पत्तों में तलाशा रोजगार, परिवर्तन का प्रतीक बनीं थारू महिलायें

थर्माकोल और प्लास्टिक के कप-प्लेटों पर प्रतिबंध लगने के बाद बाजार में पत्तों के बने दोने-पत्तलों की मांग बढ़ी तो थारू जाति की महिलाओं ने इसे अवसर के रूप में लिया और अपनी आजीविका का साधन बना लिया।

Update:2019-03-18 14:53 IST

जो कुदरत के साथ रहते हैं कुदरत उनका साथ कभी नहीं छोड़ती। प्रकृति और थारू जनजाति का आदि से ही गहरा नाता रहा है। संकटकाल में कभी ये कुदरत का साथ देते नजर आते हैं ता कभी कुदरत इनका। कुदरत के साथ कदम से कदम मिलाते हुए इस समुदाय ने सदियों से अपना अस्तित्व कायम रखा है। अंधाधुंध विकास की परिपाटी में प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ से धीरे—धीरे करके इनके रोजगार व आय स्रोत छिनते जा रहे हैं। ऐसी हतोत्साही स्थिति में एक बार फिर कुदरत इनके सच्चा साथी बनकर हाजिर हुई है।

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विलुप्त हो गया था रोजगार, फिर आयी जान

पेड़ के पत्ते से दोना पत्तल बनाने का इनका पुश्तैनी धंधा थर्माकोल के बढ़ते चलन से विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया था। अब इस पर प्रतिबंध होने के बाद थारू महिलाओं ने एक बार फिर एकजुट होकर यह धंधा शुरू कर दिया है। इसके लिए दस किलोमीटर जंगल के दुर्गम रास्तों से होकर पहाड़ पर जाती हैं। जहां महुराइन प्रजाति के पेड़ के पत्ते तोड़कर उनसे दोना, पत्तल, टेपरा, टिवरी, छतरी, बिस्तुर व खोली तैयार करती हैं। महुराइन के पत्ते लतादार होने से उन्हें मनचाहा आकार दिया जाता है। साथ ही पेड़ की छाल से रस्सी बनाई जाती है, जो काफी मजबूत होती है। थर्माकोल और प्लास्टिक के कप-प्लेटों पर प्रतिबंध लगने के बाद बाजार में पत्तों के बने दोने-पत्तलों की मांग बढ़ी तो थारू जाति की महिलाओं ने इसे अवसर के रूप में लिया और अपनी आजीविका का साधन बना लिया।

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​महिलाओं ने भुनाया अवसर

महुराइन प्रजाति के पत्तों से बने दोना-पत्तल की मांग बढ़ी तो पचपेड़वा क्षेत्र के जंगलवर्ती गांव फोगही की थारू महिलाओं ने इसमें अपने लिए रोजगार तलाश लिया। जंगल से पत्ते तोड़कर उसे हाथों से मनचाहा आकार देती हैं। इस काम में पुरुष भी उनका हाथ बंटाते हैं। उनके द्वारा तैयार किए गए दोनों-पत्तलों की बनावट व हरापन बाजार में बिकने वाले रेडीमेड दोना-पत्तल को मात दे रहे हैं। आसपास के बाजारों में थारू पत्तल की मांग अधिक है। इससे महिलाओं की अच्छी आमदनी भी होती है। भारत-नेपाल की सीमा पर बसे फोगही गांव में 105 थारू परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं।

क्या है महुराइन की खासियत

महुराइन का पेड़ जंगलों में पाया जाता है, जिसे थारू जनजाति बेहद पवित्र मानती है और भोजन के लिए इसी पत्ते को थाली के रूप में इस्तेमाल करती है।

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