राजस्थान को बड़ा झटका, सौर ऊर्जा के सस्ते समझौते से ACME बाहर
राजस्थान में 1200 मेगावाट की बाधला चरण- III सोलर पार्क परियोजना के लिए, सबसे सस्ती सौर ऊर्जा की आपूर्ति के सौदे से एसीएमई सोलर बाहर निकलने के साथ ही राजस्थान को भारी झटका लगा है।
जयपुर: राजस्थान में 1200 मेगावाट की बाधला चरण- III सोलर पार्क परियोजना के लिए, सबसे सस्ती सौर ऊर्जा की आपूर्ति के सौदे से एसीएमई सोलर बाहर निकलने के साथ ही राजस्थान को भारी झटका लगा है। राजस्थान सौर ऊर्जा के लिए भारत मे एक राजधानी के रूप में उभर रहा है। एसीएमई की 300 मेगावाट की चार परियोजना से दिल्ली, हरियाणा, बिहार और पुडुचेरी जैसे महत्वपूर्ण प्रदेशों को किफायती नवीनीकरण ऊर्जा का लाभ मिलना था।
एसीएमई सोलर द्वारा प्रस्तावित प्रति यूनिट रु 2.44 की भारत की यह सबसे सस्ती लागत वाले यह प्रोजेक्ट को विदेशो में भी काफी सराहा गया था। इस टेंडर की सफलता से उत्साहित होकर भारत सरकार ने सौर ऊर्जाकी निविदा में रु 2.65 प्रति यूनिट से ज्यादा बोली लगाने पर रोक लगा दी थी। जिन कारणों की वजह से एसीएमई के सौदे से बाहर आने के लिए बाध्य है, उनमें सब-स्टेशन और पावरग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (पीजीसीआईएल) की ट्रांसमिशन लाइनों के लिए भूमि के अधिग्रहण में देरी, कोरोना वायरस से पैदा हुई वैश्विक महामारी को लेकर बनी अनिश्चितता और चीन से होने वाली आपूर्ति में व्यवधान के कारण इसकी बोली की प्रभावित व्यवहार्यता प्रमुख हैं। कंपनी ने अपने पत्र में कहा था कि ‘परिस्थितियां पूरी तरह से हमारे नियंत्रण से बाहर की हैं और पीपीए तथा पीएस प्रावधानों के अंतर्गत ये असामान्य स्थितियां कहीं जा सकती हैं।’
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राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश भी शामिल
इसमें राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा जमीन से संबंधित यथास्थिति बनाये रखने का आदेश भी शामिल हैं, जिस पर परियोजना के लिए फतेहगढ़ सब-स्टेशन का निर्माण किया जाना था। जहां तक समझौतों से हटने का मामला है, विशेषज्ञ भी मौजूदा परिस्थितियों में ऐसी संभावना से इंकार नहीं करते और उनके अनुसार, ऐसे और भी मामले सामने आ सकते हैं।
एसीएमई ने जब 2017 और 2018 में राजस्थान में 300 मेगावाट की चार परियोजना के लिए उस समय के विनिमय दर के मुकाबले, 2.44 रुपये प्रति यूनिट का टैरिफ लगाया था, तब इसकी काफी चर्चा हुई थी और इसे ऐतिहासिक कहा गया था, क्योंकि यह दुनिया में सबसे कम था। यह परियोजना राजस्थान के बाधला चरण- III सोलर पार्क में लगने वाली थी।
इसके साथ ही एसीएमई और बाधला सोलर पार्क भारत और विश्वभर में काफी चर्चा में आ गये थे। इतना ही नहीं, कंपनी ने जुलाई 2018 में एसईसीआई की 2,000 मेगावाट परियोजना की नीलामी में यही टैरिफ रखा, जो भारतीय सौर उद्योग के लिए एक बेंचमार्क बन गया, लेकिन 4 मई को एसीएमई द्वारा समझौते को “मानव नियंत्रण से बाहर की अप्रत्याशित स्थितियों के दबाव में समाप्त करने के बाद स्थितियां बदल चुकी हैं। एसीएमई ने इसके बारे में केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) को सूचित भी कर दिया है। एसीएमई ने राज्य सरकार द्वारा संचालित एसईसीआई (जिसे पहले सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया कहा जाता था) और ट्रांसमिशन यूटिलिटी पॉवरग्रिड को अपनी बैंक गारंटी और सरकार की फंडिंग एजेंसी इरेडा से प्राप्त कम्फर्ट लेटर को भुनाने से रोकने के लिए कहा है।
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समझौतों के अनुसार, एसीएमई को निम्नलिखित कंपनियों को बिजली की आपूर्ति करनी थी जिसमें बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड, टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रिब्यूशन लिमिटेड, बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड, पुदुचेरी, हरियाणा पावर परचेज सेंटर और साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड शामिल हैं।
नियामक ने इन सभी के साथ-साथ एसईसीआई और पावरग्रिड को भी संशोधित मेमो 28 मई तक सौंपने के लिए कहा है। एसीएमई के वकीलों ने एक बयान में निम्नलिखित बातों का जिक्र किया है:
1- “चीन और भारत में आगामी लॉकडाउन ने न केवल इन परियोजनाओं के निर्माण में देरी की है, बल्कि चीन से सौर पैनलों सहित महत्वपूर्ण उपकरणों तक पहुंच को असंभव बना दिया है। इससे चीनी निर्माता न तो निश्चित समय-सीमा दे पा रहे हैं और न ही आपूर्ति को फिर से शुरू करने में निश्चित तौर पर कुछ कह पा रहे हैं। इसलिए अधिकांश परियोजनाएं निर्धारित कमीशन की तारीख पर पूरी होती नहीं दिखतीं।
2- कोविड-19 के कारण होने वाली रुकावटों के चलते भी ऐसी परियोजनाओं की लागत प्रभावित होगी।
3- बिजली की मांग में कमी और डिस्कॉम के वित्तीय स्थिति के कारण भी नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की प्रगति पर बुरा असर पड़ सकता है।
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एसीएमई के अपील को चुनौती
दूसरी तरफ, एसईसीआई और पावरग्रिड ने अलग-अलग आधारों पर एसीएमई के ‘अप्रत्याशित स्थितियों के दबाव को लागू करने की अपील को चुनौती दी है, लेकिन दोनों ने यह जरूर कहा है कि एसीएमई समझौतों के तहत “अपनी बाध्यकारी दायित्वों से बचने” के लिए अप्रत्याशित स्थितियों का सहारा नहीं ले सकता है। एसईसीआई ने कंपनी की बैंक गारंटी और कम्फर्ट लेटर को कार्यवाही के विचाराधीन रहने तक “जीवित” रखने के लिए कहा है। एसईसीआई इस विवाद को चर्चा के माध्यम से भी हल करना चाहता है।
समझौतों के अनुसार, कमीशन की तारीख से अधिकतम छह महीने, या समझौतों की प्रभावी तारीख से कुल 30 महीने की अनुमति दी। इस वर्ष 8 नवंबर की निर्धारित कमीशनिंग तारीख से छह महीने के विस्तार पर विचार करते हुए, 8 मई 2021 तक पूरी क्षमता कमीशन होनी थी।
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एसईसीआई ने कहा कि उसने पीपीए की समाप्ति को स्वीकार नहीं किया है, और एसीएमई के ‘मानव नियंत्रण से बाहर की अप्रत्याशित स्थितियों के दावे को खारिज कर रहा है। भले ही ऐसी कोई घटना हुई हो, लेकिन एसईसीआई कहते हुए कि इसका प्रभाव तीन महीने से अधिक समय तक जारी रहा, विवाद पैदा कर रहा है।
एसईसीआई के वकील ने सीईआरसी को बताया है कि “ऐसी कोई घटना नहीं घटी थी जो याचिकाकर्ताओं को बिजली परियोजनाओं को लागू करने से रोकती।“ पीजीसीआईएल ने भी अपनी ओर से कहा है कि ‘एसीएमई ने 5 मार्च को सीईआरसी को बताया था कि राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा यथास्थिति के आदेश हटा दिया गया था, इसलिए उन्होंने वित्तीय समाप्ति, भूमि खरीद और निर्धारित कमर्शियल संचालन की तारीख हासिल करने के लिए चार महीने का समय देने हेतु आवेदन किया था और जो उनको अब मिल गया है।