बंगाल में महा मुकाबला: कांग्रेस-लेफ्ट के सामने चुनौती, मजबूरी हुआ यह बड़ा फैसला
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और वाम दल पिछड़ते दिखाई दे रहे हैं। अब सियासी वजूद बचाने के लिए दोनों दलों के लिए हाथ मिलाना मजबूरी बन गया है। जिसके चलते कांग्रेस आलाकमान ने वामदलों के साथ गठबंधन को अपनी सहमति दे दी है।
लखनऊ: पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच बढ़ते टकराव ने सियासी तपिश काफी बढ़ा दी है। इन दोनों दलों के बीच जबर्दस्त टकराव के बीच कांग्रेस और वाम दल पिछड़ते दिखाई दे रहे हैं।
सियासी वजूद बचाने के लिए हाथ मिलाना दोनों दलों के लिए मजबूरी बन गया है। यही कारण है कि कांग्रेस आलाकमान ने भी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए वामदलों के साथ गठबंधन को अपनी सहमति दे दी है।
बदल गए हैं राज्य के सियासी हालात
कांग्रेस और वामदलों ने 2016 का विधानसभा चुनाव भी मिलकर लड़ा था और इस चुनाव में कांग्रेस 44 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी मगर अब राज्य के सियासी हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। दोनों दलों के सामने अपना सियासी वजूद बचाए रखने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। सियासी जानकार भी अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा और टीएमसी के बीच ही मुख्य लड़ाई मान रहे हैं।
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शाह के दौरे से चरम पर सियासी तपिश
पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव अगले साल अप्रैल-मई में होना है। इस चुनाव को भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई बना लिया है और भाजपा के दिग्गज नेता लगातार बंगाल में अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हाल में पश्चिम बंगाल के दो दिवसीय दौरे के बाद सूबे की सियासी तपिश चरम पर पहुंच गई है।
इस दौरे के दौरान अमित शाह ने टीएमसी, कांग्रेस और वाम दलों के कई नेताओं को भाजपा में शामिल करने के साथ ही ममता सरकार पर बड़ा हमला बोला। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी लगातार भाजपा को तीखा जवाब देने में जुटी हुई हैं। दोनों दलों के बीच चल रहे आरोप-प्रत्यारोप के दौर से राज्य का सियासी माहौल काफी गरमाया हुआ है।
मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला
ऐसे में कांग्रेस और वामदलों के सामने अपना सियासी वजूद बचाए रखने का संकट खड़ा हो गया है। पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष और लोकसभा में संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने एलान किया है कि कांग्रेस और वाम दल एक बार फिर मिलकर पश्चिम बंगाल का चुनाव लड़ेंगे।
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उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस और वामदलों के गठबंधन को मंजूरी दे दी है। चौधरी ने दावा किया है कि कांग्रेस और वाम दल मिलकर भाजपा और टीएमसी की चुनौतियों से निपटने में पूरी तरह सक्षम है।
उन्होंने यह भी कहा कि किसी को भी हमें कमजोर आंकने की भूल नहीं करनी चाहिए और चुनाव नतीजों से साफ हो जाएगा कि कौन कितने पानी में है।
सियासी वनवास झेल रहे कांग्रेस और वामदल
कांग्रेस 1977 के चुनाव में सत्ता से बेदखल होने के बाद आज तक सत्ता में वापसी नहीं कर सकी है। वामदलों का 1977 से पश्चिम बंगाल में लंबा राज चला है, लेकिन पिछले 10 सालों से वामदल भी राज्य में वनवास झेल रहे हैं। ऐसे में भाजपा और टीएमसी के बीच सिमटते चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में कांग्रेस और वामदलों ने हाथ मिलाने का फैसला किया है।
अपना सियासी वजूद बचाने के लिए दोनों के सामने मिलकर चुनाव लड़ने की बड़ी मजबूरी खड़ी हो गई है। हालांकिङ सियासी जानकारों का मानना है कि दोनों के हाथ मिलाने पर भी मुख्य लड़ाई में भाजपा और टीएमसी ही दिखाई दे रहे हैं।
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मिलकर लड़ा था पिछला विधानसभा चुनाव
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने पिछला विधानसभा चुनाव भी लेफ्ट के साथ मिलकर लड़ा था। हाथ मिलाने के बावजूद दोनों दल ममता बनर्जी के लिए कोई खास चुनौती नहीं खड़ी कर सके थे
ममता बनर्जी ने आसानी से लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव जीत लिया था। हालांकि कांग्रेस को वामदलों से हाथ मिलाने का इतना फायदा जरूर हुआ कि पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी 44 सीटें जीतने में कामयाब रही।
पिछले विधानसभा चुनाव में सीपीएम को 26 और लेफ्ट के बाकी घटक दलों को कुछ सीटों पर विजय हासिल हो सकी थी। सबसे बुरी हालत तो भाजपा की हुई थी और उसे महज तीन सीटों पर विजय हासिल हो सकी थी।
पांच साल में काफी मजबूत हुई भाजपा
पिछले विधानसभा चुनाव के बाद राज्य के सियासी हालात काफी बदल चुके हैं। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने वाले तमाम विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है और अब पार्टी के पास फिलहाल 30 विधायक ही बचे हैं जबकि भाजपा विधायकों की संख्या बढ़कर 16 हो गई है।
पिछले पांच वर्षों के दौरान भाजपा ने सियासी तौर पर काफी मजबूती हासिल कर ली है और उसने कांग्रेस और लेफ्ट को पीछे छोड़ते हुए टीएमसी के लिए भी बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
ममता के निशाने पर सिर्फ भाजपा
यही कारण है कि हाल के दिनों में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निशाने पर कांग्रेस और लेफ्ट दल नहीं होते बल्कि वे लगातार भाजपा पर सियासी हमला करने में जुटी हुई हैं। इससे समझा जा सकता है कि ममता की नजर में भी उनके लिए चुनौती कांग्रेस और लेफ्ट नहीं बल्कि भाजपा ही है।
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भाजपा के प्रदर्शन में लगातार सुधार
राज्य में भाजपा की बढ़ती ताकत को पिछले लोकसभा चुनाव से भी समझा जा सकता है जब भाजपा 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। भाजपा को करीब 40 फ़ीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस को महज 2 सीटों पर विजय हासिल हुई थी और उसे 5.67 फ़ीसदी वोट मिले थे।
गत लोकसभा चुनाव में वाम दलों का प्रदर्शन तो काफी खराब रहा था और 6.34 फ़ीसदी वोट पाने के बावजूद वामदल एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सके थे। इससे साफ है कि गत विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और लेफ्ट दोनों को ही पार्टियों का ग्राफ डाउन हुआ है जबकि भाजपा लगातार मजबूत बनकर उभरी है।
हाथ मिलाकर भी मुख्य लड़ाई में आना मुश्किल
सियासी जानकारों का मानना है कि कांग्रेस और वामदलों ने काफी सोच समझकर हाथ मिलाने का फैसला किया है क्योंकि उन्हें पता है कि इस विधानसभा चुनाव में अगर वे अपनी ताकत दिखाने में कामयाब नहीं हो सके तो बंगाल पर उनकी सियासी पकड़ और कमजोर हो जाएगी। हालांकि दोनों दल मिलकर भी पिछले विधानसभा चुनाव में टीएमसी को विजय पाने से नहीं रोक सके थे मगर अपना वजूद बचाने के लिए दोनों दलों ने एक बार फिर हाथ मिलाने का फैसला किया है।
माना जा रहा है कि हाथ मिलाने से दोनों दलों को कुछ सीटों पर फायदा तो जरूर हो सकता है मगर अभी भी असली लड़ाई भाजपा और तृणमूल कांग्रेस में ही दिख रही है।
रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी
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