पीएम मोदी की मालदीव यात्रा: PAK को मिला कड़ा संदेश

दोबारा शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पहली विदेश यात्रा पर शनिवार को मालदीव पहुंचे। मालदीव ने भी प्रधानमंत्री मोदी को विदेशी शख़्सियतों को दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान 'रूल ऑफ़ निशान इज़्ज़ुद्दीन' से सम्मानित किया।

Update:2019-06-09 09:01 IST

नई दिल्ली : दोबारा शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पहली विदेश यात्रा पर शनिवार को मालदीव पहुंचे। मालदीव ने भी प्रधानमंत्री मोदी को विदेशी शख़्सियतों को दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान 'रूल ऑफ़ निशान इज़्ज़ुद्दीन' से सम्मानित किया। सम्मानित किए जाने के बाद पीएम मोदी ने मालदीव का आभार व्यक्ति किया और लिखा, मालदीव ने मुझे अपने देश का सर्वोच्च सम्मान दिया है और मैंने विनम्रता से इसे स्वीकार किया। यह सिर्फ मेरा सम्मान नहीं है बल्कि दोनों देशों की दोस्ती का सम्मान है।

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कुछ दिन पहले दोनों देशों के बीच रिश्तों की तस्वीर ऐसी नहीं थी। पिछले कुछ वर्षों में मालदीव से भारत के रिश्ते बेहतर नहीं रहे, इसी का फायदा उठाकर चीन ने मालदीव में अच्छा खासा दबदबा बनाया। मगर मालदीव में 2018 के बाद जब सरकार बदली उसके बाद से भारत के साथ रिश्तों की नई पहल हुई। इसी रिश्ते को और प्रगाढ़ करने के लिए पीएम मोदी मालदीव पहुंचे। वहां की संसद को संबोधित किया और आतंकवाद के मुद्दे पर आक्रमकता से अपनी बात रखी।

बहरहाल, पीएम मोदी ने मालदीव के इस दौरे से दूसरे कार्यकाल में अपनी पहली यात्रा की औपचारिकता नहीं पूरी की है बल्कि उन्होंने अपने उन दो पड़ोसी देशों को भी साध लिया है जो सामरिक और आर्थिक तौर पर भारत के बड़े प्रतिद्वंदी हैं। गलगोटिया यूनिवर्सिटी में राजनीति विभाग के प्रमुख डॉ. श्रीश पाठक कहते हैं कि भारत सरकार ने सही दिशा में कदम बढ़ाया है।

श्रीश पाठक कहते हैं कि मालदीव की मजलिस (संसद) में मोहम्मद नशीद को स्पीकर के रूप में भारतीय प्रधानमंत्री के साथ बैठे देखना अच्छा लगा। पिछले साल फरवरी में अब्दुल्ला यामीन की सरकार ने जब देश में आपातकाल लगाया था तो इन्हीं नशीद ने तब भारत सरकार को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की थी।

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श्रीश पाठक याद करते हैं कि स्वनिर्वसन में नशीद ने यह चिट्ठी श्रीलंका से लिखी थी। एक जमाने में पत्रकार रहे मोहम्मद नशीद मालदीव में उन संघर्षों के अगुवा रहे जिससे देश को 2008 में एक नया लोकतांत्रिक संविधान मिला और उसी साल ग्यूम को चुनाव में हराकर नशीद देश के पहले लोकतांत्रिक राष्ट्रपति चुने गए थे। उस वक्त भारत के लिए एक पशोपेश की स्थिति थी क्योंकि यामीन सरकार को चीन का पूरा समर्थन था और भारत को डोकलाम मुद्दे में चीन के साथ तनातनी से उबरे कुछ वक्त ही हुए थे। मालदीव में चीन ने एक चेतावनी भी दे ही दी थी कि आंतरिक मामले में कोई हस्तक्षेप न करे।

उन्होंने कहा कि आखिरकार, देश की जनता ने नशीद और ग्यूम समर्थित नेता मोहम्मद सोलिह को आम चुनाव में विजयी बनाया। सोलिह की सरकार ने एकबार फिर मालदीव में भारत की पारंपरिक मित्रता को मान देना शुरू किया है।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भी अपनी पहली विदेश यात्रा के रूप में मालदीव को चुनना इस बात का दृढ़ संकेत है कि हिंद महासागर में चीनी फुटप्रिंट को किसी भी हाल बढ़ने नहीं देना है। मालदीव से अच्छे रिश्ते रखना भारत के लिए बेहद अहम है। क्योंकि चीन मालदीव के रास्ते भारत के नज़दीक आने के जुगाड़ में है। चीन लगातार मालदीव पर अपना प्रभाव बना रहा है।

दूसरा कि मोदी के प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में बिम्स्टेक देशों को आमंत्रित किया था जिसका मतलब था कि पाकिस्तान को दरकिनार करना। पाकिस्तान बातचीत शुरू करने की अपील कर रहा है, लेकिन भारत उसकी अनदेखी करते हुए आगे बढ़ रहा है।

श्रीश पाठक कहते हैं कि यह रणनीति सही है कि अंतरराट्रीय मंचों पर उसे अलग थलग किया जा रहा है जबकि दूसरे पड़ोसी देशों को तरजीह दी जा रही है। मालदीव और श्रीलंका की यात्रा इसकी अगली कड़ी है, और पाकिस्तान को सबक सिखाने का बढ़िया तरीका भी है।

मालदीव और भारत अपने बेहतर रिश्ते की ओर बढ़ चले हैं। दोनों देशों के लिए आंतक से लड़ना मुख्य मुद्दों में शामिल है। दरअसल, मालदीव में खाली पड़े द्वीपों में लश्कर अपने पैर जमा रहा है।

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मालदीव के युवा ISIS से काफी प्रभावित बताए जाते हैं। 2016 में मालदीव से 250 से ज्यादा युवा ISIS में शामिल होने गए। इराक-सीरिया में लड़ते हुए मालदीव के कई युवा मारे गए। ISIS से जुड़े कुछ युवा वापस लौटे और मालदीव में साइबर हब बनाया। शायद इसीलिए मालदीव की संसद से पीएम मोदी ने आतंक पर सीधा प्रहार किया।

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