इस नवरात्री नहीं कर पाएंगे कोई मांगलिक कार्य, ज्योतिषविदों ने बताया कारण

इस बार पृत पक्ष और शारदीय नवरात्र के बीच एक महीने का अंतर आ गया है। इस साल श्राद्ध के अगले ही दिन से नवरात्र शुरू होने के बजाए एक महीना देरी से आएंगे

Update:2020-08-23 17:42 IST
This time there has been a difference of one month between the Prit Paksha and the Shardiya Navratri. This year, the next day of Shraddha will be delayed by a month instead of starting Navratri

अक्टूबर महीने से नवरात्र शुरू हो जाएंगे। जिसमे 9 दिनों तक मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा होती है। जिसकी तैयारी ज़ोरों शोरों से होने लगती हैं। सभी माता की भक्ति में लीन दिखते हैं। बड़े ही धूम धाम से नवरात्री के इस त्यौहार को मनाया जाता है। लेकिन इस साल ऐसा नहीं होगा एक वजह तो कोरोना महामारी है और दूसरी वजह आज हम आप को बताने जा रहे है।इस बार पृत पक्ष और शारदीय नवरात्र के बीच एक महीने का अंतर आ गया है। इस साल श्राद्ध के अगले ही दिन से नवरात्र शुरू होने के बजाए एक महीना देरी से आएंगे।

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पितृपक्ष का महीना

पितृपक्ष 1 सितंबर से 17 सितंबर तक रहेंगे. श्राद्ध में पितरों का तर्पण भी किया जाएगा। लोग अपने-अपने पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान करेंगे। इसके बाद श्राद्ध खत्म होते ही अधिमास लग जाएगा और इसी कारण नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा। अधिमास 17 सितंबर से 16 अक्टूबर तक रहेगा। 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होगी। ज्योतिषविदों का कहना है कि 165 साल बाद यह अजब संयोग बनने जा रहा है। ज्योतिषविदों ने इसके पीछे का कारण भी बताया है।

मांगलिक कार्य नहीं होंगे संपन्न

ज्योतिर्विदों का कहना है कि लीप ईयर की वजह से यह संयोग बन रहा है। इस बार अधिमास और लीप ईयर एक ही वर्ष में पड़ रहे हैं. इस कारण चातुर्मास जो हर साल चार महीने का रहता है, वो इस बार पांच महीने का होगा। चातुर्मास लगने के कारण इस दौरान शुभ कार्य और मांगलिक कार्य संपन्न नहीं होंगे।इस बार शारदीय नवरात्र शनिवार, 17 अक्टूबर को शुरू होंगे और 24 अक्टूबर को राम नवमी मनाई जाएगी। 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी। जिसके साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे. इसके बाद ही विवाह, मुंडन आदि मंगल कार्य शुरू होंगे।

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हिन्दू पंचांग से

हिन्दू पंचांग में बारह मास होते हैं। यह सूर्य की संक्रांति और चन्द्रमा पर आधारित होते हैं। हर वर्ष सूर्य और चन्द्र मास में लगभग 11 दिनों का अंतर आ जाता है। तीन वर्ष में यह अंतर लगभग एक माह का हो जाता है इसलिए हर तीसरे वर्ष अधिक मास आ जाता है। इसको लोकाचार में मलमास भी कहा जाता है। अधिमास में शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।अधिक मास को पहले बहुत अशुभ माना जाता था। बाद में श्रीहरि ने इस मास को अपना नाम दे दिया। तबसे अधिक मास का नाम "पुरुषोत्तम मास" हो गया। इस मास में भगवान विष्णु के सारे गुण पाये जाते हैं। इसलिए इस मास में धर्म कार्यों के उत्तम परिणाम मिलते हैं।

भौतिक जीवन कार्य में मनाही

इस महीने भौतिक जीवन से संबंधित कार्य करने की मनाही है। विवाह, कर्णवेध, चूड़ाकरण आदि मांगलिक कार्य वर्जित हैं। गृह निर्माण और गृह प्रवेश भी वर्जित है। परन्तु जो कार्य पूर्व निश्चित हैं, वे कार्य किए जा सकते हैं।मलमास में नियमित रूप से श्री हरि, अपने गुरु या ईष्ट की आराधना करें। संभव हो सके तो आहार, विचार और व्यवहार सात्विक रखें। पूरे माह में श्रीमदभागवत या भगवदगीता का पाठ करें।

इस माह में पूर्वजों और पितरों के लिए किए गए कार्य भी लाभदायी होते हैं। निर्धनों की सहायता करें, अन्न, वस्त्र और जल का दान करें। लौकिक कामनाओं के लिए इस महीने किये गए प्रयोग अवश्य सफल होते हैं।

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