बायो वेस्टः कोरोना काल में विकराल होता संकट, कैसे बचेंगे इससे
कोरोना वायरस से बचाव के लिए जितना जरूरी सोशल डिस्टेंसिंग और फेस मास्क के प्रयोग जैसे सुरक्षा नियमों का पालन है, उतना ही जरूरी इसके कचरे का निपटारा है।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस से बचाव के लिए जितना जरूरी सोशल डिस्टेंसिंग और फेस मास्क के प्रयोग जैसे सुरक्षा नियमों का पालन है, उतना ही जरूरी इसके कचरे का निपटारा है। अगर कोरोना वायरस से संबंधित कचरे को ठीक तरह से निपटाया न जाए तो ये बीमारी फैलने का एक बड़ा कारण बन सकता है। एक अनुमान है कि देश में रोजाना 101 टन कोविड कचरा पैदा हो रहा है। जैसे जैसे मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही वैसे ही इसके निपटान की बहुत बड़ी समस्या पैदा हो रही है। जिसके समाधान पर कोई चिंता जाहिर नहीं की जा रही।
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केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा
हाल ही में एनजीटी में पेश अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा था कि देश में लगभग आधे से अधिक अस्पताल, नर्सिंग होम और स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं जिन्हें बायोमेडिकल कचरे के निपटारे से संबंधित अनुमति नहीं है। तेज़ी से बढ़ रहे संक्रमण के मामलों के साथ ही उत्तर प्रदेश में भी बायोमेडिकल कचरे का निपटारा एक चुनौती बन गया है। हालांकि सरकार का कहना है कि उसके पास इस कचरे के निपटारे के समुचित उपाय मौजूद हैं लेकिन राज्य के अलग-अलग हिस्सों से आ रही मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि कईं जगहों पर यह कचरा ऐसे ही खुले में फेंका जा रहा है, जिससे संक्रमण का ख़तरा और बढ़ गया है।
कोविड मेडिकल कचरा
कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज के दौरान इस्तेमाल होने वाली हर चीज, जैसे कि सुई, रूई, पट्टी, खाली बोतलें और शाशियां, मास्क, दस्ताने और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) आदि को कोविड कचरा माना जाता है और ये बायोमेडिकल कचरे की श्रेणी में आता है। भारत में कोरोना से संबंधित कचरे के निपटारे के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गाइडलाइंस जारी की हुई हैं। बोर्ड ने आइसोलेशन वार्ड और क्वारंटाइन केंद्र के लिए अलग-अलग गाइडलाइंस जारी की हैं।
आइसोलेशन वार्ड
आइसोलेशन वार्ड के लिए बोर्ड की गाइडलाइंस के अनुसार, कोरोना वायरस के मरीजों का कचरा डबल लेयर के बैग में इकट्ठा करना जरूरी है ताकि कोई लीकेज न हो। गाइडलाइंस में कोरोना के कचरे के लिए अलग डस्टबिन इस्तेमाल करने और इस डस्टबिन पर साफ-साफ "कोविड-19" लिखने को कहा गया है। बायोमेडिकल कचरा के निवारण करने वाली संस्थाओं को ये कचरा थमाने से पहले इन्हें एक अस्थाई स्टोरेज रूम में रखना होगा।
रोजाना धोना जरूरी
गाइडलाइंस में कोरोना वायरस से संबंधित कचरे को रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कंटेनरों, डिब्बों और ट्रॉलियों की बाहरी और अंदरूरी सतहों को एक प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइट के घोल से रोजाना धोने की बात भी कही गई है।
क्वारंटाइन केंद्र
क्वारंटाइन केंद्रों और होम क्वारंटाइन के लिए अपनी गाइडलाइंस में बोर्ड ने कोरोना वायरस से संबंधित कचरे को अलग पीले रंग के बैगों में रखने को कहा है। इस कचरे को सीधे बायोमेडिकल कचरे के निपटान वाले कर्मचारियों के हवाले करना है। बायो कचरे के निपटान के संचालकों को सुनिश्चित करना है कि इस कचरे को इकट्ठा करने और निपटाने के काम में लगे कर्मचारियों को नियमित तौर पर सैनिटाइज किया जाए। कर्मचारियों को तीन लेयर का मास्क समेत उचित पीपीई भी प्रदान करना होगा।
गाइडलाइंस के मुताबिक, प्रशासन को कोरोना वायरस से संबंधित कचरा इकट्ठा करने के लिए एक अलग वाहन इस्तेमाल करना होगा और हर यात्रा के बाद इन्हें सोडियम हाइपोक्लोराइट या अन्य किसी केमिकल डिसइंफेक्टेंट से सैनिटाइज करना होगा।
घर-घर से कचरा उठाने के लिए कर्मचारियों की एक अलग टीम बनाने को भी कहा गया है। इस टीम को सैनिटाइजेशन और बायोमेडिकल कचरा इकट्ठा करने से संबंधित सभी सावधानियों की ट्रेनिंग प्रदान करनी होगी।
मास्क और दस्ताने
फेस मास्क और दस्तानों से संबंधित गाइडलाइंस में इन्हें काट कर एक कागज के थैले में रखने और इसके बाद ही कूड़ेदान में डालने को कहा गया है। यह जरूरी नहीं कि ये मास्क और दस्ताने संक्रमित व्यक्ति ने ही इस्तेमाल किए हों, आम लोग भी इस तरीके का इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि इस कचरे को घर के आम कचरे में मिलाने से पहले 72 घंटे कागज के थैले में रखना जरूरी है।
रोजाना पैदा हो रहा 101 टन कोविड कचरा
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सौंपी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में रोजाना 101 टन कोविड कचरा पैदा हो रहा है। इसके अलावा 609 टन बायोमेडिकल कचरा पहले से ही पैदा हो रहा है। महाराष्ट्र में कोरोना का सबसे अधिक 17.5 टन कचरा पैदा हो रहा है, वहीं गुजरात में 11.69 टन और दिल्ली में 11.11 टन कचरा पैदा हो रहा है। इन कचरे के निपटारे के लिए देशभर में 120 केंद्र हैं जिनमें रोजाना 840 टन बायोमेडिकल कचरे का निपटारा किया जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक, देश कचरे के निपटारे की अपनी 55 प्रतिशत क्षमता का ही इस्तेमाल कर रहा है। हालांकि बिहार, दिल्ली, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों में ये आंकड़ा 70 प्रतिशत तक पहुंच गया है और उन्हें अन्य केंद्रों की व्यवस्था करने को कहा है।
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साल 2019 तक देश भर के कुल 2.70 लाख अस्पतालों/स्वास्थ्य केंद्रों में से 1.1 लाख ने ही बायोमेडिकल कचरे के संबंध में ज़रूरी अनुमति ली है। बाकी के 1.6 लाख अस्पताल/स्वास्थ्य केंद्र बिना अनुमति के अवैध रूप से चल रहे हैं। इसके अलावा 1.1 लाख अस्पतालों/स्वास्थ्य केंद्रों ने इसके लिए आवेदन किया है जबकि लगभग 50 हज़ार अस्पताल/स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं जिन्होंने इसके लिए आवेदन तक नहीं किया।
देश के 7 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों-अरुणाचल प्रदेश, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, गोवा, लक्षद्वीप, मिज़ोरम, नागालैंड और सिक्किम- में बायोमेडिकल कचरे के निपटारे के लिए कोई सार्वजनिक सुविधा नहीं है।
ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर राज्यों को निर्देश दिया कि वो शीघ्र ही इस संबंध में कार्रवाई कर 31 दिसंबर 2020 तक बोर्ड को अपनी रिपोर्ट जमा करें। एनजीटी ने बायोमेडिकल कचरे के निपटारे की निगरानी के लिए हर ज़िले में एक कमेटी बनाने का भी निर्देश दिया।
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