Rajasthan: गहलोत ने फिर सचिन को लगा दिया किनारे, छत्तीसगढ़ भेजे जाने से पायलट प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की दौड़ से बाहर

Rajasthan Politics: पायलट को राजस्थान से दूर भेजे जाने में भी गहलोत की प्रमुख भूमिका मानी जा रही है। ऐसे में चुनाव हारकर भी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट पर भारी पड़े हैं।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2023-12-24 06:27 GMT

Rajasthan Politics: लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस संगठन में शनिवार को किए गए फेरबदल में दो नाम पर सबकी निगाहें टिक गईं। पहला नाम कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का है जिन्हें उत्तर प्रदेश के प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त करके अविनाश पांडे को नया प्रभारी बनाया गया है। दूसरा महत्वपूर्ण नाम राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का है जिन्हें राजस्थान से दूर हटाकर छत्तीसगढ़ का प्रभारी महासचिव बना दिया गया है।

सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाए जाने के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी हार के बाद सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपे जाने की संभावना थी मगर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सियासी जादूगरी से ये दोनों पद सचिन पायलट के हाथ से निकल गए हैं। पायलट को राजस्थान से दूर भेजे जाने में भी गहलोत की प्रमुख भूमिका मानी जा रही है। ऐसे में चुनाव हारकर भी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट पर भारी पड़े हैं।

राजस्थान में करारी हार के बावजूद गहलोत भारी

पांच राज्यों में हाल में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को राजस्थान समेत चार राज्यों में करारी हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी सिर्फ तेलंगाना में सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही थी। खास तौर पर तीन हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा की जीत को कांग्रेस के लिए करारा झटका माना जा रहा है। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सबसे प्रमुख भूमिका में दिखाई दिए थे मगर यहां पर कांग्रेस सिर्फ 69 सीटों पर सिमट गई।

ऐसे में माना जा रहा था कि मध्य प्रदेश के कमलनाथ की तरह राजस्थान में अशोक गहलोत को भी बुरे दिनों का सामना करना पड़ेगा। हार का ठीकरा अशोक गहलोत के सिर फूटने की संभावना जताई जा रही थी मगर ऐसा होता नहीं दिख रहा है। गहलोत को अभी हाल में पार्टी हाईकमान की ओर से गठित नेशनल अलायंस कमेटी का सदस्य बनाया गया है। दूसरी ओर राज्य के डिप्टी सीएम सचिन पायलट को राजस्थान की सियासत से दूर छत्तीसगढ़ भेज दिया गया है।

लंबे समय से दोनों नेताओं में छत्तीस का रिश्ता

राजस्थान की सियासत में लंबे समय से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खींचतान दिखती रही है। विधानसभा चुनाव से पूर्व दोनों एक-दूसरे पर हमला करने का मौका नहीं चूकते थे। सचिन पायलट की अगुवाई में कांग्रेस के कई विधायकों ने 2020 में अशोक गहलोत के खिलाफ बागी तेवर भी अपनाया था मगर बाद में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप से यह मामला ठंडा हो सका था और सचिन पायलट की पार्टी में वापसी हो सकी थी।

हालांकि इसके बाद भी सचिन पायलट ने गहलोत सरकार पर हमला करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया। दूसरी ओर गहलोत भी लगातार सचिन पायलट पर हमलावर बने रहे उन्होंने एक बार सचिन पायलट के खिलाफ टिप्पणी करते हुए यहां तक कहा था कि वे कभी राजस्थान के मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे। राजस्थान के विधानसभा चुनाव से पूर्व पार्टी हाईकमान में दोनों के बीच एकजुटता कायम करने की कोशिश की थी इसके बाद दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ बयान तो नहीं दिया मगर दोनों नेताओं के दिल कभी नहीं मिल सके।

पायलट के हाथ से निकले दोनों प्रमुख पद

कांग्रेस हाईकमान की ओर से शनिवार को संगठन में किए गए फेरबदल में सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाकर फिलहाल राजस्थान की राजनीति से दूर कर दिया गया है। ऐसे में सचिन पायलट फिलहाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष की दौड़ से बाहर हो गए हैं।

गहलोत और पायलट के पीछे टकराव के मद्देनजर पायलट को सौंपी गई नई जिम्मेदारी के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि गहलोत सचिन पायलट को राजस्थान की सियासत से दूर करना चाहते थे और अपने इस अभियान में वे कामयाब हो गए हैं। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बावजूद वे पायलट पर भारी साबित हुए हैं।

अब छत्तीसगढ़ में देनी होगी अग्निपरीक्षा

राजस्थान के विधानसभा चुनाव में पायलट ने टोंक विधानसभा सीट से जीत हासिल की है। ऐसे में उनका राजस्थान आना-जाना लगा रहेगा मगर राजस्थान में अब उन्हें कोई सियासी जिम्मेदारी मिलने की संभावना खत्म हो गई है। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की है। ऐसे में लोकसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को जीत दिलाना भी पायलट के लिए आसान नहीं माना जा रहा है। इस कारण छत्तीसगढ़ के लोकसभा चुनाव भी पायलट के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे।

मजे की बात यह है कि फेरबदल में सुखजिंदर सिंह रंधावा पंजाबी के प्रभारी बने हुए है जबकि पायलट को राजस्थान की सियासत से दूर भेज दिया गया है। राजस्थान के सियासी हलकों में यह फेरबदल चर्चा का विषय बना हुआ है और गहलोत समर्थक हाईकमान के इस कदम से खुश बताए जा रहे हैं।

Tags:    

Similar News