बंगाल में हालात तो राष्ट्रपति शासन वाले ही हैं, जानें यहां के सत्ता विरोधी रुझान
पश्चिम बंगाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हुए हमले के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांगे उठने लगी। देखा जाए तो अब बंगाल धीरे धीरे राष्ट्रपति शासन की ओर ही बढ़ रहा है।
योगेश मिश्र
लखनऊ: क्या ममता बनर्जी की ग़लतियाँ पश्चिम बंगाल को राष्ट्रपति शासन की ओर तो नहीं ले जा रही हैं? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के क़ाफ़िले पर हमले से लेकर एक साल पीछे तक की घटनाओं की फ़ेहरिस्त पलटना ज़रूरी हो जाता है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच के रिश्तों की इबारत पढ़ना ज़रूरी हो जाता है। हर बात पर केंद्रीय मशीनरी व केंद्र सरकार को चुनौती देने का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कवर को देखना ज़रूरी हो जाता है। यह सब बातें इस ओर इशारा करती हैं कि पश्चिम बंगाल धीरे धीरे राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रहा है।
गौरतलब है कि ममता बनर्जी की सरकार अगले साल अप्रैल में अपना पाँच साल पूरा कर रही है। किसी भी सरकार के कार्यकाल के अंतिम साल में प्रदेश की जनता व मशीनरी चुनाव के मूड व मोड में आ जाती है। पश्चिम बंगाल में यही समय चल रहा है।
भाजपा के लिए बंगाल महत्वपूर्ण
भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल जीतना बहुत महत्वपूर्ण भी है। पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष व विचार पुरुष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के इस गृह राज्य में भाजपा ने अपनी जड़ें जमाने के लिए बहुत मेहनत की है। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद ३७० की समाप्ति के एक आंदोलन में गिरफ़्तारी के दौरान जेल में श्यामा प्रसाद का निधन हो गया था। आज तक उनके मौत की गुत्थी उलझी हुई है। गृह मंत्री बनने के बाद मोदी पार्ट -२ की सरकार में अमित शाह ने पार्टी के लंबे समय से लंबित अनुच्छेद 370 के एजेंडे को पूरा कर दिखाया है।
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बंगाल में सत्ता विरोधी रुझान
ममता बनर्जी के शासन के अभी दस साल पूरे हो रहे हैं। उनकी सरकार के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी रुझान मुखर है। ममता बनर्जी ने हद से ज़्यादा जाकर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण भी किया है, जो भाजपा को न केवल खाद पानी देता है बल्कि नेताओं में सरकार बनाने की उम्मीद भी जगाता है। पर यह सब करते हुए ममता बनर्जी को यह कोशिश भी करना चाहिए कि उनकी अगुवाई वाली सरकार में ही चुनाव हों। ताकि वह सरकार होने के जो थोड़े बहुत लाभ हर सरकार को मिलते हैं, उसे उठा सकें। पर जिस तरह पश्चिम बंगाल में दो वर्षों में कुछ बड़ी घटनायें हुईं हैं, वह ममता को ऐसा अवसर न मिल पाने की ओर संकेत करती हैं।
फरवरी, 2019 टीएमसी विधायक सत्यजीत बिस्वास की नदिया जिले में गोली मारकर हत्या कर दी गयी। जून, 2019 टीएमसी नेता निर्मल कुंडू की उत्तर 24 परगना जिले के निम्टा में हत्या कर दी गई। सितंबर , 2019 भाजपा सांसद अर्जुन सिंह पर 24 परगना में भीड़ ने हमला कर दिया।जुलाई , 2020 उत्तर दिनाजपुर में भाजपा विधायक देवेंद्रनाथ रॉय का शव बरामद हुआ।जुलाई , 2020 भाजपा कार्यकर्ता बापी घोष की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई।
तिरंगा फहराने को लेकर हुए विवाद में भाजपा नेता की हत्या
अगस्त , 2020 स्वतंत्रता दिवस को तिरंगा फहराने को लेकर हुए विवाद में हुगली में भाजपा नेता सुदर्शन प्रामाणिक की हत्या कर दी गई। सितंबर 2020 , बर्धमान के कालना में भाजपा कार्यकर्ता रॉबिन पाल की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। आरामबाग के गोघाट इलाके में एक भाजपा कार्यकर्ता गणेश रॉय की हत्या और दिनाजपुर जिले के रायगंज इलाके में भाजपा कार्यकर्ता अनूप रॉय की थाने में मौत इसी महीने हुई।
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अक्तूबर 2020 में भाजपा नेता मनीष शुक्ला की टीटागढ़ में गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई। नवंबर में मुर्शिदाबादा जिले के कांडी में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष पर हमला हुआ। दुर्गापुर के पुरुलिया में भाजपा कार्यकर्ता स्वरूप शॉ की हत्या कर दी गई। जबकि नदिया जिले में भाजपा कार्यकर्ता का शव पेड़ से लटका मिला।
दिसंबर की बात करें तो इस महीने आसनसोल में बमबाजी और गोलीबारी हुई, दर्जनों बाइकों में तोड़फोड़ और आगजनी की गई। इस उपद्रव में तीन लोगों को गोली लगी। उत्तर बंगाल के सिलीगुड़ी में बम हमले से भाजपा कार्यकर्ता की मौत हो गई और कई घायल हो गए। अब ताजा घटना भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के बंगाल दौरे में भवानीपुर और डायमंड हारबर में बवाल की है। यहां भी केंद्र के हस्तक्षेप के बाद मुक़दमा दर्ज किया गया।
गृहमंत्री अमित शाह का इसी महीने की १९ व बीस तारीख़ को पश्चिम बंगाल पहुँचने का का कार्यक्रम है। यह ममता का लिटमस टेस्ट है। यदि इस कार्यक्रम में कोई अनदेखी होती है तो ममता के लिए मुश्किल लाज़मी है।
किन हालात में लगता है राष्ट्रपति शासन
अब यह देखना ज़रूरी है कि राष्ट्रपति शासन किसी राज्य में किन स्थितियों में लगाया जाना चाहिए या लगाया जा सकता है। दरअसल, राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 356 और 365 में हैं। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद राज्य सीधे केंद्र के नियंत्रण में आ जाता है।
संविधान के अनुच्छेद 355 में कहा गया है कि केंद्र सरकार की यह ज़िम्मेदारी है कि वो प्रत्येक राज्य की बाहरी आक्रमण और अंदरूनी उथलपुथल की स्थिति में रक्षा करे। और इस बात की पुष्टि करे कि राज्य में सब कुछ संविधान के अनुरूप चलता रहे। इसके बाद के अनुच्छेद 356 में ज़िक्र आता है राष्ट्रपति शासन का।
संविधान के अनुच्छेद 356 में लिखा गया है कि जब राज्य किसी आपातकाल की स्थिति होती है, उस समय राज्यपाल राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुशंसा कर सकता है। अगर राष्ट्रपति को राज्य के राज्यपाल की ओर से यह भरोसा दिला दिया गया कि राज्य में किसी भी स्थिति में संविधान के अधीन सरकार का संचालन नहीं हो सकता है, तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। अगर राज्य की विधानसभा में किसी दल का बहुमत सिद्ध न हो सका हो, और विधानसभा अपना नेता/ मुख्यमंत्री न चुन सकी हो।
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किसी आपदा जैसे युद्ध, भूकंप, बाढ़ या महामारी की वजह से अगर राज्य में समय से चुनाव न हो सके तो। अगर विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया हो, और सरकार इस वजह से गिर गयी हो, और दूसरे दल अपना बहुमत न पेश कर सके हों। और यदि राज्यपाल अथवा राष्ट्रपति को खुद लगे कि राज्य की सरकार या विधानसभा संविधान के अनुरूप बर्ताव नहीं कर रही है।
किसी भी राज्य में लागू हो सकता है राष्ट्रपति शासन
संविधान के अनुच्छेद 356 के मुताबिक राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है। ऐसा जरूरी भी नहीं है कि राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही यह फैसला लें। यह अनुच्छेद एक साधन है जो केंद्र सरकार को विशेष अधिकार देता है।
संविधान में इस बात का भी उल्लेख है कि राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के दो महीनों के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना जरूरी है। यदि इस बीच लोकसभा भंग हो जाती है तो इसका राज्यसभा द्वारा अनुमोदन किए जाने के बाद नई लोकसभा द्वारा अपने गठन के एक महीने के भीतर अनुमोदन किया जाना जरूरी है।
यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा राष्ट्रपति शासन का अनुमोदन कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति शासन 6 माह तक चलता रहेगा। इस प्रकार 6-6 माह कर इसे 3 वर्ष तक आगे बढ़ाया जा सकता है।
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