महाभारत के डायलॉग लिखने के लिए ऐसे राजी हुए थे रज़ा, जमकर हुआ था विरोध

रचना के लगभग हर क्षेत्र में डॉ. राही मासूम रज़ा ने बेशुमार शोहरत हासिल की। उपन्यास से लेकर काव्य तक और गजल से लेकर फिल्म संवाद तक उनका हस्तक्षेप देखने को मिलता है।

Update: 2021-03-15 08:46 GMT
महाभारत के डायलॉग लिखने के लिए ऐसे राजी हुए थे रज़ा, जमकर हुआ था विरोध

लखनऊ: राही मासूम रज़ा के बारे में कौन नहीं जानता। एक उर्दू और हिंदी कवि व लेखक और बॉलीवुड Lyricist के तौर पर पहचान बनाने वाले रज़ा का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में हुआ था। एक अगस्त, 1927 को जन्मे 11 साल की उम्र में उन्हें टीबी हो गई। हालांकि उन दिनों इस बीमारी का इलाज नहीं हुआ करता था। ऐसे में उन्होंने इसका शोक मनाने की बजाय घर में रखी सारी किताबों को पढ़ डाला।

हर क्षेत्र में हासिल की शोहरत

बाद में रज़ा की बीमारी भी ठीक हो गई। रचना के लगभग हर क्षेत्र में डॉ. राही मासूम रज़ा ने बेशुमार शोहरत हासिल की। उपन्यास से लेकर काव्य तक और गजल से लेकर फिल्म संवाद तक उनका हस्तक्षेप देखने को मिलता है। रजा ने टीवी सीरियल महाभारत (TV serial Mahabharat) के डायलॉग्स लिखकर सभी के घरों से लेकर दिल में आसानी से दस्तक दे दी।

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'महाभारत' से जुड़ा ये यादगार किस्सा

अब जब महाभारत की बात हो रही है तो इससे जुड़ा एक किस्सा है, जो कि बेहद मशहूर है। तो चलिए आज हम आपको उस किस्से से रूबरू करवाते हैं। दरअसल, जब शुरू में बीआर चोपड़ा ने रज़ा को महाभारत के लिए डायलॉग लिखने का प्रस्ताव दिया, तो उन्होंने समय की कमी का हवाला देते हुए चोपड़ा की गुज़ारिश ठुकरा दी थी। अब ये बात किसी तरह समाचार पत्रों में छप गई।

ऐसे मानें रज़ा

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब बीआर चोपड़ा ने इस बात की घोषणा की कि राही महाभारत के संवाद लिखेंगे तो हिंदू धर्म के स्वयंभू संरक्षकों ने इसका जमकर विरोध किया। उन्होंने चोपड़ा को पत्र पर पत्र भेजने शुरू कर दिए, जिनमें लिखा था कि क्या सभी हिंदू मर गए हैं, जो एक मुसलमान से महाभारत लिखवाई जा रही है। जिसके बाद चोपड़ा ने इन सभी पत्र को रज़ा को भेज दिए।

अब ये रज़ा की कमजोर नस थी। पत्र मिलने के बाद रज़ा ने चोपड़ा को फोन किया और कहा कि 'चोपड़ा साहब! महाभारत अब मैं ही लिखूंगा। मैं गंगा का बेटा हूं। मुझसे ज्यादा हिंदुस्तान की संस्कृति और सभ्यता को कौन जानता है?

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कट्टरपंथियों से छत्तीस का आंकड़ा

आपको बता दें कि रज़ा का कट्टरपंथियों से छत्तीस का आंकड़ा था। इसे लेकर उनकी एक मशहूर नज्म भी है-

उनकी एक मशहूर नज़्म है -

'मेरा नाम मुसलमानों जैसा है

क़त्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो

लेकिन मेरी रग-रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है

मेरे लहू से चुल्लू भर महादेव के मुंह पर फेंको

और उस योगी से कह दो—महादेव

अब इस गंगा को वापस ले लो

यह ज़लील तुर्कों के बदन में गाढ़ा गरम

लहू बन कर दौड़ रही है।'

रजा खुद को गंगा का पुत्र कहा करते थे। वो कहते थें कि 'मैं तीन माओं का बेटा हूं। नफीसा बेगम, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी और गंगा। नफीसा बेगम मर चुकी हैं और अब साफ याद नहीं आतीं। बाकी दोनों माताएं है और याद भी हैं।

वसीयत

अपनी नज्म वसीयत में रज़ा लिखते हैं कि-

मेरा फ़न तो मर गया यारों

मैं नीला पड़ गया यारों

मुझे ले जा के ग़ाज़ीपुर की गंगा की गोदी में सुला देना

अगर शायद वतन से दूर मौत आए

तो मेरी ये वसीयत है

अगर उस शहर में छोटी सी एक नद्दी भी बहती हो

तो मुझको

उसकी गोद में सुला कर

उससे कह देना

कि गंगा का बेटा आज से तेरे हवाले है।'

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