मरांडी और सोरेन का झारखंड निर्माण से क्या है रिश्ता, जानें इनकी खासियत

11 जनवरी 1944 को झारखंड के रामगढ़ में जन्मे शिबू सोरेन को लोग गुरुजी के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि अब तक वो तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। गुरुजी 2005 में पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे।

Update: 2021-01-11 05:58 GMT

रांची : झारखंड की दो सबसे बड़ी हस्तियों का जन्मदिन आज के यानी 11 जनवरी को होता है। आज का दिन झारखंड की राजनीती के लिहाज से बहुत खास है। आपको बता दें कि आज के दिन पूर्व दो मुख्यमंत्रियों का जन्मदिन होता है। राज्यसभा सांसद और झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन और राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी का जन्मदिन एक ही दिन यानी 11 जनवरी को होता है।

1970 में शिबू सोरेन ने राजनितिक करियर की शुरुआत

11 जनवरी 1944 को झारखंड के रामगढ़ में जन्मे शिबू सोरेन को लोग गुरुजी के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि अब तक वो तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। गुरुजी 2005 में पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे। यह एक आदिवासी नेता हैं। 1970 में शिबू सोरेन ने अपनी राजनितिक करियर करियर की शुरुआत की थी। इस दौरान उन्होंने कई कैम्पेन चलाए जिनके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ गया।

शिबू सोरेन का चुनावी करियर

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन ने पहला लोकसभा चुनाव 1977 में लड़ा था लेकिन इस चुनाव में इन्हें हार का सामना करना पड़ा। तीन साल बाद 1980 में लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन को जीत हासिल हुई। आपको बता दें कि इसके बाद वह लगातार 1989, 1991, 1996 और 2002 में चुनाव जीता। 2009 के उपचुनाव में तमाड़ विधानसभा क्षेत्र से शिबू सोरेन झारखंड पार्टी के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण पातर से 9000 से ज्यादा वोटों से हार गए थे। इस कारण इन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। सोरेन मनमोहन सरकार में कोयला मंत्री भी रहे थे। शिबू 2014 में दुमका से लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद बने थे।

शिबू सोरेन बड़ा योगदान झारखंड को अलग राज्य बनाने में

झारखंड के अलग राज्य का सपना और क्षेत्र से महाजनी प्रथा और सूदखोरी को खत्म करने को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने अपना पूरा जीवन झारखंडियों के उत्थान के लिए लगा दिया।आपको बता दें कि वैसे झारखंड का सपना कई आंदोलनकारियों ने लिया जो इस लड़ाई में शहीद हो गए और कई प्रकार कि यातना भी झेली। इन्हीं में से एक शिबू सोरेन भी है जिन्होंने कई वर्षो तक जंगलों कि खाक छानी है। कई बार जेल भी गए और तब तक आंदोलन करते रहे जबतक महाजनी व सूदखोरी प्रथा को खत्म नहीं कर दिया और झारखंड को अलग राज्य नहीं बना लिया तब तक लड़ते रहे। झारखंड को अलग राज्य बनाने में शिबू सोरेन का बहुत बड़ा हाथ है।

बाबू लाल मरांडी का जन्म

पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड विधानसभा के बीजेपी विधायक दल के नेता बाबू लाल मरांडी का जन्म 11 जनवरी मनाया जाता है। यह एक किसान परिवार में जन्म लिए और इन्होंने गिरिडीह के देवरी में प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक की नौकरी की। एक बार इनकी विभागीय अधिकारियों से कुछ कहा सुनी हो गई जिसके कारण इन्होंने शिक्षा की नौकरी छोड़कर राजनीती की राह पकड़ ली।

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बाबू लाल मरांडी का चुनावी करियर

विश्व हिन्दू परिषद में सक्रीय होने के बाद बाबू लाल मरांडी ने साल 1990 में बीजेपी के संथाल परगना के संगठन मंत्री के रूप में कार्य किया। आपको बता दें कि बाबू लाल दो बार शिबू सोरेन से चुनाव में पराजित होने के बाद साल 1998 में उन्होंने शिबू सोरेन को हराया और फिर उनकी पत्नी रूपी सोरेन को 1999 में हराकर अपनी राजनीती की थाक जमाई।

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2016 में बनाई अपनी अलग पार्टी

केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में बाबू लाल मरांडी मंत्री बने और जब 2000 में झारखंड अपने अस्तित्व में आया तब आलाकमानों ने विश्वास जताते हुए उन्हें राज्य की बागडोर का दायित्व दे दिया। आपको बता दें कि दलगत मतभेद के बाद इन्होंने साल 2016 में अपनी अलग पार्टी झारखंड विकास मोर्चा नाम से अपनी एक अलग पार्टी बनाई। इसके बाद 14 साल बाद उन्होंने अपने दल को बीजेपी में विलय कर दिया। जिसके बाद एक बार फिर झारखंड में बीजेपी के सर्वमान्य नेता बन गए।

दोनों नेताओं में क्या है समानताएं

शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी में भले ही वैचारिक संबंध उतने अच्छे न हो लेकिन इन दोनों ही हस्तियों में कई समानताएं हैं। पहली समानता तो ये है कि यह दोनों नेता कोरोना संक्रमित हुए थे और संक्रमण को मात भी दे दिया। राजनितिक जीवन की बात करें तो इन दोनों ही नेताओं का मुख्यमंत्री पद काफी संघर्ष भरा रहा। आपको बता दें कि शिबू सोरेन कई बार मुख्यमंत्री बने लेकिन ज्यादा लंबा नहीं रहा पाया। वहीं बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने लेकिन उसके बाद भी वह सत्ता के सर्वोच्च पद को पाने के लिए संघर्ष करते रहे और कामयाबी हासिल नहीं हुई।

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