Lok Sabha Speaker: लोकसभा स्पीकर, आखिर क्यों है इतना खास पद
Loksabha Speaker Ke Bare Me Jankari: स्पीकर पद का हमारे संसदीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान है।
Loksabha Speaker Ke Bare Me Jankari: लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव संसद के निचले सदन यानी लोकसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया आम तौर पर आम चुनाव के बाद नई लोकसभा की शुरुआत में या जब भी पद खाली होता है, तब होती है।
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव (Loksabha Speaker Election)
- लोकसभा का कोई भी सदस्य अध्यक्ष पद के लिए किसी दूसरे सदस्य का नाम प्रस्तावित कर सकता है।
- आम तौर पर, प्रधानमंत्री, बहुमत वाली पार्टी के नेता के रूप में किसी उम्मीदवार का प्रस्ताव करते हैं।
- नामांकन हो जाने के बाद प्रस्ताव को लोकसभा में मतदान के लिए रखा जाता है। सदस्य ध्वनि मत या विभाजन मत के माध्यम से अपना वोट देते हैं। जिस उम्मीदवार को साधारण बहुमत प्राप्त होता है, उसे अध्यक्ष घोषित किया जाता है।
महत्वपूर्ण स्थान (Loksabha Speaker Importance)
स्पीकर पद का हमारे संसदीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान है। अध्यक्ष के पद के बारे में कहा गया है कि संसद सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, अध्यक्ष सदन के ही पूर्ण प्राधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। वह उस सदन की गरिमा और शक्ति का प्रतीक है जिसकी वह अध्यक्षता करता है। अध्यक्ष को संसदीय लोकतंत्र की परम्पराओं का वास्तविक संरक्षक माना जाता है। और उसका नाम राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री के तत्काल पश्चात् रखा गया है। भारत के संविधान में यह प्रावधान है कि अध्यक्ष के वेतन तथा भत्तों पर संसद में मतदान नहीं किया जाएगा और ये भारत की संचित निधि पर भारित होंगे।
अधिकार और जिम्मेदारी (Lok Sabha Speaker Responsibilities)
- अध्यक्ष लोक सभा की बैठकों और कार्यवाही की अध्यक्षता करते हैं, व्यवस्था बनाए रखते हैं, सुनिश्चित करते हैं कि संसदीय नियमों का पालन हो रहा है, और बहस के दौरान उठाए गए व्यवस्था के मुद्दों पर निर्णय लेते हैं।
- अध्यक्ष के पास संसदीय नियमों और प्रक्रियाओं की व्याख्या करने और उन्हें लागू करने, संसदीय विशेषाधिकार, व्यवस्था के मुद्दों और प्रस्तावों और संशोधनों की स्वीकार्यता के मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार है।
- लोक सभा में मतदान के दौरान बराबरी की स्थिति में, अध्यक्ष के पास बराबरी को तोड़ने के लिए निर्णायक मत होता है।
- लोकसभा अध्यक्षों द्वारा प्रयोग की जाने वाली विवेकाधीन शक्तियां, जैसे प्रश्नों और प्रस्तावों की स्वीकार्यता पर निर्णय लेना, अक्सर विवादास्पद रही हैं, तथा विरोधी दलों द्वारा अध्यक्षों के विरुद्ध पक्षपात के आरोप लगाए जाते रहे हैं।
संविधान संशोधन से बढ़ी शक्तियां (Lok Sabha Speaker Power)
लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियों को संविधान के संशोधन के बाद और ज्यादा बढ़ाया गया है। दल बदल विरोधी संविधान संशोधन अधिनियम 1985 द्वारा स्पीकर की भूमिका को मजबूत किया गया है। इसमें स्पीकर दल-बदल कानून के अंतर्गत सदस्यों की सदस्यता भी रद्द कर सकते हैं।
अध्यक्ष तय भी करते हैं कि कोई विधेयक पास होगा या नहीं। अध्यक्ष की अनुमति के बिना किसी भी सदस्य को सदन के परिसर में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और न ही फौजदारी या दीवानी कानून के अंतर्गत उन्हें कोई आदेश दिया जा सकता है। इस तरह सदन के मेंबर्स की रक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी स्पीकर की होती है।