पंजाब के किसान और एमएसपी की व्यवस्था, अब बदलाव बहुत जरूरी
पंजाब के किसानों की भूमिका भारत की हरित क्रांति में बहुत महत्वपूर्ण रही है। साठ के दशक में भारत अनाज की कमी से बुरी तरह जूझ रहा था और गेहूं के लिए अमेरिका पर आश्रित था
नई दिल्ली: दिल्ली की सीमा पर जमे किसानों में सबसे ज्यादा संख्या पंजाब से आये किसानों की है। कृषि संबंधी कानूनों के बारे में उनकी चिंता है कि नए कानूनों से उनकी आय पर विपरीत प्रभाव पड़ने वाला है।
पूरे भारत में किसान परिवारों की संख्या करीब 15 करोड़ है जिसमें से पंजाब का हिस्सा मात्र मात्र दस लाख है। इसके विपरीत पंजाब के किसानों को राज्य सरकार द्वारा 8275 करोड़ रुपये की मुफ्त बिजली दी जाती है। 2019-20 के बजट में पंजाब को उर्वरक सब्सिडी के लिए केंद्र सरकार ने 5 हजार करोड़ रुपये दिए। सिर्फ बिजली और उर्वरक सब्सिडी में ही पंजाब 13,275 करोड़ रुपये देता है। इसका मतलब ये हुआ कि प्रति किसान परिवार को 2019-20 में करीब 1 लाख 22 हजार रुपये की सब्सिडी मिली। ये पूरे भारत में सबसे ज्यादा है। इसके अलावा पंजाब के औसत किसान परिवार की औसत आय देश के औसत से ढाई गुना ज्यादा है।
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हरित क्रांति में भूमिका
दरअसल, पंजाब के किसानों की भूमिका भारत की हरित क्रांति में बहुत महत्वपूर्ण रही है। साठ के दशक में भारत अनाज की कमी से बुरी तरह जूझ रहा था और गेहूं के लिए अमेरिका पर आश्रित था जहाँ से पीएल480 गेहूं का बड़े पैमाने पर आयात किया जाता था। हर साल एक करोड़ टन पीएल480 भारत आता था जिसका भुगतान भारत को रुपये में करना पड़ता था। इसकी वजह भारत के पास विदेशी मुद्रा का न होना था। इन हालातों में 1965 में एक उपाय सोचा गया कि कैसे देश में अनाज का अधिक उत्पादन कराया जाए। ये उपाय था न्यूनतम समर्थन मूल्य का। ये हरित क्रांति की शुरुआत थी और पंजाब ने इसमें अगुवाई की।
राज्य को केंद्र का सपोर्ट एमएसपे, अच्छे बीज और उर्वरक पर भरी सब्सिडी के तौर पर मिलने लगा। इसके बाद 1970 में नार्मन बोरलौग ने हरित क्रांति के असली चरण की शुरुआत की जिसमें उच्च उत्पादकता का गेहूं शामिल था। इस हरित क्रांति में उच्च किस्म के बीज, ट्रेक्टर, सिंचाई सुविधा, कीटनाशक और रासायनिक उर्वरकों का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया गया और देखते देखते पंजाब ने हरित क्रांति का परचम लहरा दिया।
एफसीआई
अनाज खरीदने वाली मुख्य सरकारी एजेंसी है फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया जो आमतौर पर सिर्फ धान और गेंहू एमएसपी पर खरीदती है। यही अनाज सब्सिडी पर गरीबों को बेचा जाता है। एक बात ध्यान देने वाली है कि एफसीआई की खरीद पूरे देश में एक सामान नहीं है। मिसाल के तौर पर बिहार में कुल उत्पादन का दो फीसदी से भी कम खरीद एफसीआई द्वारा होती है। नतीजतन अधिकांश किसानों को एमएसपी से 25 से 35 फीसदी कम पर किसानों को अपना उत्पाद बेचना पड़ता है। वहीं पंजाब और हरियाणा से एफसीई लाखों टन धान और गेंहू खरीदता है। आज एफसीआई के गोदाम ठसाठस भरे हैं। इस साल जून में 97 मिलियन मीट्रिक टन का स्टॉक था जबकि बफर स्टॉक की सीमा 41.2 एमएमटी है।
किस राज्य से कितनी खरीद
वर्ष 2019-20 में गेंहू खरीद की बात करें तो पंजाब से 129.12 लाख टन (एलएमटी) खरीद हुई। हरियाणा में 93.2 एलएमटी, यूपी में 37, मध्य प्रदेश में 67.25, बिहार में 0.03, उत्तराखंड में 0.42, चंडीगढ़ में 0.13, गुजरात में 0.05, हिमाचल में 0.01 एलएमटी खरीद की गयी। वहीं 2020-21 में पंजाब में १२७.14, हरियाणा में 74, यूपी में 35.77, मध्य प्रदेश में 129.42, बिहार में 0.05, राजस्थान में 22.25, उत्तराखंड में 0.38, चंडीगढ़ में 0.11, गुजरात में 0.77, हिमाचल में 0.03 एलएमटी खरीद हुई।
धान की खरीद
2019-20 में पंजाब में 108.76 एलएमटी, हरियाणा में 43.07, आंध्र प्रदेश में 55.33, तेलंगाना में 74.54, असम में 2.11, बिहार में 13.41, चंडीगढ़ में 0.15, छत्तीसगढ़ में 52.24, गुजरात में 0.14, झारखण्ड में 2.55, कर्नाटक में 0.41, केरल में 4.83, मध्य प्रदेश में 17.4, महाराष्ट्र में 11.57 ओडीशा में 47.98, तमिलनाडु में 22.04, यूपी में 37.9, बंगाल में 18.38 और उत्तराखंड में 6.81 एलएमटी के खरीद हुई।
साफ़ है कि धन और गेहूं की सरकारी खरीद में पंजाब और हरियाणा आगे हैं।
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बदलाव जरूरी
पंजाब और हरियाणा के किसानों का एमएसपी और सरकारी मंडियों से प्रेम सब्सिडी और सरकारी सुविधाओं की वजह से है। इस व्यवस्था में ट्रेडर्स या आढ़ती की भी बड़ी भूमिका है। हरित क्रांति से उपजी इस व्यस्था को बदलने के लिए प्रयास पहले भी हुए हैं लेकिन आधे अधूरे मन से। पंजाब में किसानों को धान- गेहूं के अलावा अन्य फसलोन की ओर प्रेरित करने की कोशिशें की गयीं हैं लेकिन उन स्कीमों के लिए बहुत ही कम संसाधन लगाये गए। पंजाब को अपनी कृषि में बदलाव करने के लिए बड़ा पैकेज और प्लान चाहिए जो कम से कम पांच साल के लिए हो। जब किसान अपने उत्पाद में विभिन्नता ले आएंगे तभी वे एमएसपी के जाल से बाहर निकल सकेंगे। इस काम को राज्य और केंद्र मिल कर ही अंजाम दे सकते हैं।
रिपोर्ट- नीलमणि लाल
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