गर्दिश में सितारे
पूर्वांचल के सियासी केन्द्र गोरखपुर के लोगों ने मनोज तिवारी को साधारण से भोजपुरी गायक से राजनेता बनने के सफर को देखा है। नब्बे के दशक में गोरखपुर के लोगों ने मनोज तिवारी को दुर्गा पूजा में जागरण में गाते सुना है। वहीं उनकी कई हिट फिल्मों की शूटिंग भी गोरखपुर में हुई है। उनकी सियासी लांचिंग भी गोरखपुर में ही हुई।
पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: भोजपुरी गायकी, फिल्मी सफर या फिर राजनीति। तीनों ही क्षेत्रों में भाजपा सांसद मनोज तिवारी को पहचान गोरखपुर में ही मिली। यूं कहें कि मनोज तिवारी के उभार की पटकथा गोरखपुर में ही लिखी गई तो गलत नहीं होगा। दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष पद से अचानक हटाये जाने के बाद पूर्वांचल के सियासी गलियारे से लेकर सोशल मीडिया पर मनोज तिवारी को लेकर खूब प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कोई उन्हें सियासत का अपरिपक्व खिलाड़ी बता रहा है, किसी को जबरदस्त वापसी की उम्मीद है। इस सियासी उठापटक के बीच सवाल उठ रहा है कि क्या भोजपुरी सितारों के गर्दिश के दिन शुरू हो गए हैं?
जबरदस्त फैन फालोइंग
इसमें दो राय नहीं कि पूर्वांचल में मनोज तिवारी की जबरदस्त फैन फालोइंग हैं। उनकी गायकी को लेकर किसी के मन में किसी प्रकार का संदेह नहीं है, लेकिन सियासत में वह हमेशा से ही सवालों में रहे। यह अलग बात है कि वह दिल्ली की सीट से सांसद हैं। बहरहाल, मनोज तिवारी को दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष पद की कुर्सी से हटाये जाने के बाद भाजपा से जुड़े लोग संगठन के निर्णय की बात कहते हुए कन्नी काट ले रहे हैं लेकिन विरोधी दलों के नेता पुराने अनुभवों के आधार पर घेरते दिख रहे हैं।
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क्या होगा भविष्य
इस उठापटक के बीच सवाल उठने लगा है कि मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने का पूर्वांचल की सियासत पर असर पड़ेगा? क्या सितारों की सियासत का असर इस कार्रवाई का पड़ेगा? पूर्वांचल में मनोज तिवारी के राजनीतिक हस्तक्षेप पर असर पड़ेगा या नहीं? बहरहाल, पूर्वांचल में नेताओं के बयानों से संकेत मिलने लगे हैं। उनकी ही पार्टी के गोरखपुर सदर सीट से विधायक डॉ.राधा मोहन दास अग्रवाल की फेसबुक पोस्ट के निहितार्थ को समझा जा सकता है। विधायक लिखते हैं कि दिल्ली भाजपा अध्यक्ष तथा सांसद मनोज तिवारी दिल्ली पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए। दिल्ली पुलिस भारत सरकार के निर्देश पर काम करती है मुख्यमंत्री के नहीं। वे लॉकडाउन तोड़कर दिल्ली में कोरोना को नियंत्रित करने में असफलता और अव्यवस्था का विरोध कर रहे थे। वो पहले भी ऐसी गैर-जिम्मेदाराना आचरण करते रहे हैं। लेफ्टिनेंट गवर्नर की प्रशंसा की जानी चाहिए।
लंबा सफर
दरअसल, पूर्वांचल के सियासी केन्द्र गोरखपुर के लोगों ने मनोज तिवारी को साधारण से भोजपुरी गायक से राजनेता बनने के सफर को देखा है। नब्बे के दशक में गोरखपुर के लोगों ने मनोज तिवारी को दुर्गा पूजा में जागरण में गाते सुना है। वहीं उनकी कई हिट फिल्मों की शूटिंग भी गोरखपुर में हुई है। उनकी सियासी लांचिंग भी गोरखपुर में ही हुई। वर्ष 2009 में मनोज तिवारी ने वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा था। जनसभाओं में जुटने वाली भीड़ को आधार मानकर वह खुद को सांसद ही मान बैठे थे। चुनाव परिणाम आया तो योगी आदित्यनाथ सांसद बने। दूसरे स्थान पर बाहुबली पंडित हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय शंकर तिवारी दूसरे नंबर पर तो वहीं मनोज तिवारी को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।
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राजनीति में पिछलग्गू
मनोज तिवारी गायकी और भोजपुरी फिल्मों में भले ही बुलंदियों पर पहुंचे लेकिन राजनीति में वह पिछलग्गू की ही भूमिका में रहे। उन्हें संघर्ष के दिनों के गवाह वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द राय कहते हैं कि मनोज तिवारी दूसरे की तैयार पिच पर ही सियासी बैटिंग करते रहे। गोरखपुर में अमर सिंह से करीबी रिश्ते के चलते उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट मिला। तब वह एक पत्रकार से फिल्म सिटी के सवाल पर भिड़ गए थे। उन्होंने दावा किया था कि वह चुनाव में जीतें या हारे फिल्मसिटी उनकी प्राथमिकता होगी।
वर्तमान में उनकी ही पार्टी के रविकिशन सांसद हैं, लेकिन फिल्म सिटी की बात उन्हें याद भी नहीं है। लोकसभा चुनाव में उनके साथ रहे तत्कालीन सपा महानगर अध्यक्ष जियाउल इस्लाम का कहते हैं कि महत्वाकांक्षी होना ठीक है, लेकिन शार्टकट से राजनीति में मंजिल पाने वालों का ऐसा ही हश्र होता है।
सुबह देर से उठना, जनता से झूठे वायदे करना मनोज तिवारी की आदत रही है। पार्टी के नाम पर लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सात सीटें जीतने वाले मनोज तिवारी की सियासी हैसियत दिल्ली चुनाव में पता चल गई। पत्रकार अरविन्द राय कहते हैं कि गायकी और राजनीति में काफी अंतर होता है। मनोज इस अंतर को पाटने में कामयाब नहीं हुए। जिससे उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी गंवानी पड़ी।
मनोज तिवारी के साथ गायकी का मंच साझा करने वाले लोकगायक राकेश श्रीवास्तव का कहना है कि गोरखनाथ मंदिर में ही मनोज तिवारी की सुपर हिट फिल्म 'ससुरा बड़ा पइसा वाला' की शूटिंग हुई थी। गोरखपुर से गायकी परवान चढ़ी। सियासत की पहली परीक्षा उन्होंने गोरखपुर में दी। मनोज तिवारी के प्रशंसक और सीमेंट कारोबारी अनुपम मिश्रा कहते हैं कि असुरन में दुर्गा पूजा समिति द्वारा मनोज तिवारी को बुलाया गया था। वैसी भीड़ अभी तक नहीं देखी। लेकिन दिल्ली की सियायत में उनकी नासमझी को लेकर साफ हो गया कि गायकी, अभिनय और सियासत में काफी अंतर होता है।
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पूर्वांचल की राजनीति में दखल
मनोज तिवारी वर्तमान में उत्तर पूर्वी दिल्ली से सांसद हैं। वह दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 3.66 लाख से अधिक मतों के अंतर से हराकर दूसरी बाद संसद पहुंचे थे। दिल्ली की सियासत में मजबूत दखल के साथ ही मनोज तिवारी पूर्वांचल में भी खासा हस्तक्षेप रखते हैं। बीते लोकसभा चुनाव में गोरखपुर से रवि किशन और आजमगढ़ सीट से दिनेश लाल यादव निरहुआ को टिकट दिलाने में मनोज तिवारी की अहम भूमिका रही थी। वह रविकिशन को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पारंपरिक गोरखपुर सीट से टिकट दिलाने में सफल हुए थे। वह भी तब जब योगी के करीबी धर्मेन्द्र सिंह का यहां से लड़ना तय माना जा रहा था। गोरखपुर और आजमगढ़ से अपनी पंसद का उम्मीदवार उतारकर मनोज तिवारी ने दिल्ली की सियासत में भी मजबूत हस्तक्षेप किया। दिल्ली में पूर्वांचल के 70 हजार से अधिक लोग हैं, मनोज तिवारी भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार रवि किशन और निरहुआ को राजनीतिक मैदान में उतारकर पूर्वांचल के वोटों पर कब्जे को लेकर सियासी कवायद की थी।
प्रवासी मजदूरों में है नाराजगी
लॉकडाउन में दिल्ली में रहने वाले प्रवासी मजदूरों की जिस प्रकार दुर्दशा हुई है उसे लेकर मनोज तिवारी के खिलाफ गुस्सा है। दिल्ली से पैदल गोरखपुर अपने गांव भटहट आने वाले जितेन्द्र कुशवाहा कहते हैं कि दिल्ली में जब हम दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे थे तो वे लोग नहीं दिखे जो पूर्वांचल का होने के नाते वोट मांगते थे।
महराजगंज के रानू सिंह पिछले 15 वर्षों से दिल्ली में रह रहे हैं। परिवार सहित वापस घर लौटे रानू कहते हैं कि दिल्ली सरकार को लोकल लोगों की ही फिक्र है। लेकिन मनोज तिवारी तो अपने थे। पूर्वांचल के थे। लेकिन उन्होंने भी पूर्वांचल के लोगों के लिए कुछ नहीं किया। दिल्ली बार्डर पर बसों की व्यवस्था तब की गई जब 20 फीसदी लोगों भी दिल्ली में नहीं रह गए।
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'आंटी से स्पीक दिहा.. मंगरुआ सिक-आर बा'
सांसद मनोज तिवारी को लेकर पूर्वांचल में लोगों के फेसबुक और ट्वीटर एकाउंट पर खूब व्यंग्य कसे जा रहे हैं। उनके हिट गीतों के सहारे सियासी प्रतिक्रियाएं दी जा रही हैं। व्यंग्यकार शैलेश त्रिपाठी उर्फ मोबाइल बाबा ने फेसबुक पोस्ट लिखा कि 'चट्ट देनी मार दिहलें खींच के तमाचा।' उनका इशारा राजनीतिक के जानकारों को अच्छी तरह समझ में आ रहा है। वह फेसबुक पर लिखते हैं कि कोई बता रहा था कि मनोज तिवारी को दिल्ली से इस लिए हटाया गया है ताकि इनको अब बड़ी जिम्मेदारी देते हुए अमेरिका का राष्ट्रपति बनाया जाएगा उसके बाद रिंकिया के पापा बिना मास्क के शिकागो में बेसबाल खेलते दिखाई देंगे और गाएंगे....., वाशिंगटन से कॉलिंग हईं.., गुड समाचार बा, आंटी से स्पीक दिहा.. मंगरुआ सिक-आर बा।
रवि किशन भी मनोज तिवारी की राह पर
लॉकडाउन में जब गोरखपुर के लोग अपने सांसद रवि किशन को अपने बीच तलाश रहे थे तब वे मुंबई से ही वीडियो कान्फ्रेसिंग के जरिये कुशलक्षेम पूछ रहे थे। कहने को रवि किशन के पास दलील है कि उनके लोग जरूरतमंदों के बीच राशन पहुंचा रहे थे। मदद कर थे। लेकिन तमाम ऐसे मामले थे, जहां सांसद का हस्तक्षेप जरूरी था। गोरखपुर के जनप्रिय विहार निवासी कैंसर पीड़ित बैजनाथ के प्रकरण को लेकर सांसद के प्रति परिवार वालों में गुस्सा है। स्थानीय पार्षद ऋषि मोहन वर्मा के कहने पर सांसद ने कैंसर पीड़ित से वीडियो कान्फ्रेंसिंग से बात की।
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जब बैजनाथ ने कीमोथेरेपी को लेकर आर्थिक मदद की बात कही तो सांसद ने उन्हें बेफिक्र रहने की नसीहत दे डाली। 13 मार्च को गोरखनाथ मंदिर से निकली बैजनाथ की मदद की फाइल अभी भी गोरखपुर से लेकर लखनऊ के अफसरों के लिए खिलौना बनी हुई है। इसी बीच 27 मई को इलाज के अभाव में बैजनाथ की मौत हो गई। सांसद इस बीच गोरखपुर लौटे लेकिन उन्होंने परिवार के लोगों को ढांढस बंधाने भी नहीं पहुंचे। अलबत्ता स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह के सामने पूरा प्रकरण रखकर उन्होंने खुद की सक्रियता जताने की भरपूर कोशिश की। बैजनाथ की बेटी कहती है कि सांसद ने पिता को इलाज को लेकर बेफिक्र होने के लिए कहा था, दुर्भाग्य यह है कि वे खुद ही बेफिक्र हो गए।
प्रदेश कांग्रेस महासचिव विश्वविजय सिंह कहते हैं कि सांसद रविकिशन बीते 28 मई को हवाई जहाज से गोरखपुर पहुंचे। केन्द्र सरकार की गाइड लाइन के मुताबिक उन्हें 14 दिन का होम क्वारंटीन होना था। लेकिन वह पार्टी कार्यकर्ताओं को अंगवस्त्र भेट करने में व्यस्त रहे। उन्हें बैजनाथ के परिवार के लिए एक पल नहीं मिला।