SC/ST एक्ट पर बड़ा फैसला: जगह के हिसाब से ही लागू होगा कानून

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट को लेकर बड़ा आदेश देते हुए कहा है कि एससी/एसटी के तहत कोई मामला तभी बनता है, जब अपराध सार्वजनिक स्थान यानि कि पब्लिक प्लेस पर हुआ हो।

Update: 2020-02-25 05:51 GMT
SC/ST एक्ट पर बड़ा फैसला: जगह के हिसाब से ही लागू होगा कानून

प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट को लेकर बड़ा आदेश देते हुए कहा है कि एससी/एसटी के तहत कोई मामला तभी बनता है, जब अपराध सार्वजनिक स्थान यानि कि पब्लिक प्लेस पर हुआ हो। कोर्ट ने कहा कि बंद कमरे में हुई घटना से एससी/एसटी एक्ट की धारा प्रभावी नहीं होती। बंद कमरे में हुई घटना को कोई सुन नहीं पाता। जस्टिस आरके गौतम ने सोनभद्र के केपी ठाकुर की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है।

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याची के वकील ने कोर्ट को बताया कि...

केपी ठाकुर के वकील सुनील कुमार त्रिपाठी ने कहा कि याची खनन विभाग के अधिकारी हैं। खनन विभाग के कर्मचारी विनोद कुमार तनया, जो मामले के शिकायत कर्ता (Complainant) हैं, उसके खिलाफ विभागीय जांच पेंडिंग थी। इसी मामले में केपी ठाकुर (याची) ने विनोद कुमार तनया (शिकायतकर्ता) को अपने ऑफिस में सबूत पेश करने के लिए बुलाया था। विनोद कुमार तनया अपने साथी कर्मचारी एम. पी. तिवारी को लेकर पहुंचा। याची ने तिवारी को चैंबर के बाहर रुकने के लिए कहा और साथ ही जांच में हस्तक्षेप न करने के निर्देश दिए।

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जांच में बाधा पैदा करने के मकसद से किया ऐसा

वकील का कहना था कि विनोद कुमार तनया (शिकायतकर्ता) जांच में बाधा पैदा करने का आदी रहा है और इसी मकसद से उसने केपी ठाकुर के खिलाफ मारपीट, जान से मारने की धमकी और एससी/एसटी एक्ट की धाराओं में एफआईआर दर्ज करवा दिया। मुकदमा में घटना का जो समय बताया गया है, उस वक्त याची केपी ठाकुर और शिकायतकर्ता विनोद कुमार ही चैंबर में थे और उस समय चैंबर अंदर से बंद था। तो ऐसे में वहां कोई भी ऐसा मौजूद नहीं था, जो इस घटना का साक्षी (witness) रहा हो।

कोर्ट ने रद्द किया एससी/एसटी एक्ट

इस पर वकील ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अगर घटना पब्लिक प्लेस/व्यू में नहीं हुई है तो एससी/एसटी एक्ट की धारा नहीं बनती है। कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार कर लिया और याची के खिलाफ लगाई गई एससी/एसटी एक्ट की धारा को रद्द कर दिया। हालांकि कोर्ट ने अभी मारपीट, जान से मारने की धमकी और अन्य धाराओं के तहत मुकदमें की कार्रवाई जारी रखने का निर्देश दिया है।

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