मास्क ही बचाएगा कोरोना सेः अपनी जिम्मेदारी समझें, ऐसे करें फेस कवर
जो हमारे इर्द गिर्द हालात हैं वो हम सबके लिए चिंता की बात है। कोरोना महामारी के खिलाफ हमारे पास बचे अंतिम हथियारों में से एक है - मास्क। जब तक एक प्रभावी वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक यही एकमात्र सहारा है मास्क।
नील मणि लाल
लखनऊ। टोटल लॉकडाउन, रात के कर्फ्यू, लाल-पीले-हरे ज़ोन, आरोग्य सेतु ऐप, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की गोली – ये सब तो आप सभी को याद होगा। ये सब चीजें एक एक करके आयीं और भुला दीं गयीं लेकिन कोरोना अपनी जगह पर कायम है और जानें व जीवनयापन लेता चला जा रहा है। जो लोग संक्रमित हैं या संक्रमित लोगों के संपर्क में आये हैं उनके लिए तो क्वारंटाइन, आइसोलेशन और ट्रीटमेंट बेहद महत्वपूर्ण हैं लेकिन जिस तरह से संक्रमण देश भर में फ़ैल चुका है उसमें दो बहुत सामान्य लेकिन बेहद जरूरी चीजों के प्रति सबका ध्यान ख़त्म होता नजर आ रहा है। ये चीजें हैं –मास्किंग और हैण्डवाशिंग।
आधे से ज्यादा लोग मास्क नहीं पहन रहे
सितम्बर के महीने में मेडिकल छात्रों के एक बड़े ग्रुप के वालंटियर्स ने देश के 19 शहरों की लोकल बाजारों का अलग अलग समय पर दौरा किया। ये दौरा ये देखने के लिए था कि बाजार में शौपिंग करने वाले लोगों और दुकानदारों ने मास्क पहना है कि नहीं और वे किस तरह का व्यवहार कर रहे हैं। इन वालंटियर्स ने साढ़े चार हजार लोगों को देखा और पाया कि करीब 25 फीसदी लोग मास्क नहीं पहने हुए हैं। जो लोग मास्क पहने भी हुए थे उनमें एक तिहाई से आधे लोग सही ढंग से मास्क नहीं पहने थे। यानी जितने लोगों को देखा गया उनमें आधे से ज्यादा लोग सही तरीके से मास्क नहीं पहने थे।
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चिंता की बात
जो हमारे इर्द गिर्द हालात हैं वो हम सबके लिए चिंता की बात है। कोरोना महामारी के खिलाफ हमारे पास बचे अंतिम हथियारों में से एक है - मास्क। जब तक एक प्रभावी वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक यही एकमात्र सहारा है मास्क।
मास्क क्यों?
महामारी शुरू होने के बाद के चंद महीनों में ये साफ़ हो गया था कि हमारा पाला जिस वायरस से पडा है वो कोई सामान्य वायरस नहीं है लेकिन ये भी पता चल गया कि ये वायरस खसरे या इबोला की तरह आसानी से फैलने वाला वायरस भी नहीं है। कोरोना वायरस आमतौर पर संक्रमित मरीजों के बोलने, खांसने, छींकने से फैलता है। जो संक्रमित है उसमें कोई लक्षण आये ये भी जरूरी नहीं होता। हमें ये भी पता चल चुका है कि वायरस से लड़ने में हमारी उम्र, अन्य बीमारियाँ बहुत मायने रखती हैं।
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युवाओं को संक्रमण, वृद्धों की मौत
भारत में अधिकांश आबादी 20 से 30 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं की है। ये आबादी बड़े पैमाने पर संक्रमित हो रही है लेकिन इनमें मृत्यु दर बेहद कम है लेकिन ये आबादी अन्य लोगों में संक्रमण फैलाती रही है। जो जोखिम वाले लोग हैं उनमें मृत्यु दर काफी ज्यादा है। एक सर्वे के अनुसार भारत में 86 फीसदी मौतें 65 साल से ज्यादा उम्र के मरीजों में हुई हैं। पहले इस बात की काफी चिंता रही थी कि संक्रमित सतह के संपर्क में आने से भी संक्रमण फैलता है लेकिन अब इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा।
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन में प्रकशित एक लेख के अनुसार मास्क पहनने से अनजाने में बिना लक्षण वाला संक्रमण हो जाता है और इसके परिणामस्वरुप इम्यूनिटी बन जाती है। इसके पीछे तर्क ये दिया गया है कि मास्क पहनने से सांस के साथ निकलने वाले वायरस की संख्या बहुत सीमित हो जाती है। इस लेख में अमेरिका का उदाहरण दिया गया है कि किस तरह वहां शुरुआत में बड़ी संख्या में स्वास्थ्य कर्मियों को संक्रमण हुआ लेकिन धीरे धीरे ये संख्या कम होती गयी क्योंकि मरीजों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य कर्मियों में इम्यूनिटी बनने लगी थी। लेकिन ऐसा तभी हुआ जब स्वास्थ्य कर्मी पूरा प्रोटेक्शन ले रहे थे और मास्किंग का गंभीरता से पालन कर रहे थे।
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कैसे करें मास्किंग
कैसा मास्क पहनें, किस तरह पहनें, इसके बारे में ढेरों जानकारियाँ फोटो, विडियो और लेखों द्वारा दी जा चुकी है। मास्क पहनना कोई बहुत जटिल मसला नहीं है, इसका उद्देश्य तो सांस के साथ वायरस को भीतर जाने से रोकना है। मास्क पहने रहने से हवा फ़िल्टर हो जाती है और साथ ही चेहरे पर हाथ लगाने से भी बचाव हो जाता है। इसके अलावा मास्क पहनने से संक्रमित व्यक्ति द्वारा सांस के जरिये बाहर वायरस फ़ैलाने की गुंजाइश भी बहुत कम हो जाती है।
जरूरी बातें
मास्क ऐसा होना चाहिए कि उसके चारों ओर कोई गैप न रहे, मास्क नाक और मुंह को अच्छी तरह कवर करे, और कपड़े की कम से कम दो लेयर वाला हो। बहुत से लोग मास्क से मुंह ढंके रहते हैं लेकिन नाक खुली रखते हैं। ऐसा करने से कोई फायदा नहीं है बल्कि नुकसान ही है। मास्क से नाक – मुंह दोनों कवर होना चाहिए। ये भी ध्यान रखें कि मास्क नाक-मुंह को ढंकने के लिए है ठुड्डी को नहीं सो ठुड्डी पर मास्क लगाने से आप अपना और दूसरों का ही नुक्सान करते हैं।
अपनी जिम्मेदारी समझिये
महामारी और बढ़ते संक्रमण के लिए सरकार और दूसरों को दोषी ठहराना कतई ठीक नहीं है। इस लड़ाई में हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। मिडिल क्लास के लोग अपने घरों में साफ़ सफाई करने वालिओं को बुलाने के लिए बहुत बैचैन रहे, लेकिन ये जिम्मेदारी कितनों ने समझी कि उन कर्मचारियों को मास्क का डिब्बा और साबुन भी दिया जाए जिसे वे अपने घर ले जा सकें? उन कर्मचारिओं की सुरक्षा भी तो हमारी ही जिम्मेदारी है।
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मास्क पहनने से नहीं होती ऑक्सीजन की कमी
चेहरे पर मास्क से फेफड़े के रोगियों में कार्बन डाई ऑक्साइड के सम्पर्क में आने की संभावनाएं जताई जाती रही हैं, लेकिन एक ताजा स्टडी में इस बात में विरोधाभास दर्शाया गया है। अमेरिकन थोरेसिक सोसाइटी में प्रकाशित एक रिसर्च में स्वस्थ मनुष्यों में ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर में परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं का अध्ययन किया। इसमें मास्क पहनने से पहले क्रोनिक ऑब्सट्रुक्टिव पल्मोनरी डिजीज से ग्रसित लोगों को भी शामिल किया गया। रिसर्च के वैज्ञानिकों ने कहा कि फेफड़े की समस्या वाले लोगों पर भी मास्क का असर कम से कम देखा गया है।
रिसर्चरों के अनुसार अगर कोई सर्जिकल मास्क नहीं हो, तो दो लेयर वाले कपड़े का मास्क भी इस्तेमाल किया जा सकता है। फेफड़े की बीमारी वाले लोगों को संक्रमण से बचने और मास्क पहनने की सलाह भी दी गई है। मास्क पहनने से सुरक्षा में किसी तरह का कोई खतरा नहीं है।
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