ऐसे बनी स्पेशल फोर्स: भयानक ट्रेनिंग के बाद तैयार होते हैं कमांडोज, कांप जाएगी रूह
देश की स्पेशल फोर्स सेना की पैरा स्पेशल फोर्स, एयर फोर्स की गरुड़ और नेवी की मार्कोस हैं। इनमें कमांडोज को सेना के जवानों में से ही चुना जाता है। इन कमांडोज का सेना के जवानों में से ही सेलेक्शन होता है।
नई दिल्ली: जब भी देश किसी विषम परिस्थिति में होता है या देशवासियों को प्राकृतिक और आकस्मिक आपदा की स्थिति में सुरक्षा घेरा देना हो तो स्पेशल कमांडो हमेशा तैयार रहते हैं। ये कमांडोज देश की थलसेना, वायुसेना और नौसेना की स्पेशल फोर्स का हिस्सा होते हैं। जिनकी मदद किसी विशेष परिस्थितियों में ही ली जाती है।
हाल ही में ली गई थी फोर्सेज की मदद
बीते महीने जुलाई में चीन से चल रही तनातनी के बीच भारत ने लद्दाख बॉर्डर पर स्पेशल फोर्सेज की तैनाती की थी। इसके अलावा हाल ही में मध्यप्रदेश के बाढ़ग्रस्त इलाकों में फंसे हुए हजारों लोगों को बाहर निकालकर सुरक्षित राहत बचाव कैंप्स में शिफ्ट करने तक इन कमांडोज की मदद ली गई थी।
देश की स्पेशल फोर्स सेना की पैरा स्पेशल फोर्स, एयर फोर्स की गरुड़ और नेवी की मार्कोस हैं। इनमें कमांडोज को सेना के जवानों में से ही चुना जाता है। इन कमांडोज का सेना के जवानों में से ही सेलेक्शन होता है। तो चलिए आपको बताते हैं कि इन तीनों फोर्सेस और उनकी विशेषताओं के बारे में-
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सेना की पैरा स्पेशल फोर्स
भारतीय थलसेना की एलीट कमांडो फोर्स पैरा रेजीमेंट की स्थापना साल 1941 में हुई थी। लेकिन 1965 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग के बाद स्पेशल कमांडो यूनिट की जरुरत महसूस होने पर एक जुलाई 1966 को सेना की पहली स्पेशल फोर्स 9 पैरा यूनिट की स्थापना हुई। इसका बेस ग्वालियर में बनाया गया।
बता दें कि पैरा कमांडो को तैयार करने के लिए तीन महीनों की कठिन ट्रेनिंग दी जाती है। ये इतनी कठिन होती है कि इसे कुछ सैनिक ही सफलतापूर्वक पूरा कर पाते हैं। 90 दिनों की ट्रेनिंग के दौरान जवानों के शारीरिक, मानसिक और इच्छा शक्ति को परखा जाता है। इन जवानों को दिनभर में पीठ पर 30 किलो का सामान, जिसमें हथियार और साजो सामान शामिल होते हैं, उठाकर 30 से 40 किमी की दौड़ लगानी पड़ती है।
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भारतीय वायुसेना के गरुड़ कमांडो
भारतीय वायुसेना की स्पेशल फोर्स यानी गरुड़ कमांडो इमरजेंसी और बचाव कार्यों में माहिर होते हैं। इनकी भी ट्रेनिंग काफी मुश्किल होती है, जो कि अधिकतर जवान पूरी करने में असफल हो जाते हैं। बता दें कि इन जवानों तीन साल तक अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग से हर परिस्थिति के लिए तैयार बनाया जाता है।
इसके तहत योग्य पाए गए जवानों को 52 हफ्तों तक बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के अलग-अलग चरण में जवानों को NSG और पैरामिलिट्री फोर्सेस की मदद से स्पेशल ऑपरेशन्स के बारे में पढ़ाया और सिखाया जाता है। इसमें जंगल वॉरफेयर और स्नो सर्वाइकल आदि भी शामिल हैं।
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भारतीय नौसेना के मार्कोस कमांडो
नौसेना के मार्कोस कमांडो की स्विमिंग स्किल्स काफी बेहतरीन होती है। इन्हें ट्रेन करने के दौरान इनके हाथ-पैर बांधकर पानी में फेंक दिया जाता है। जिसके बाद पानी में इन्हें पांच मिनट बिताने होते हैं। बता दें कि कमांडोज का फिजिकल टेस्ट इतना टफ होता है कि 80 पर्सेंट आवेदक शुरुआत के तीन दिन में ही इसे छोड़ देते हैं।
मार्कोस कमांडो का प्रशिक्षण दुनिया के बाकी प्रशिक्षणों में सबसे ज्यादा कठिन होता है। इसमें चयन प्रक्रिया के चार चरण होते हैं।
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