मोदी सरकार के सामने बड़ी चुनौती, लोकसभा चुनाव से पहले क्या ठीक हो पाएगा ये संकट?
लखनऊ: 2019 लोकसभा चुनाव पास आ रहे हैं। ऐसे में मोदी सरकार अब चुनावी साल में प्रवेश कर चुकी है। मगर जहां एक और केंद्र की मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों के तमगे पहनकर जनता के सामने आना चाहती है तो वहीं रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट सामने आई है, जोकि सरकार के लिए संकट के दस्तक दे रही है।
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दरअसल, देश में बैंकिंग सेक्टर के हालात ठीक नहीं हैं बल्कि स्थिति लगातार अब और बिगड़ती जा रही है। आरबीआई द्वारा जारी इस ताजा रिपोर्ट के अनुसार, आने वाला समय बैंकिंग सेक्टर के लिए और भी बुरा हो सकता है। रिपोर्ट को देखने पर पता चल रहा है कि अगले छह से नौ महीने भारत में बैंकिंग सेक्टर के लिए अच्छे नहीं होने वाले हैं।
बैंकिंग सेक्टर को होने वाला है नुकसान
बैंकिंग सेक्टर की हालत बिगड़ने से न सिर्फ सरकारी बैंकों को नुकसान होने वाला है बल्कि प्राइवेट बैंकों पर भी इसका असर बुरा पड़ने वाला है। इन शॉर्ट, पूरा बैंकिंग सेक्टर इसकी चपेट में आ सकता है। अगर ऐसा है तो ये वाकई मोदी सरकार के लिए चिंताजनक बात है। बता दें, बैंकिंग सेक्टर के लिए पिछला वित्त वर्ष बेहद खराब था।
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ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले साल सभी बैंकों को कुल 87,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। इसके अलावा पिछले साल सिर्फ दो ही सरकारी बैंक नेट प्रॉफिट के साथ साल को खत्म कर पाए। यही नहीं, प्राइवेट बैंकों का भी ऐसा ही हाल है। अगर स्थिति इस तरह ही रही तो आने वाले समय में हालत और बदतर होगी।
एनपीए की वजह से हुआ ऐसा
वहीं, नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी एनपीए की वजह से शेयर बाजार पर लिस्टेड कुल 38 बैंकों की ऐसी हालत हो गई है कि अब बैंकों पर गंदा कर्ज यानी बैड लोन भी 10 लाख करोड़ रुपये से पार पहुंच गया है। साथ ही, रिजर्व बैंक की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी और निजी बैंकों की कमाई के हिसाब से आने वाली दो-तीन तिमाही बेहद खराब रह सकती हैं।
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यही नहीं, आरबीआई ने ये भी दावा किया है कि बैंकों का मुनाफा घटने के अलावा उनकी संपत्ति पर खतरा बढ़ सकता है जिसके चलते देश में एनपीए का आंकड़ा नया रिकॉर्ड छू सकता है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही तो अगले साल मार्च तक एनपीए 12।2 फीसदी तक पहुंच जाएगा, जोकि पिछले फाइनेंशियल इयर से 11।6% से ज्यादा होगा।
इस तरह 2019 लोकसभा चुनाव से पहले ही मोदी सरकार के लिए ये एक बड़ी चुनौती है क्योंकि अब सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि क्या मोदी सरकार इससे निपटने में सक्षम है और अगर है तो कौन-कौन से तरीकों की मदद से इस स्थिति से बाहर निकला जाएगा।