उमर अब्दुल्ला की बहन पहुंची सुप्रीम कोर्ट, जानिए क्या है मामला
उमर अब्दुल्ला को गिरफ्तार करने के पीछे कोई पर्याप्त सबूत नहीं है। याचिका में कहा गया है कि जिस व्यक्ति को 6 महीने तक पहले ही गिरफ्तार करके रखा गया है उसे और ज्यादा दिनों तक गिरफ्तार रखने के लिए और कोई साक्ष्य नहीं मौजूद हो सकता है।
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की हिरासत का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बहन ने लोक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत उमर की हिरासत को चुनौती दी है। सोमवार को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ से मामले को सुनवाई के लिए तत्काल सूचीबद्ध करने का उल्लेख किया।
कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि उन्होंने लोक सुरक्षा अधिनियम के तहत अब्दुल्ला की हिरासत को चुनौती देते हुए एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है। इस सप्ताह मामले की सुनवाई की जानी चाहिए। पीठ ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई।
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बता दें कि उमर अब्दुल्ला 5 अगस्त, 2019 से सीआरपीसी की धारा 107 के तहत हिरासत में थे। इस कानून के तहत, उमर अब्दुल्ला की छह महीने की एहतियातन हिरासत अवधि गुरुवार यानी 5 फरवरी 2020 को खत्म होने वाली थी, लेकिन 5 जनवरी को सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में उमर की गिरफ्तारी का मामला
सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर जल्द सुनवाई के लिए तैयार हो गई है। इस याचिका में कहा गया है कि उमर अब्दुल्ला को गिरफ्तार करने के पीछे कोई पर्याप्त सबूत नहीं है। याचिका में कहा गया है कि जिस व्यक्ति को 6 महीने तक पहले ही गिरफ्तार करके रखा गया है उसे और ज्यादा दिनों तक गिरफ्तार रखने के लिए और कोई साक्ष्य नहीं मौजूद हो सकता है।
याचिका में कहा गया है कि उमर अब्दुल्ला की गिरफ्तारी अनैतिक है और भारतीय संविधान के मूल्यों का हनन करती है।
इसके बाद उमर अब्दुल्ला की हिरासत को 3 महीने से 1 साल तक बिना किसी ट्रायल के बढ़ाया जा सकता है। उमर अब्दुल्ला के खिलाफ अन्य आरोपों में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के केंद्र के फैसले का विरोध और राष्ट्र की एकता और अखंडता के खिलाफ ट्विटर पर लोगों को उकसाना शामिल है।
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हालांकि, इस आरोप का समर्थन करने के लिए किसी भी ट्विटर पोस्ट का हवाला नहीं दिया गया है. वहीं, 5 अगस्त 2019 को गिरफ्तारी से पहले उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट करते हुए लोगों से शांति बनाए रखने का आह्वान किया था.
उमर ने भीड़ का उकसाने का किया काम
लोक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत हिरासत में लिए गए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती पर संगीन आरोप लगाए गए हैं। पीएसए डोजियर में दोनों नेताओं के हिरासत की वजह यह बताई गई है कि 49 वर्षीय उमर ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन की पूर्व संध्या पर अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने को लेकर भीड़ को उकसाने का काम किया था।
उमर ने इस फैसले के खिलाफ सोशल मीडिया पर भी लोगों को भड़काया था, जिससे कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी। हालांकि, डोजियर में उमर के सोशल मीडिया पोस्ट का जिक्र नहीं है। वहीं, उमर की राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और 60 वर्षीय पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती पर राष्ट्रविरोधी बयान देने और जमात-ए-इस्लामिया जैसे अलगाववादी संगठनों को समर्थन देने का आरोप लगाया गया है। इस संगठन पर गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत पाबंदी लगाई गई है।
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उमर ने कहा था...तो भारत में विलय पर छिड़ेगी बहस
हरी निवास में हिरासत में लेकर जाने से पहले उमर ने आखिरी कुछ ट्वीट किए थे, जो इस प्रकार हैं...कश्मीर के लोगों के लिए, हम नहीं जानते कि हमारे लिए क्या है...सुरक्षित रहें और इन सबसे ऊपर कृपया शांत बने रहें। हालांकि, कहा यह भी जा रहा है कि डोजियर में उमर के उस बयान का भी हवाला दिया गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि अनुच्छेद 370 समाप्त करने या इसमें बदलाव से जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ जाएगी।