जब तक हिंदुस्तान रहेगा : 'अटल' राष्ट्रप्रेम के गीतकार वाजपेयी

Update:2018-08-16 17:18 IST

लखनऊ :धूल और धुएँ की बस्ती में पले एक साधारण अध्यापक के पुत्र अटल बिहारी वाजपेयी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री बने। उनका जन्म 25 दिसंबर 1925 को हुआ। अपनी प्रतिभा, नेतृत्व क्षमता और लोकप्रियता के कारण वे चार दशकों से भी अधिक समय तक सांसद रहे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की संकल्पशक्ति, श्रीकृष्ण की राजनीतिक कुशलता और आचार्य चाणक्य की निश्चयात्मक बुद्धि के धनी अटल ने जीवन का क्षण-क्षण और शरीर का कण-कण राष्ट्रसेवा के यज्ञ में अर्पित कर दिया। उनका तो उद्घोष ही था- हम जिएँगे तो देश के लिए, मरेंगे तो देश के लिए। इस पावन धरती का कंकर-कंकर शंकर है, बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है। भारत के लिए हँसते-हँसते प्राण न्योछावर करने में गौरव और गर्व का अनुभव करूँगा।

यह भी पढ़ें ......IN PICS: यहां पढ़ें पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के 10 मशहूर कोट्स

प्रधानमंत्री रहते हुए अटलजी ने पोखरण में परमाणु-परीक्षण करके संसार को भारत की शक्ति का एहसास करा दिया। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने वाले तथा उसे पराजित करने वाले भारतीय सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए अटल जी अग्रिम चौकी तक गए थे। उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था- 'वीर जवानो! हमें आपकी वीरता पर गर्व है। आप भारत माता के सच्चे सपूत हैं। पूरा देश आपके साथ है। हर भारतीय आपका आभारी है।’ अटल जी के भाषणों का ऐसा जादू था कि लोग उन्हें सुनते ही रहना चाहते थे। उनके व्याख्यानों की प्रशंसा संसद में उनके विरोधी भी करते थे। उनके अकाट्य तर्कों का सभी लोहा मानते रहे। उनकी वाणी सदैव विवेक और संयम का ध्यान रखती रही। बारीक से बारीक बात वे हँसी की फुलझड़ियों के बीच कह देने के लिए जाने जाते रहे हैं। उनकी कविता उनके भाषणों में छन-छनकर आती रही। अटलजी का कवि रूप भी शिखर को स्पर्श करता है। 1939 से लेकर अद्यावधि उनकी रचनाएँ अपनी ताजगी के साथ सामग्री परोसती आ रही है। उनका कवि युगानुकूल काव्य-रचना करता रहा। वे एक साथ छंदकार, गीतकार, छंदमुक्त रचनाकार तथा व्यंग्यकार हैं। यद्यपि उनकी कविताओं का प्रधान स्वर राष्ट्रप्रेम का है तथापि उन्होंने सामाजिक तथा वैचारिक विषयों पर भी रचनाएं की हैं। प्रकृति की छबीली छटा पर तो वे ऐसा मुग्ध होते हैं कि सुध-बुध खो बैठते हैं। हिदी के वरिष्ठ समीक्षकों ने भी उनकी विचार-प्रधान नई कविताओं की सराहना की है।

जन्म, बाल्यकाल और शिक्षा

उत्तर प्रदेश के आगरा में सुप्रसिद्ध प्राचीन तीर्थस्थान बटेश्वर में एक वैदिक-सनातन धर्मावलंबी कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार रहता था। श्रीमद्भगवतगीता और रामायण इस परिवार की मणियां थीं। अटलजी के बाबा पं. श्यामलाल जी बटेश्वर में ही जीवनपर्यंत रहे कितु अपने पुत्र कृष्ण बिहारी को ग्वालियर में बसने की सलाह दी। ग्वालियर में अटलजी के पिता पं. कृष्ण बिहारी जी अध्यापक बने। अध्यापन के साथ-साथ वे काव्य रचना भी करते थे। उनकी कविताओं में राष्ट्रप्रेम के स्वर भरे रहते थे। 'सोते हुए सिह के मुख में हिरण कहीं घुस जाते' प्रसिद्ध पंक्ति उन्हीं की है। वे उन दिनों ग्वालियर के प्रख्यात कवि थे। अपने अध्यापक जीवन में उन्नति करते-करते वे प्रिंसिपल और विद्यालय-निरीक्षक के सम्मानित पद पर पहुंच गए। ग्वालियर राजदरबार में भी उनका मान-सम्मान था, अटलजी की माताजी का नाम श्रीमती कृष्णा देवी था।

ग्वालियर में शिंदे की छावनी में 25 दिसंबर 1925 को ब्रह्ममुहूर्त में अटलजी का जन्म हुआ था। पं. कृष्ण बिहारी के चार पुत्र अवध बिहारी, सदा बिहारी, प्रेम बिहारी, अटलबिहारी तथा तीन पुत्रियां विमला, कमला, उर्मिला हुईं।

परिवार का विशुद्ध भारतीय वातावरण अटलजी की रग-रग में बचपन से ही रचने-बसने लगा। वे आर्यकुमार सभा के सक्रिय कार्यकर्ता थे। परिवार 'संघ' के प्रति विशेष निष्ठावान था। परिणामत: अटलजी का झुकाव भी उसी ओर हुआ और वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बन गए। वंशानुक्रम और वातावरण दोनों ने अटलजी को बाल्यावस्था से ही प्रखर राष्ट्रभक्त बना दिया। अध्ययन के प्रति उनमें बचपन से ही प्रगाढ़ रुचि रही।

अटलजी की बी.ए. तक की शिक्षा ग्वालियर में ही हुई। वहां के विक्टोरिया कॉलेज (आज लक्ष्मीबाई कॉलेज) से उन्होंने उच्च श्रेणी में बी.ए. उत्तीर्ण किया। वे विक्टोरिया कॉलेज के छात्र संघ के मंत्री और उपाध्यक्ष भी रहे। वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में सदैव भाग लेते थे। ग्वालियर से आप उत्तरप्रदेश की व्यावसायिक नगरी कानपुर के प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र डी.ए.वी.कॉलेज आए। राजनीतिशास्त्र से प्रथम श्रेणी में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। एलएलबी की पढ़ाई को बीच में ही विराम देकर संघ के काम में लग गए।

यह भी पढ़ें ......जब अटल बिहारी वाजपेयी को पिलाई गई मसालेदार ठंडई

पिता-पुत्र ने की कानपुर में कानून की पढ़ाई साथ-साथ

अटलजी और उनके पिता दोनों ने कानून की पढ़ाई में एक साथ प्रवेश लिया। हुआ यह कि जब अटलजी कानून पढ़ने डी.ए.वी.कॅलेज, कानपुर आना चाहते थे तो उनके पिताजी ने कहा- मैं भी तुम्हारे साथ कानून की पढ़ाई शुरू करूँगा। वे तब राजकीय सेवा से निवृत्त हो चुके थे। इसके बाद पिता-पुत्र दोनों साथ-साथ कानपुर आए। उन दिनों कॉलेज के प्राचार्य श्रीयुत कालका प्रसाद भटनागर थे। जब ये दोनों लोग उनके पास प्रवेश हेतु पहुंचे तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। दोनों लोगों का प्रवेश एक ही सेक्शन में हो गया। जिस दिन अटलजी कक्षा में न आएं, प्राध्यापक महोदय उनके पिताजी से पूछें - आपके पुत्र कहां हैं? जिस दिन पिताजी कक्षा में न जाएं, उस दिन अटलजी से वही प्रश्न 'आपके पिताजी कहां हैं?' फिर वही ठहाके। छात्रावास में ये पिता-पुत्र दोनों साथ एक ही कमरे में रहते थे। झुंड के झुंड लड़के उन्हें देखने आया करते थे।

प्रथम जेल यात्रा

बचपन से ही अटल जी की सार्वजनिक कार्यों में विशेष रुचि थी। उन दिनों ग्वालियर रियासत दोहरी गुलामी में थी। राजतंत्र के प्रति जनमानस में आक्रोश था। सत्ता के विरुद्ध आंदोलन चलते रहते थे। 1942 में जब गांधी जी ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा दिया तो ग्वालियर भी अगस्त क्रांति की लपटों में आ गया। छात्र वर्ग आंदोलन की अगुवाई कर रहा था। अटलजी तो सबके आगे ही रहते थे। जब आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया तो धर-पकड़ होने लगी। कोतवाल ने जो उनके पिताश्री कृष्ण बिहारी के परिचित थे, बताया कि आपके चिरंजीवी कारागार जाने की तैयारी कर रहे हैं। पिताजी को अटल जी के कारागार की तो चिता नहीं थी, कितु अपनी नौकरी जाने की चिता जरूर थी। इसलिए उन्होंने पुत्र को पैतृक गांव बटेश्वर भेज दिया। वहां भी क्रांति की आग धधक रही थी। अटलजी के बड़े भाई प्रेमबिहारी उन पर नजर रखने के लिए साथ भेजे गए थे। अटलजी पुलिस की लपेट में आ गए। उस समय वे नाबालिग थे। इसलिए उन्हें आगरा जेल की बच्चा-बैरक में रखा गया। चौबीस दिनों की अपनी इस प्रथम जेलयात्रा के संस्मरण वे अक्सर हंस-हंसकर सुनाया करते थे ।

मैं जनसंघ को नहीं जानता

बात 1957 की है। दूसरी लोकसभा में भारतीय जन संघ के सिर्फ़ चार सांसद थे। इन सांसदों का परिचय तत्कालीन राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन से कराया गया। तब राष्ट्रपति ने हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि वे किसी भारतीय जन संघ नाम की पार्टी को नहीं जानते। अटल बिहारी वाजपेयी उन चार सांसदों में से एक थे। अटल जी ने प्रधानमंत्री रहते हुए एक अवसर पर कहा था- आज भारतीय जनता पार्टी के सबसे ज़्यादा सांसद हैं और शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने भाजपा का नाम न सुना हो। शायद यह बात सच हो। लेकिन यह भी सच है कि भारतीय जन संघ से भारतीय जनता पार्टी और सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफ़र में अटल बिहारी वाजपेयी ने कई पड़ाव तय किए हैं। इस शताब्दी के पहले दशक तक यह मान्यता रही कि नेहरू-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में उन चुनिदा नेताओं में शामिल होगा जिन्होंने सिर्फ़ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते पर सरकार बनाई। हालांकि इतिहास हमेशा से अपने को दोहराता आया है। आज नरेंद्र मोदी के बारे में यही बात बढ़-चढ़ कर की जाने लगी है।

यह भी पढ़ें ......आखिर क्यों अटल ने कहा- राजीव गांधी की वजह से जिंदा हूं

पत्रकारिता

एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए वाजपेयी जी के लिए शुरुआती सफ़र ज़रा भी आसान न था। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे अटल जी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया

(अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई। उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया ।

राजनीति के पड़ाव

1951 में वे भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य थे। अपनी कुशल वक्तृत्व शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया। वैसे लखनऊ में एक लोकसभा उप चुनाव में वे हार गए थे। 1957 में जन संघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों- लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से जीतकर वे दूसरी लोकसभा में पहुंचे। यह अगले पांच दशकों के उनके संसदीय करियर की यह शुरुआत थी। 1968 से 1973 तक वे भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे। विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिदी में भाषण दिया जिसे उन्होंने अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण माना है। 1980 में वे बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे और 1986 तक इसके अध्यक्ष रहे और इस दौरान वे बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे ।

सांसद से प्रधानमंत्री

अटल बिहारी वाजपेयी कुल नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए । दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक, बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति रही। ख़ासतौर से 1984 में जब वे ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिधिया के हाथों पराजित हो गए थे । 1962 से 1967 और 1986 में वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे । 16 मई 1996 को वे पहली बार प्रधानमंत्री बने। लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा । इसके बाद 1998 तक वे लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे । 1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। लेकिन एआईएडीएमके द्बारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए।

1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली । अटल मार्च 1998 से मई 2004 तक, छह साल भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी को सांसद के रूप में लगभग चार दशक का अनुभव प्राप्त है । पहली बार संसद बनने पर जब उन्होंने राजनीतिक सफर की शुरुआत की तो वे पंडित नेहरू से काफ़ी प्रभावित हुए। पंडित नेहरू ने उनके बारे में कहा था कि वे एक प्रतिभावाशाली सांसद हैं जिनके राजनीतिक सफ़र पर नज़र रखनी चाहिए। संसद सदस्य के रूप में लगभग चार दशक के सफ़र में वे पांचवीं, छठी, सातवीं और फिर दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं लोकसभी के सदस्य रहे हैं। जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इंदिरा गांधी सरकार के ख़िलाफ़ जनांदोलन छेड़ा गया तब आपातकाल के दौरान वर्ष 1975 से 1977 के बीच उन्हें जेल जाना पड़ा ।

विदेश नीति का अडिग प्रतिज्ञ

आपातकाल के बाद वे जनता पार्टी के संस्थापक-सदस्यों में से एक बने और मोरारजी देसाई सरकार में दो साल से ज़्यादा समय के लिए देश के विदेश मंत्री बने । जब जनता पार्टी का विभाजन हुआ तो जनसंघ के सदस्यों ने 198० में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। प्रधानमंत्री बनने पर पोखरण में मई 1998 में भारत ने दूसरी बार परमाणु बम धमाके किए तो इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी आलोचना हुई और भारत पर कुछ प्रतिबंध भी लगे लेकिन वाजपेयी ने इन्हें भारत की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी बताया। इसके बाद फ़रवरी 1999 में वाजपेयी ने पड़ोसी देश पाकिस्तान से रिश्ते बेहतर बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल की और बस यात्रा करते हुए अमृतसर से लाहौर पहुंचे। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर उनकी ख़ासी प्रशंसा हुई। लेकिन जब करगिल में पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ हुई तब कड़ा रुख़ अपनाते हुए उन्होंने सैन्य कार्रवाई का आदेश दिया और कई दिन तक चली कार्रवाई में भारतीय सेना घुसपैठियों को खदेड़ दिया।

1999 में वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। ये सरकार पूरी पांच साल चली और ऐसा पहली बार हुआ कि किसी ग़ैर-कांग्रेसी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया हो । वर्ष 2001 में दूसरी बार पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने के मकसद से उन्होंने पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ को आगरा शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया लेकिन इसका नतीज़ा ज़्यादा सकारात्मक नहीं निकल पाया । इसके बाद तीसरी बार मई 2003 में वाजपेयी ने फ़िर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ बातचीत की पेशकश रखी और उसके बाद से भारत-पाकिस्तान रिश्ते काफ़ी बेहतर हुए। वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए चीन से भी संबंध बेहतर बनाने की कोशिश हुई और वे चीन यात्रा पर गए। लेकिन उनके इसी कार्यकाल के दौरान गुजरात में मुसलमानों के ख़िलाफ़ दंगे हुए जिसमें अनेक लोग मारे गए और इस पर वाजपेयी की कड़ी आलोचना भी हुई। अनेक पर्यवेक्षक मानते हैं कि गुजरात जाकर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म का पालन करने की सलाह देने के अलावा, केंद्र सरकार ने उस समय कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभाई ।

वाजपेयी सरकार के प्रमुख कार्य

एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया।

संरचनात्मक ढांचे के लिये कार्यदल, सॉफ्टवेयर विकास के लिये सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिये केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन किया।

राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास, नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम उठाये।

राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं।

आवश्यक उपभोक्ता सामग्रियों की कीमतें नियंत्रित करने के लिये मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया।

उड़ीसा के सर्वाधिक गरीब क्षेत्र के लिये सात सूत्रीय गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया।

आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए अर्बन सीलिग एक्ट समाप्त किया।

ग्रामीण रोजगार सृजन एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिये बीमा योजना शुरू की।

सरकारी खर्चे पर रोजा इफ़्तार शुरू किया।

अटल जी की प्रमुख रचनाएं

मृत्यु या हत्या

अमर बलिदान (लोक सभा में अटल जी के वक्तव्यों का संग्रह)

कैदी कविराय की कुण्डलियां

संसद में तीन दशक

अमर आग है

कुछ लेख: कुछ भाषण

सेक्युलर वाद

राजनीति की रपटीली राहें

इत्यादि।

अटल को मिलने वाले पुरस्कार

1992: पद्म विभूषण

1993: डी. लिट् (कानपुर विश्वविद्यालय)

1994: लोकमान्य तिलक पुरस्कार

1994: श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार

1994: भारत र‘ पंडित गोविद वल्लभ पंत पुरस्कार

अटल के जीवन के कुछ तथ्य

आजीवन अविवाहित रहे।

वे एक ओजस्वी एवं पटु वक्ता (ओरेटर) एवं सिद्ध हिन्दी कवि भी हैं।

परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की संभावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिये साहसी कदम भी उठाये।

वर्ष 1998 में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्बितीय परमाणु परीक्षण किया जिसे अमेरिका की सीआईए को भनक तक नहीं लगने दी।

अटल लम्बे समय तक सांसद रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी के बाद सबसे लम्बे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी। वह पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गठबन्धन सरकार को न केवल स्थायित्व दिया अपितु सफलता पूर्वक संचालित भी किया।

अटल ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था।

लखनऊ से था खास लगाव

अटल जी के संसदीय क्षेत्र लखनऊ में उनके द्बारा लोकार्पित और शिलान्यास की गयी योजनाओं की पड़ताल करने पर जो तथ्य हाथ लगे वह बताते हैं कि तकरीबन 17 करोड़ की लागत से अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ के गोमती नगर में एक नया रेल टर्मिनल बनाने का सपना देखा था।

22 अगस्त 2001 को सांसद निधि के सहारे मेडिकल कालेज के पास एक अत्याधुनिक साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर भी

उन्होंने ही बनवाया। कन्वेंशन सेंटर में , 1400 और 200 सीटों वाला आडिटोरियम का निर्माण होना शिलान्यास के समय इसकी लागत तकरीबन 15 करोड़ रुपये थी। नई रिंग रोड की परिकल्पना की गयी थी। सीतापुर रोड से फैजाबाद रोड तक फोर लेन बनाने की योजना रखी। राज्य की बिजली समस्य से निजात के लिए कूड़े से बिजली बनाने की परियोजना 88 करोड़ रुपये की रखी। एशिया बायो एनर्जी लिमिटेड ने यह परियोजना उनके प्रधानमंत्रित्व काल में ही पूरी कर दी थी। यह बात दूसरी है कि अब 20 दिसंबर 2004 से भरावन खुर्द दुबग्गा में बिजली बनाने के लिए बनाये गये इस संयंत्र में ताला लटक रहा है। इस योजना का उद्घाटन वाजपेयी जी ने 26 नवंबर 1998 को किया था।

गंभीर मरीजों को एक ही छत के नीचे सारी जांचे कराने की सुविधा के लिए वाजपेयी जी ने किंग जार्ज चिकित्सा विवि से जुड़े एक ट्रामा सेंटर की सौगात दी थी। इसका शिलान्यास उन्होंने 12 जनवरी 1999 को किया था। 25 दिसंबर 1999 को लखनऊ में मेडिकल कालेज में एक रैन बसेरा का लोकार्पण किया। पर बाद में रैन बसेरा से शिलान्यास का पत्थर भी हटा लिया गया। उसकी जगह पावर कारपोरेशन का स्पार्ट बिल्डिंग सेंटर बना दिया गया। यह काम भी बसपा-भाजपा गठबंधन सरकार के समय ही हुआ।

अटल गोमती को लखनऊ की जीवन रेखा बताते नहीं थकते थे। वह कहते थे कि गोमती मरी तो शहर मर जाएगा। उन्होंने गोमती के लिए रिवर फ्रंट योजना भी शुरू की थी। 32.5० करोड़ रुपये की योजना का शिलान्यास वाजपेयी ने 21 मई 2003 को किया था।

10 जून 1999 को लखनऊ के दो सौ पार्कों के संुदरीकरण कार्यक्रम का शिलान्यास किया। हालांकि तब जो पार्क विकसित हुए अब वह देखरेख के अभाव में फिर बदहाल हो गये हैं। उनके द्बारा जिस साफ्टवेयर टेक्नालॉज पार्क की नींव रखी गयी थी वह तैयार नहीं हो पाया बल्कि प्रमोटर कंपनी बीच में ही काम छोड़कर भाग गयी।

27 जून 2002 को वाजपेयी जी द्बारा शुरू की गयी परिक्रमा रेल सेवा भी अटल के अरमान पूरे नहीं कर सकी। लखनऊ में पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के नाम पर चल रही दर्जन भर से ज्यादा योजनाएं जो पहले से ही अधर में लटकी थीं, अब ठप होने की स्थिति में आ गयी है।

Tags:    

Similar News