SC: अयोध्या जमीन के मालिकाना हक का मामला भावनात्मक नहीं

Update: 2018-02-08 09:16 GMT
अयोध्या मामला: सुन्नी वक्फ बोर्ड-निर्मोही अखाड़े की याचिका पर सुनवाई जारी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की स्पेशल बेंच ने गुरुवार (8 फरवरी) से अयोध्या मामले की सुनवाई शुरू की। इसके साथ ही चीफ जस्टिस ने सभी पक्षकारों से कहा, कि अदालत के लिए ये जमीन के मालिकाना हक का मामला है, लिहाजा कोई भी भावनात्मक टिप्पणी नहीं होनी चाहिए।' सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि अब इस मामले की अगली सुनवाई 14 मार्च को होगी।

करीब 45 मिनट तक चली सुनवाई में अदालत ने पूछा, कि किस पक्षकार की ओर से कौन से दस्तावेज जमा किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अब इस मामले में अन्य किसी पक्षकार को नहीं जोड़ा जाएगा।

चीफ जस्टिस के साथ बेंच में ये

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा बेंच में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर हैं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि पहले इस मामले की प्रमुख याचिका पर पूरी सुनवाई की जाएगी। कोर्ट ने कहा है कि पहले मुख्य याचिकाकर्ता की सुनवाई होगी, उसके बाद अन्य याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी।

दस्तावेज़ का अनुवाद पूरा नहीं हुआ है

इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता रामलला, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से एज़ाज मकबूल ने कोर्ट में कहा कि अभी दस्तावेज़ का अनुवाद पूरा नहीं हुआ है, जिन्हें सुनवाई के दौरान कोर्ट में पेश किया जाना है। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा है कि अभी 10 किताबें और दो वीडियो कोर्ट के सामने पेश किए जाने हैं। 42 हिस्सों में अनुवादित दस्तावेज कोर्ट में जमा किए जा चुके हैं।

विवाद करीब 164 साल पुराना

उल्लेखनीय है कि देश की सियासत को झकझोर देने वाला यह विवाद करीब 164 साल पुराना है। सुप्रीम कोर्ट केस से जुड़े अलग-अलग भाषाओं के अनुवाद किए गए 9,000 पन्नों को देखेगा। इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में हैं, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेजों को अनुवाद कराने की मांग की थी।

विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाए

अयोध्या मामले में मालिकाना विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में तमाम पक्षकारों की ओर से विशेष अनुमति याचिका दायर की हुई है। अयोध्या के विवादास्पद ढांचे को लेकर हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 में फैसला दिया था। फैसले में कहा गया था, कि विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाए जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए, जबकि बाकी का एक तिहाई जमीन का हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।

हाईकोर्ट के फैसले के बाद तमाम पक्षों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई जो सात साल से लंबित है। मामले में मुख्य पक्षकार हिंदू महासभा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड सहित 16 पक्षकार हैं। अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। वहीं, दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी। इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी।

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