Nehru tribal wife passes away: पंडित नेहरू की ‘आदिवासी पत्नी' की मौत, जीवन भर झेला बहिष्कार का दंश, राजीव गांधी से मुलाकात के बाद मिली थी नौकरी

Nehru tribal wife passes away: झारखंड के धनबाद जिले में पंडित नेहरू ने बुधनी का सम्मान करते हुए अपने गले की माला उतारकर उसके गले में डाल दी थी। नेहरू ने पनबिजली प्लांट का उद्घाटन भी बुधनी के हाथों बटन दबाकर कराया। आदिवासी महिला बुधनी मंझियाइन की मौत के बाद स्थानीय लोगों ने उनके सम्मान में एक स्मारक और पेंशन की मांग की है। बुधनी मंझियाइन का बीते दिनों निधन हो गया।

Written By :  Ashish Kumar Pandey
Update:2023-11-21 13:47 IST

Nehru tribal wife passes away  (photo: social media )

Nehru tribal wife Passes Away: पंडित जवाहरलाल नेहरू की ‘आदिवासी पत्नी‘ बुधनी मंझियाइन बीते शुक्रवार की रात 80 साल की उम्र में इस दुनिया से विदा हो गईं। वो पिछले करीब 64 साल से से अपनी ही जाति-समाज में बहिष्कार का दंश झेल रही थीं।

अब झारखंड में बुधनी मंझियाइन के लिए संथाली में एक स्मारक बनाने की मांग उठी है। यह बुधनी ही थीं, जिन्होंने पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की मौजूदगी में दामोदर वैली कॉरपोरेशन के पंचेत डैम और हाईडल पावर प्लांट का उद्घाटन किया था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सम्मान में मिली माला को उठाकर बुधनी मंझियाइन को पहनाई दी थी। उस समय बुधनी की उम्र महज 16 वर्ष की थी।

पंडित नेहरू ने पंचेत बांध के उद्घाटन पर बुधनी को जो माला पहनाई, वो उनके लिए जीवनभर का दर्द बन गई। दरअसल संथाल आदिवासी में किसी पुरुष का महिला या लड़की को माला पहनाने को शादी मान लेते थे। उस समय समुदाय के बाहर शादी करने पर समाज से बहिष्कार कर दिया जाता था। तत्कालीन पीएम नेहरू के माला पहनाने को आदिवासी समुदाय ने शादी मान लिया और समुदाय से बाहर एक गैर-आदिवासी से ‘शादी करने‘ की वजह से बुधनी मंझियाइन को समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। उसकी अपने गांव में एंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

बुधनी मंझियाइन की ये कहानी 17 नवंबर को सामने आई, जब बुधनी की पंचेत की एक झोपड़ी में मौत हो गई। यहां झोपड़ी में वह अपनी बेटी रत्ना के साथ रहती थी।

अंतिम विदाई देने को उमड़ी भीड़

बुधनी मंझियाइन को अंतिम विदाई देने के लिए स्थानीय राजनेताओं और अधिकारियों सहित सैकड़ों लोग आए। वहां मौजूद कई लोगों ने बुधनी मंझियाइन को देश के पहले प्रधानमंत्री की ‘पहली आदिवासी पत्नी‘ बताया। वहां मौजूद लोगों ने स्थानीय पार्क में नेहरू की मौजूदा मूर्ति के बगल में बुधनी के सम्मान में एक स्मारक बनाने की मांग की यही नहीं उन्होंने बुधनी की बेटी रत्ना (60) के लिए पेंशन की भी मांग की।

पंचेत पंचायत के मुखिया भैरव मंडल और अन्य लोगों ने स्थानीय डीवीसी कॉलोनी में रत्ना के लिए स्मारक और एक घर के बारे में डीवीसी प्रबंधन को पत्र लिखा है। बता दें, डीवीसी दामोदर घाटी निगम, सार्वजनिक उपक्रम है, जिसके तहत बांध बनाया गया था। रत्ना का बेटा बापी (35) डीवीसी में अकाउंटेंट के पद पर कार्यरत है।


वहीं पंचेत में डीवीसी के उप मुख्य अभियंता सुमेश कुमार ने कहा कि स्मारक या अन्य मांगों पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। उन्होंने कहा कि ‘ये निर्णय शीर्ष अधिकारियों से बातचीत और सलाह के बाद ही लिए जा सकते हैं।‘

बुधनी के जीवन में ऐसे शुरू हुए उतार-चढ़ाव

बताया जाता है कि बुधनी के जीवन में उतार-चढ़ाव 1952 में उस समय शुरू हुआ जब बांध के निर्माण के दौरान उनकी पुश्तैनी जमीन डूब गई। उसके पास जमीन के अलावा आय का कोई भी स्रोत नहीं था। हालांकि इसके बाद भी बुधनी ने हार नहीं मानी। उसने बांध निर्माण के दौरान मजदूरी की। बुधनी पहली ठेका मजदूरों में से थी।


नेहरू के माला पहनाने के साथ ही शुरू हो गईं परेशानियां

फिर, 5 दिसंबर 1959 को उद्घाटन के समय देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के माला पहनाने के साथ ही परेशानियां फिर से शुरू हो गईं। डीवीसी प्रबंधन ने नेहरू के स्वागत के लिए संथाली व्यक्ति रावण मांझी के साथ बुधनी को भी चुना था। स्थानीय मान्यता है कि बुधनी ने बांध चालू करने के लिए बटन दबाया था।


और फिर यहां मिला आश्रय

1962 में, बुधनी को कई अन्य डीवीसी अनुबंध श्रमिकों के साथ हटा दिया गया था। वह पड़ोसी राज्य बंगाल के पुरुलिया में साल्टोरा चली गईं और दिहाड़ी मजदूर के रूप में मेहनत करने लगीं। वहां, बुधनी की मुलाकात एक कोलियरी में ठेका कर्मचारी सुधीर दत्ता से हुई, जिसने उसे आश्रय दिया और बाद में उससे शादी कर ली।

राजीव गांधी से मुलाकात के बाद मिली नौकरी

पंडित नेहरू के माला पहननाने के बाद अपने ही समाज में दंश झेल रही बुधनी को उस समय सम्मान मिला जब उनकी मुलाकात राजीव गांधी से हुई। 1985 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री के रूप में बंगाल के आसनसोल गए तो एक स्थानीय कांग्रेस नेता ने बुधनी से उनकी मुलाकात कराई और उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई। इसके बाद बुधनी को डीवीसी में नौकरी मिल गयी, जहां से वह 2005 में सेवानिवृत्त हो गईं।

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