गुजरात की इस मुस्लिम लड़की ने किया ऐसा काम, पूरी दुनिया में हो रही तारीफ
सलमा के समक्ष जब सवाल रखा गया कि उन्होंने संस्कृत में ही पीएचडी करने के लिए क्यों सोचा, तो उन्होंने इसका जवाब बड़ी ही खूबसूरती के साथ देते हुए कहा कि हिंदू धार्मिक ग्रंथ संस्कृत में हैं और इसे देवताओं की भाषा माना जाता है। ऐसे में मेरा मानना है कि किसी भी भाषा का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं होता।
अहमदाबाद: देश में एक तरफ जहां मजहब के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाया जा रहा है, तो वहीं गुजरात विश्वविद्यालय की एक मुस्लिम लड़की ने एकता की मिसाल कायम किया है। जी हां, जीयू की सलमा कुरैशी नाम की छात्रा ने संस्कृत भाषा में पीएचडी की है। बता दें कि सलमा कुरैशी से उनके पीएचडी से संबधित कुछ सवाल किए गए, जिनका जबावाब उन्होंने बहुत ही खूबसूरती से दिया।
मुस्लिम लड़की ने संस्कृत में की पीएचडी
सलमा कुरैशी, जो एक मुस्लिम समुदाय की लड़की है, उन्होंने गुजरात विश्वविद्यालय से संस्कृत विभाग की छात्र रह चुकी है। उन्होंने संस्कृत विषय से पीएचडी की है। उन्होंने अतुल उनागर के मार्गदर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। इसके अलावा उन्हें भावनगर विश्वविद्यालय से एमए में स्वर्ण पदक से नवाजा गया था।
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स्कूल के समय से ही संस्कृत में थी काफी रुचि
सलमा कुरैशी ने कहा, "मुझे स्कूल के समय से ही संस्कृत में काफी रुचि थी। इसकी वजह से मुझे वेद और पुराणों का अध्ययन करना भी पसंद था। संस्कृत में पढ़ाई करने को लेकर घरवालों ने कभी भी दबाव नहीं बनाया।" मिली जानकारी के अनुसार, सलमा ने अपने रिसर्च में भारत की गुरू-शिष्य परंपरा के विषय को शामिल किया था। उन्होंने अपनी थीसिस का शीर्षक 'पूर्णनेशु निरुपिता शिक्षा पद्धति एकम आद्यायन' रखा।
सलमा ने इन विश्वविद्यालयों से की पढ़ाई
गुजरात विश्वविद्यालय की छात्रा रह चुकी सलमा कुरैशी ने बताया है कि उन्होंने सौराष्ट्र विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने भावनगर विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसी विश्वविद्यालय से उन्हें स्वर्ण पदक से नवाजा भी गया था। वहीं, 2017 में वह गुजरात विश्वविद्यालय से पीएचडी किया। पीएचडी के दौरान उन्होंने 3 वर्ष में अपना रिसर्च पूरा किया।
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छात्रों को विषय चुनने की हो आजादी
सलमा के समक्ष जब सवाल रखा गया कि उन्होंने संस्कृत में ही पीएचडी करने के लिए क्यों सोचा, तो उन्होंने इसका जवाब बड़ी ही खूबसूरती के साथ देते हुए कहा कि हिंदू धार्मिक ग्रंथ संस्कृत में हैं और इसे देवताओं की भाषा माना जाता है। ऐसे में मेरा मानना है कि किसी भी भाषा का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं होता। छात्रों को इतनी आजादी जरूर मिलनी चाहिए कि वे जिस भी भाषा में पढ़ना चाहते हैं, उसे चुन सकें। प्राचीन काल में शिक्षक-शिष्य परंपरा के तहत छात्रों को समाज में सभी का सम्मान करना सिखाया जाता था, लेकिन वर्तमान प्रणाली में यह नजर नहीं आता।
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