सियासी रण में पायलट खेमे की तगड़ी घेरेबंदी, गहलोत का प्लान बी भी तैयार

राजस्थान के सियासी रण में दोनों खेमे एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं। अभी तक की जंग में गहलोत खेमा पायलट...

Update: 2020-07-19 17:12 GMT

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: राजस्थान के सियासी रण में दोनों खेमे एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं। अभी तक की जंग में गहलोत खेमा पायलट खेमे पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। सीएम अशोक गहलोत ने पायलट खेमे को शिकस्त देने के लिए प्लान बी भी तैयार कर रखा है। अगर राजस्थान हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान सचिन पायलट और उनके समर्थक बागी विधायकों को अयोग्यता से राहत मिलती है तो गहलोत ने ऐसी स्थिति से निपटने के लिए दूसरा प्लान भी तैयार कर रखा है।

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अब सबकी नजर हाईकोर्ट पर

विधानसभा के अध्यक्ष की ओर से सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों को दलबदल कानून के तहत नोटिस जारी किए जाने के बाद यह मामला हाईकोर्ट में पहुंच चुका है। अब हर किसी की नजर 21 जुलाई को हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई पर टिकी हुई है। इस बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शनिवार रात अचानक राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात की थी। दोनों के बीच हुई चर्चाओं का पूरा ब्योरा तो सामने नहीं आ सका मगर चर्चा है कि बुधवार से विधानसभा का एक संक्षिप्त सत्र बुलाया जा सकता है।

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गहलोत ने चली सधी चाल

सियासी जानकारों का कहना है कि संकट की इस घड़ी में सियासत के जादूगर माने जाने वाले अशोक गहलोत बहुत सधी हुई चालें चल रहे हैं। विधानसभा का सत्र शुरू होने पर सचिन पायलट खेमे को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। विधानसभा सत्र से पहले होने वाली विधायक दल की बैठक में शामिल होने और विधानसभा में पार्टी को समर्थन देने के लिए जारी व्हिप को सचिन पायलट खेमे के कांग्रेसी विधायकों को भी मानना पड़ेगा।

पायलट खेमे को है इस बात का डर

यदि इन विधायकों ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया तब तो इन विधायकों की सदस्यता बरकरार रहेगी, लेकिन यदि उन्होंने विधानसभा में बहुमत परीक्षण के दौरान गहलोत सरकार का समर्थन नहीं किया तो दलबदल कानून के तहत उनकी विधानसभा से सदस्यता चली जाएगी। ऐसे में पायलट खेमे के सभी विधायकों को उपचुनाव का सामना करना पड़ सकता है। पायलट खेमे के अधिकांश विधायक मौजूदा हालात में चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं हैं।

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पायलट खेमे ने मीडिया से बनाई दूरी

वैसे राजस्थान की सियासी लड़ाई अब भाजपा-कांग्रेस के बीच नहीं बल्कि कांग्रेस की आपसी लड़ाई की तरह दिख रही है। सचिन पायलट खेमे के सभी विधायकों ने मीडिया से दूरी बना ली है और इन सभी विधायकों के फोन भी बंद पड़े हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि हाईकोर्ट में मामले की 21 जुलाई को सुनवाई होने वाली है और इस कारण पायलट खेमे के विधायकों को बयानबाजी से दूर रहने की सलाह दी गई है। पायलट गुट नहीं चाहता कि हाईकोर्ट में उनका पक्ष किसी भी तरह कमजोर हो पाए। यही कारण है कि पायलट गुट के विधायकों को बयानबाजी में संयम बरतने और बयानों से हर संभव दूरी बनाने के निर्देश दिए गए हैं ताकि कोई विवाद न पैदा हो सके।

कांग्रेस नहीं छोड़ना चाहते सचिन समर्थक

इस बीच सचिन पायलट खेमे के एक विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत ने संकेत दिया है कि सचिन खेमे के विधायक कांग्रेस से बाहर नहीं जाना चाहते। उनका कहना है कि उनकी लड़ाई नेतृत्व को लेकर है और वे कांग्रेस में रहकर ही इसे लड़ना चाहते हैं। सचिन खेमे के विधायकों का कहना है कि उनकी शिकायत कांग्रेस नेतृत्व को लेकर है मगर आलाकमान कुछ भी सुनने को तैयार नहीं दिख रहा है।

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सियासी लड़ाई में गहलोत और मजबूत

इस बीच भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायकों की ओर से भी गहलोत सरकार को समर्थन करने का ऐलान किया गया है। पहले इन विधायकों को लेकर कुछ दुविधा दिख रही थी मगर अब पार्टी ने साफ कर दिया है कि वे गहलोत सरकार के साथ है और उसका समर्थन सरकार को जारी रहेगा। जानकारों के अनुसार गहलोत के पास कांग्रेस के 88, बीटीपी के दो, आरएलडी के 1 और 10 निर्दलीय विधायकों का समर्थन है। माकपा के 2 विधायकों का भी गहलोत को समर्थन मिल सकता है। ऐसे में गहलोत के पास 102 या 103 विधायकों के समर्थन की ताकत है। ऐसे में गहलोत पायलट खेमे पर काफी भारी पड़ते नजर आ रहे हैं।

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