क्या भविष्य वक्ता थे गांधी: जो तब कहा आज सच हो रहा, दुनिया कर रही नमन

महात्मा गाँधी के द्वारा समय समय पर व्यक्त किये गए उनके विचार। विभिन्न अवसरों पर दिये गए उनके भाषण आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने तब थे। वरना कोई आश्चर्य नहीं कि पूरी दुनिया आज के समय में भी महात्मा गाँधी के विचारों को मान रही है और उनके द्वारा दिखाये गये रास्ते पर चल रही है।

Update: 2021-01-29 08:13 GMT
क्या भविष्य वक्ता थे गांधी: जो तब कहा आज सच हो रहा, दुनिया कर रही नमन

रामकृष्ण वाजपेयी

देश को आजाद हुए 75 साल होने जा रहे है, बीते इन सालों में बहुत कुछ बदल गया। नए नए आविष्कार हो गए। भारत विश्व के चुनिंदा देशों की कतार में आ गया। वैश्विक स्तर पर भी तमाम समीकरण बदल गए देशों की सीमाओं में परिवर्तन हो गए लेकिन बीते इन सालों में अगर नहीं बदले तो गांधी के विचार और उनकी प्रासंगिकता। महात्मा गाँधी के द्वारा समय समय पर व्यक्त किये गए उनके विचार। विभिन्न अवसरों पर दिये गए उनके भाषण आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने तब थे। वरना कोई आश्चर्य नहीं कि पूरी दुनिया आज के समय में भी महात्मा गाँधी के विचारों को मान रही है और उनके द्वारा दिखाये गये रास्ते पर चल रही है।

सांप्रदायिक दंगो ने महात्मा गाँधी को झकझोर के रख दिया था

परमाणु हथियारों की होड़ से बाहर निकल कर आज जब हम वैश्विक शांति के रास्ते पर बढ़ना चाहते हैं तब अहिंसा के सिद्धांत और महात्मा गाँधी के विचार और भी अधिक महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हो जाते है, क्योंकि महात्मा गाँधी द्वारा दिखाये मार्ग पर चलकर ही हम एक शांतिपूर्ण और हथियार मुक्त विश्व की रचना कर सकते हैं।

बहुत ही महत्वपूर्ण है महात्मा गाँधी द्वारा अपने आखिरी उपवास से एक दिन पहले 12 जनवरी 1948 को दिया गया भाषण। ये उस समय की बात है जब देश भर में हो रहे सांप्रदायिक दंगो ने महात्मा गाँधी को झकझोर के रख दिया था। दंगो के बाद के दृश्य ने उन्हें बहुत ही दुखी कर दिया था। उन्होंने लोगो में भाईचारा और प्रेम बढ़ाने के लिए उपवास शुरु कर दिया था। यह भाषण महात्मा गाँधी का आखिरी भाषण था, जो उन्होंने अपने हत्या से कुछ हफ्ते पहले दिया था।

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इस्लाम की बर्बादी देखने से अच्छा, मृत्यु को गले लगाना-महात्मा गांधी

महात्मा गांधी ने कहा था “उपवास की शुरुआत कल खाना खाने के समय के साथ होगी और इसका अंत तब होगा जब मैं इस बात से संतुष्ट हो जाउगा कि सभी समुदायों के बीच बिना किसी दबाव के एक बार फिर से स्वयं के अंतर्मन से भाईचारा स्थापित हो जायेगा।” उन्होंने कहा था “निसहायों के तरह भारत, हिंदुत्व, सिख धर्म और इस्लाम की बर्बादी देखने से अच्छा मृत्यु को गले लगाना, मेरे लिए कही ज्यादे सम्मान जनक उपाय होगा।”अपने इस भाषण में उन्होंने गलत कार्यो के खिलाफ दंड स्वरुप उपवास के महत्व को समझाया। सभी धर्म के लोगो से एक-दूसरे के साथ समभाव और भाईचारा बढ़ाने की अपील की।

ये बात आज भी गौर करने की है कि वह देश भर में लोगो के बीच धर्म के नाम पर उत्पन्न शत्रुता से काफी उदास थे और उन्होंने कहा कि उनके लिए देश के लोगों के बीच धर्म के नाम पर हो रही हत्या देखने से कही आसान मृत्यु को गले लगाना होगा। कश्मीर मुद्दे पर गांधी ने 4 जनवरी 1948 को अपने भाषण में कहा था “आज के समय हर तरफ युद्ध की चर्चा है। हर कोई इस बात से डर रहा है कि कही दोनो देशो के मध्य युद्ध ना छीड़ जाये। अगर ऐसा हुआ तो यह भारत और पाकिस्तान दोनो के लिए हानिकारक होगा।”

“इसलिए मैं पाकिस्तान के नेताओं से विनम्र निवेदन करना चाहुंगा कि भले ही अब हम दो अलग-अलग देश है, जो कि मैं कभी नही चाहता था, लेकिन फिर भी इन मतभेदों के बाद भी चाहे तो सहमति और शांतिपूर्वक एक-दूसरे के पड़ोसी के रुप में रह सकते हैं।”

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2 अप्रैल 1947 को गाँधी का दिल को छू लेने वाला भाषण

इसके एक साल पहले अंतर-एशियाई संबंध सम्मेलन में गाँधी ने दिल को छू लेने वाला भाषण 2 अप्रैल 1947 को दिया था। गांधी ने कहा था “मेरे प्रिय मित्रों आपने असली भारत नही देखा है, और ना ही आप वास्तविक भारत के मध्य इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। दिल्ली, बाम्बे, मद्रास, कलकत्ता, लाहौर जैसे ये बड़े शहर पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित है, जिनमें असली भारत नही बसता। वास्तविक भारत हमारे देश के साधारण गांवो में बसता हैं।”

महात्मा गांधी ने कहा था “निश्चित रुप से आज पश्चिम ज्ञान का केंद्र है और यह कई परमाणु बमों के समान है, क्योंकि परमाणु बमों का अर्थ सिर्फ विध्वंस होता है जो सिर्फ पश्चिम को ही नही बल्कि की पूरे विश्व को प्रभावित करेगा। यह एक प्रकार से उस जल-प्रलय के समान होगा, जिसका उल्लेख बाइबल में किया गया है।”

गौरतलब है कि 22 जनवरी से दुनिया परमाणु निशस्त्रीकरण की दिशा में ऐतिहासिक संधि लागू कर आगे बढ़ी है लेकिन गांधी ने तो पश्चिम की संस्कृति और भारत की आत्मा का फर्क और परमाणु खतरे का आईना 1947 में ही दिखा दिया था।

शांतिपूर्वक भारत के स्वाधीनता की लड़ाई लड़ना चाहते हैं- गांधी

इसी तरह भारत छोड़ो आंदोलन में 8 अगस्त 1942 अपने भाषण में गाँधी ने कहा था “हम में ताकत और सत्ता प्राप्त करने की भूख नही है, हम बस शांतिपूर्वक भारत के स्वाधीनता की लड़ाई लड़ना चाहते हैं। एक सफल कप्तान हमेशा एक सैन्य तख्तापलट और तानाशाही रवैये के लिए जाना जाता है। लेकिन कांग्रेस के योजनाओं के अंतर्गत सिर्फ अहिंसा के लिए स्थान है और तानाशाही के लिए यहां कोई स्थान नही हैं।”

गांधी ने कहा “लोग शायद मुझ पर हंसेंगे पर यह मेरा विश्वास है, कि समय आने पर मुझे अपने जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष करना होगा लेकिन फिर भी मैं किसी के विरुद्ध कोई विद्वेष नही रखूंगा।” ऐसे महात्मा की 30 जनवरी 1948 को हत्या हो जाती है। जबकि उनके चेहरे पर मुस्कान होती है और मुंह में राम नाम। महात्मा गांधी को नमन।

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