हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म का संगम सारनाथ

आम तौर पर मान्‍यता रही है कि सारनाथ केवल बौद्ध धर्म का आस्‍था का केंद्र है। यदी हम इस स्‍थान के ऐतिहासिक महत्‍व पर नजर डालें तो स्‍टपष्‍ट होता हे कि यह स्‍थान सदा से ही सर्व धर्म रहा है।

Update:2020-02-23 10:59 IST

दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर: आम तौर पर मान्‍यता रही है कि सारनाथ केवल बौद्ध धर्म का आस्‍था का केंद्र है। यदी हम इस स्‍थान के ऐतिहासिक महत्‍व पर नजर डालें तो स्‍टपष्‍ट होता हे कि यह स्‍थान सदा से ही सर्व धर्म रहा है। सारनाथ भारत की अति प्राचनी और धार्मिक नगरी काशी से कुछ मील की दूरी पर स्थित है। प्रचानी बौद्ध साहित्‍य में इस स्‍थान का उल्‍लेख ऋषियों के निर्वाण प्राप्ति के बाद उनके भौतिक शरीर इसी स्‍थान पर गिरे थे, जो कालंतर में सारनाथ के रूप में जाना जाता है।

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अशोक ने स्‍थापित करवाया था सिंह शीर्ष-स्‍तंभ

यह वह पावन स्‍थल है जहां आज से हजारों साल पहले भगवान बुद्ध ने बौद्ध धर्म का पहला उपदेश दिया था। भगवान बुद्ध की मृत्‍यु के सैकड़ों साल बाद मौर्य सम्राट अशोक ने इस स्‍थान पर बड़ी संख्‍या में बौद्ध भिक्षुओं के लिए बौद्ध बिहारों का निर्माण करवाया और इन्‍हीं बौद्ध बिहारों के मध्‍य 15.20 मीटर ऊंचा 32 अरों वाला धर्मचक्र सिंह शीर्ष-स्‍तंभ स्‍थापित किया। जो आज राष्‍ट्र की अमूल्‍य धरोहर है।

चमकते हुए लाल बलूए पत्‍थर से निर्मित इस स्‍तंभ पर संघ में भेद उत्‍पन्‍न करने वाले बौद्ध भिुक्षओं एवं भिक्षुणियों को चेतावनी देते हुए ब्राह्मी पिलि में लेख खुदवाया और यही पर मौर्य सम्राट ने सर्वभ्रथम भगवान बुद्ध की याद को चीर-स्‍थाइ्र रूप देने के लिए उनकी चिता भष्‍म पर एक पत्‍थर द्वारा निर्मित सौ फुट ऊंचा विशाल स्‍तूप का निर्माण करवाया। यह वही स्‍था है जहां एक नये धर्म व भिक्षु संघ की नींव पड़ी।

मुर्तिकला का मुख्‍य केंद्र भी रहा है सारनाथ

सारनाथ के पुरातात्विक उत्‍खनन से ज्ञात होता है कि मौर्य सम्राट अशोक 273-32 ई. पूर्व से लेकर शुंग, कुषाण, कुषाण, गुप्‍त वर्द्धन एवं गाहडवाल 1114 से 1154 ई तक बौद्ध जैन एवं हिंदू मूर्ति कला का मुख्‍य केंद्र रहा है। यहां के उत्‍खनन से जहां प्रचुर मात्रा में भगवान बुद्ध के जीवन काल से जुड़ी विभिन्‍न क्षणों को दर्शाती बौद्ध मूर्तियां प्राप्‍त हुई हैं वहीं जैन धर्म विल नाथ और पार्श्‍वनाथ की मूर्ति के अलावा अन्‍य तीर्थंकरों की अति सुंदर मूर्तियां प्राप्‍त हुई हैं। साथ ही हिंदू धर्म से जुड़ी कई देव-देवियों की मूर्ति भी मिली है।

श्रेयांसनाथ का जन्‍मस्‍थान है सारनाथ

सारनाथ के बौद्ध बिहारों के ध्‍वंसावशेषों व गुप्‍तकाल में निर्मित 100 फुट ऊंचा धमेक स्‍तूप के समीप स्थित है जैन धर्म के ११वें तीर्थंकर भगवान श्रेयांसनाथ का प्राचीन भव्‍य मंदिर। ऐतिहासिक प्रमाणों एवं जैन साहित्‍य से स्‍पष्‍ट होता है कि जैनियों के ११वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्‍मस्‍थान भी रहा है सारनाथ।

सिंहपुरी से बना सारनाथ

जैन साहित्‍य में सारनाथ को सिंहपुरी कहा गया है, जो काशी जनपद में पांच मील की दूरी पर एक प्रसिद्ध नगर था। समय के लंबे अंतराल में सिंहपुरी का विकास सारनाथ के रूप में हुआ। श्रेयांसनाथ के पिता का नाम विष्‍णु और एवं माता का नाम विष्‍णु देवी बताया गया है। 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्‍म स्‍थान होने के कारण यह जैनियों का भी महत्‍वपूर्ण तीर्थ स्‍थल है।

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सारंगनाथ महादेव का मंदिर भी सारनाथ में

यदि सारनाथ के मुख्‍य स्‍मारकों से निकल कर लगभग एक किलो मीटर दक्षिण दिशा में रेलवे स्‍टेशन की तरफ रुख करते हैं तो वहां पर पीपल के घने वृक्षो की ओट में लगभग 30 फुट की ऊंचाई पर बना शिव मंदिर जनर आता है। इसके संबंध में बताया जता है कि यहां पर शैवमतानुयायी गुमारिल भट्ट ने विशेश्‍वरनाथ भगवान शिव एवं सारंगनाथ महादेव के नाम से दो शिव लिंगों की स्‍थापना की थी। इन्‍हीं के नाम पर आज का सारनाथ पुष्पित एवं पल्‍लवित है। देखा जाए तो सारनाथ की ऐतिहासिक एवं धार्मिक ख्‍याति को विश्‍व के रंगमंच पर लाने में बौद्ध, जैन एवं हिंदू धर्म का एवं इनके अनुयाईयों का बहुत योगदान रहा है।

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