के पहले दिन एक रिपोर्ट बनाकर सदन को सौंपेगी।
इन्हें बनाया गया सदस्य
बता दें कि केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने बीते मंगलवार को लोकसभा में संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन विधेयक) 2024 पेश किया। संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक, 2024' और 'संघ राज्य क्षेत्र कानून (संशोधन) विधेयक, 2024', जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं दोनों के लिए एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव करते हैं, आज लोकसभा में पेश किए गए। मतदान में 269 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया, जबकि 196 ने इसके खिलाफ मतदान किया।
विपक्ष ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का किया विरोध
कांग्रेस, डीएमके कई सहित विपक्षी दलों ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक की आलोचना की और इसे संघवाद के खिलाफ बताया है। वहीं, सरकार का तर्क है कि चुनाव में करोड़ों रुपए खर्च हो रहा है, एक साथ चुनाव कराने से व्यय में कमी आ सकती है। चुनाव आयोग के अनुसार, एक लोकसभा चुनाव कराने में 3700 करोड़ रुपए का खर्च होता है, जो वार्षिक बजट का 0.02 प्रतिशत है। इसी व्यय को बचाने के लिए केंद्र सरकार भारत के संपूर्ण संघीय ढांचे को समाप्त करना चाहती है और चुनाव आयोग को और अधिक शक्तिशाली बनाना चाहती है।
टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी ने विधेयक का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह संविधान के मूल ढांचे पर प्रहार करता है। उन्होंने कहा कि जब भी संसद भंग होगी, तब सभी राज्य चुनाव कराने होंगे। राज्य विधानसभा और राज्य सरकार संसद और केंद्र सरकार के अधीन नहीं हैं।