नई दिल्ली : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को यहां समाज में महिलाओं के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि कई मायनों में, महिलाओं की आजादी को व्यापक बनाने में ही देश की आजादी की सार्थकता है। राष्ट्रपति ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा, "आजादी की सार्थकता घरों में माताओं, बहनों और बेटियों के रूप में, तथा घर से बाहर अपने निर्णयों के अनुसार जीवन जीने की उनकी स्वतंत्रता में देखी जा सकती है। उन्हें अपने ढंग से जीने का तथा अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करने का सुरक्षित वातावरण तथा अवसर मिलना ही चाहिए।"
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राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि महिलाएं अपनी क्षमता का उपयोग चाहे घर की प्रगति में करें, या फिर उच्च शिक्षा-संस्थानों में महत्वपूर्ण योगदान देकर करें, उन्हें अपने विकल्प चुनने की पूरी आजादी होनी चाहिए।
कोविंद ने कहा, "एक राष्ट्र और समाज के रूप में हमें यह सुनिश्चित करना है कि महिलाओं को, जीवन में आगे बढ़ने के सभी अधिकार और क्षमताएं सुलभ हों। जब हम, महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे उद्यमों या स्टार्ट-अप के लिए आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराते हैं, करोड़ों घरों में एल.पी.जी. कनेक्शन पहुंचाते हैं और इस प्रकार, महिलाओं का सशक्तीकरण करते हैं, तब हम अपने स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाते हैं।"
कोविंद ने नौजवानों के बारे में कहा, "हमारे नौजवान, भारत की आशाओं और आकांक्षाओं की बुनियाद हैं। हमारे स्वाधीनता संग्राम में युवाओं और वरिष्ठ-जनों, सभी की सक्रिय भागीदारी थी। लेकिन, उस संग्राम में जोश भरने का काम विशेष रूप से युवा वर्ग ने किया था। स्वाधीनता की चाहत में, भले ही उन्होंने अलग-अलग रास्ते चुने हों, लेकिन वे सभी आजाद भारत, बेहतर भारत, तथा समरस भारत के अपने आदशरें और संकल्पों पर अडिग रहे।"
कोविंद ने कहा, "प्यारे देशवासियो, जो कुछ भी मैंने कहा है, क्या वह अब से दस-बीस वर्ष पहले, प्रासंगिक नहीं रहा होगा? कुछ हद तक, निश्चित रूप से यह सब प्रासंगिक रहा होगा। फिर भी, आज हम अपने इतिहास के एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जो अपने आप में बहुत अलग है। आज हम कई ऐसे लक्ष्यों के काफी करीब हैं, जिनके लिए हम वर्षों से प्रयास करते आ रहे हैं। सबके लिए बिजली, खुले में शौच से मुक्ति, सभी बेघरों को घर और अति-निर्धनता को दूर करने के लक्ष्य अब हमारी पहुंच में हैं। आज हम एक निर्णायक दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में, हमें इस बात पर जोर देना है कि हम ध्यान भटकाने वाले मुद्दों में न उलझें, और न ही निर्थक विवादों में पड़कर, अपने लक्ष्यों से हटें।"