‘विवादित’ है EU का कश्मीर दौरा! जानिए भारत ने इसे क्यों रखा अनौपचारिक

मोदी सरकार अगर कश्मीर की ओर अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींचना चाहती थी और अगर सरकार मानती है कि कश्मीर में हालात सामान्य हैं तो उनको पहले देश की संसद के प्रतिनिधियों को कश्मीर भेजना चाहिए था, ताकि वह वहां की स्थिति का जायजा ले सकें।

Update: 2019-10-31 09:03 GMT

नई दिल्ली: अनौपचारिक जम्मू-कश्मीर दौरे पर यूरोपीय संसद (EU) का प्रतिनिधिमंडल कुछ दिन पहले आया था। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के बाद से ये पहला मौका था जब वहां किसी विदेशी प्रतिनिधिमंडल को जाने का मौका मिला हो। मोदी सरकार को इस दौरे से काफी उम्मीदें थीं।

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दरअसल मोदी सरकार को लगा था कि यूरोपीय संसद के प्रतिनिधिमंडल के दौरे की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घाटी को लेकर स्थिति साफ होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहीं, सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा हुआ कि आखिर EU के कश्मीर दौरे को भारत ने अनौपचारिक क्यों रखा? इसके अलावा मोदी सरकार के सिर एक नया बवाल भी आया। EU के कश्मीर दौरे पर ये भी सवाल उठे कि जब विदेशी कश्मीर जा सकते हैं तो भारत के विपक्ष नेता क्यों नहीं?

EU से चाहिए अनौपचारिक प्रशंसा?

इसपर यूरोपीय संसद के प्रतिनिधिमंडल का जवाब भी आया। प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार (30 अक्टूबर) दौरे के बाद कहा कि भारत सरकार ये सुनना चाहती है कि आर्टिकल 370 भारत का आंतरिक मामला है और किसी की दखलंदाजी सही नहीं जाएगी। इसके साथ, प्रतिनिधिमंडल ने ये भी कहा कि भारत सरकार ये सुनना चाहती है कि EU आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़ा है।

 

भारत सरकार को यूरोपीय संघ का झटका

वहीं, यूरोपीय संघ के सांसद निकोलस फेस्ट ने भी जम्मू-कश्मीर दौरे को लेकर कहा कि घाटी आने से भारतीय संसद के विपक्ष के नेताओं को रोका नहीं जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि अगर आप विदेशी नेताओं को जाने दे सकते हैं तो भारत के विपक्षी राजनेताओं को भी जाने दे सकते हैं। निकोलस फेस्ट ने भारत सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया। उन्होंने भारत सरकार को सलाह दी कि उनको इसका समाधान निकालना चाहिए।

कहने को था अनौपचारिक दौरा

मोदी सरकार द्वारा इस दौरे को अनौपचारिक करार दिया गया था। हालांकि, ये बिल्कुल भी अनौपचारिक नहीं थी। इस दौरे को लेकर कहा गया कि एक इंटरनेशनल बिजनेस ब्रोकर ने इस ट्रिप की व्यवस्था कारवाई थी। यह इंटरनेशनल बिजनेस ब्रोकर एक महिला है, जिनका कथित बयान है कि इस ट्रिप के लिए उन्होंने NSA अजीत डोभाल के साथ उच्चस्तरीय ब्रीफिंग की थी।

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इसके अलावा पीएम मोदी, विदेश मंत्री और सेना के आलाकमान के साथ यह बैठक की गयी थी। वैसे ऐसी अनौपचारिक यात्राओं के लिए इस तरह की उच्चस्तरीय बैठक कभी नहीं की जाती है। ऐसे में विपक्ष और अन्य लोगों का कहना है कि EU का कश्मीर दौरा सिर्फ कहने को अनौपचारिक दौरा था। अब यह दौरा कितना अनौपचारिक था, इसके बारे में सिर्फ मोदी सरकार जानती है।

जानिए सरकार का ‘अनौपचारिक कारण’

सूत्रों का कहना है कि मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थिति साफ करनी चाही। मोदी सरकार को उम्मीद थी कि घाटी को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह साफ हो जाएगा कि कश्मीर भारत का अंग है और इसमें उसे किसी के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। हालांकि, यह मोदी सरकार पर उल्टा पड़ गया। अब मोदी सरकार की ये उम्मीद बेकार हो गई क्योंकि EU के कश्मीर दौरे को लेकर भारत में ही विवाद हो गया है।

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यही नहीं, अब तो यूरोपीय संघ के सांसद भी भारत सरकार का विरोध कर रहे हैं। वहीं, भारत सरकार का इस दौरे को अनौपचारिक रखने का कारण ये था कि वह पाकिस्तान और PoK से अंतरराष्ट्रीय ध्यान हटाना चाहता था। दरअसल आर्टिकल 370 हटने के बाद से पाकिस्तान लगातार इस मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर उछाल रहा है।

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साथ ही, वह लगातार सीमा पर सीजफायर उल्लंघन भी कर रहा है। ऐसे में भारत ने पाकिस्तान की कूटनीतिक प्लेबुक से बाहर ले जाने के लिए ये कदम उठाया और इसे अनौपचारिक दौरा घोषित किया। इसके अलावा पाकिस्तान लगातार कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय नेताओं की सोच को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है।

कश्मीर में औपचारिक दौरे का होता फायदा

अनौपचारिक दौरे ने भारत सरकार को छूट दी कि वह यूरोपीय संघ में से अपने विचार से मेल खाते सांसदों को कश्मीर आने का न्योता दें। ऐसे में मोदी सरकार को लगा था कि यह सांसद सरकार के पक्ष में अपना बयान देंगे। इस औपचारिक दौरे के साथ सरकार के लिए ये कहना भी आसान हो गया कि यूरोपीय संसद के सदस्य (MEP) व्यक्तिगत यात्रा पर थे।

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हालांकि, अगर ये दौरा औपचारिक होता तो हो सकता था कि यूरोपीय संसद के सदस्य (MEP) वापस जाकर भारत का पक्ष रखते और कश्मीर की स्थिति को स्पष्ट करते। सूत्रों का कहना है कि मोदी सरकार अगर कश्मीर की ओर अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींचना चाहती थी और अगर सरकार मानती है कि कश्मीर में हालात सामान्य हैं तो उनको पहले देश की संसद के प्रतिनिधियों को कश्मीर भेजना चाहिए था, ताकि वह वहां की स्थिति का जायजा ले सकें। इसके बाद अगर विदेशी नेताओं को बुलाया जाता तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक असर पड़ता।

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