अराजक होते विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगाएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला
शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ 100 दिनों से अधिक समय तक धरना चला था और इस दौरान आवागमन भी पूरी तरह ठप हो गया था। शीर्ष अदालत के इस फैसले को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि भविष्य में यह नजीर का काम भी काम करेगा।
नई दिल्ली: सार्वजनिक रास्ता रोककर प्रदर्शन और धरना देने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ऐसी हरकत को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। विरोध के नाम पर हम लोगों के आवागमन के अधिकार को नहीं छीन सकते। सुप्रीम कोर्ट का फैसला नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ शाहीन बाग में दिए जा रहे धरने के संबंध में आया है।
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शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ 100 दिनों से अधिक समय तक धरना चला था
शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ 100 दिनों से अधिक समय तक धरना चला था और इस दौरान आवागमन भी पूरी तरह ठप हो गया था। शीर्ष अदालत के इस फैसले को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि भविष्य में यह नजीर का काम भी काम करेगा।
पुलिस और प्रशासन के लोगों को अदालतों के पीछे छिपने के बजाय खुद आगे आकर कार्रवाई करनी चाहिए
शीर्ष अदालत ने कहा कि पुलिस और प्रशासन के लोगों को अदालतों के पीछे छिपने के बजाय खुद आगे आकर कार्रवाई करनी चाहिए। सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा जमाकर लोगों को आने-जाने से रोकने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि चाहे शाहीन बाग हो या कोई अन्य जगह, सार्वजनिक स्थानों और रास्तों को बेमियादी अवधि तक बाधित या कब्जाया नहीं जा सकता। शीर्ष अदालत ने सुनवाई पूरी करने के बाद 21 सितंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
असहमति और लोकतंत्र साथ-साथ चलते हैं
अदालत ने यह टिप्पणी भी की है कि भले ही संविधान के तहत शांतिपूर्ण विरोध करने का अधिकार मिला हो मगर विरोध प्रदर्शन अथॉरिटी की तरफ से तय स्थल पर ही किया जाना चाहिए। असहमति और लोकतंत्र साथ-साथ चलते हैं। सार्वजनिक रास्तों पर प्रदर्शन करने से काफी संख्या में लोगों को आवागमन में दिक्कत होती है और उनके अधिकारों का हनन होता है। किसी भी प्रदर्शन से अन्य लोगों को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।
पीठ ने कहा कि हर मौलिक अधिकार चाहे वह व्यक्तिगत हो या किसी वर्ग का, उसे अकेले नहीं देखा जा सकता। उसे दूसरों के अधिकार के साथ जोड़कर ही देखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में यह प्रवृत्ति आमतौर पर देखी गई है कि विरोध प्रदर्शन के नाम पर लोग सड़कों और रेल पटरियों पर कब्जा जमा लेते हैं।
CCA के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में गत वर्ष 15 दिसंबर को महिलाएं धरने पर बैठ गई थीं
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में गत वर्ष 15 दिसंबर को महिलाएं धरने पर बैठ गई थीं। बाद में दूसरे लोग भी धरने में शामिल हो गए और इससे अन्य लोगों को काफी परेशानी हुई। इस धरने के दौरान दिल्ली के कई इलाकों को जोड़ने वाली सड़क पूरी तरह ब्लॉक कर दी गई थी।
इस धरने के कारण काफी दिनों तक इलाके के बाजार बंद रहे। आम लोगों के साथ ही स्कूली बच्चों को भी कई किलोमीटर घूम कर स्कूल जाना पड़ा। धरने को समाप्त कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से मध्यस्थ भी नियुक्त किए गए थे मगर वे भी धरने को समाप्त कराने में नाकाम रहे। आखिरकार कोरोना के कारण धारा 144 लागू की गई तो दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई करते हुए गत 23 मार्च को प्रदर्शनकारियों को शाहीन बाग से हटाया।
कृषि विधेयकों के खिलाफ इस समय देश के कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन का दौर चल रहा है
हाल में संसद की ओर से पारित कृषि विधेयकों के खिलाफ इस समय देश के कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन का दौर चल रहा है। इन विधेयकों का खासकर पंजाब और हरियाणा में ज्यादा विरोध किया जा रहा है और कई स्थानों पर किसानों में सार्वजनिक रास्तों और रेल पटरियों पर कब्जा कर रखा है। रेल पटरियों पर किसानों के कब्जे के कारण पंजाब में कई ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है। ट्रेनों को रद्द किए जाने से ऐसे लोगों का आवागमन में काफी दिक्कतें उठानी पड़ी है जिन्हें जरूरी काम से दूसरे स्थानों पर जाना था। यह स्थिति केवल पंजाब में ही नहीं है। देश के अन्य इलाकों में भी विरोध प्रदर्शन के नाम पर सार्वजनिक स्थानों और रेल पटरियों पर कब्जा करने की प्रवृत्ति आमतौर पर देखी गई है।
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ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है और भविष्य में पुलिस इस फैसले के आधार पर कार्रवाई जरूर करेगी। अदालत ने साफ तौर पर कहा है कि पुलिस और प्रशासन के अधिकारी अदालत के पीछे नहीं छिप सकते। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रदर्शनकारियों को इस बात का ध्यान रखना होगा और इसके साथ ही पुलिस और प्रशासन के लोगों को भी अपनी जिम्मेदारियां निभानी होंगी।
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