लालू रहेंगे जेल के जामाता
वर्षों तक समोसा में आलू की अपरिहार्यता की भांति लालू यादव सत्ता में अपनी अनिवार्यता पर नाज करते थे। फिर दौर पलटा। आलू की जगह लालू फंस गये बालू में। पटना, भोजपुर, वैशाली, जहानाबाद, अरवल और सारन जनपदों के दियारा क्षेत्र में खनन माफिया के संसर्ग में लिप्त हो गये।
झारखण्ड हाईकोर्ट (न्यायमूर्ति अपरेश कुमार सिंह) ने लालू यादव को झटका दिया और सोरेन सरकार को झिड़की लगायी (8 जनवरी 2021)। आरोप था कि दोनों ने गैरकानून हरकतें की हैं। जेल नियमावलि को तोड़कर, बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारागार के कैदी नंबर 3312 लालू प्रसाद यादव (सत्रह साल पुराने चारा—चोरी काण्ड के दोषी) को अतिविशिष्ट व्यक्ति की सुविधायें दीं गयीं। रसोइया, मनपसंद भोजन (मछली, गोश्त, मुर्गा, घी, ताजा भाजी और फल) के अलावा बाहरी होटलों से भी स्वादिष्ट खाना, पत्र—पत्रिकायें,टीवी आदि। कई घंटों तक असीमित मुलाकाती इत्यादि मुहय्या थे। रिम्स (रांची) में कीमती औषधि और चिकित्सा सुविधा दी गयी।
कठोर जेलवास की दौर याद कर मेरा दुख बढ़ गया
बड़ौदा के अपने कठोर जेलवास के दौर की याद कर मेरा दुख कई गुना बढ़ गया, ईष्यावश भी! दस वर्ग फिट की काल कोठरी में, दो तालों तले रातभर बंद, बारह घंटे कैद। नाश्ते में भुने चले और गुड़। दोनों चिड़िया और चीटीं को मैं खिला देता था। कोर्ट की पेशी पर हथकड़ी—बेड़ी में रस्सी से बांधकर चार सिपाही बख्तरबंद गाड़ी में ले जाते थे। क्या नैसर्गिक न्याय था? आरामभोगी एक सजायाफ्ता चोर। पीड़ित मैं विचाराधीन राज्यद्रोही (आपातकाल का)।
ये भी पढ़ें: क्यों मुबई जाकर जरूर देखें उस योद्धा की प्रतिमा
आलू की जगह लालू फंस गये बालू में...
वर्षों तक समोसा में आलू की अपरिहार्यता की भांति लालू यादव सत्ता में अपनी अनिवार्यता पर नाज करते थे। फिर दौर पलटा। आलू की जगह लालू फंस गये बालू में। पटना, भोजपुर, वैशाली, जहानाबाद, अरवल और सारन जनपदों के दियारा क्षेत्र में खनन माफिया के संसर्ग में लिप्त हो गये। सुभाष प्रसाद यादव की कम्पनी में बकायेदारी थी। ढाई सौ करोड़ का मामला था।
जेडीयू सत्ता पर टिकी रही
मगर अतिपीड़ाजनक अनुभव उनका रहा जब बिहार में पुराने साथी, अब शत्रु नीतीश कुमार, तिबारा (9 नवंबर 2009) को मुख्यमंत्री बन गये। लालू के वली अहद तेजस्वी ने (24 अक्टूबर 2020) को शोर शराबे के बीच घोषणा कर दी थी कि 9 नवंबर को उनके कैदी पिताश्री स्वतंत्र गणराज्य के मुक्त नागरिक बनकर जेल से आजाद होंगे। अगले दिन से नीतीश कुमार की विदाई शुरु हो जायेगी। किन्तु बेचारे लालू यादव तो कृष्णजन्म स्थल में ही रहे। चिराग पासवान और असदुद्दीन ओवैसी के बावजूद, जेडीयू सत्ता पर टिकी रही।
चारा काण्ड के कारण लालू यादव के तीन सपने अधूरे ही रह गये थे। उनका ख्याल था कि यदि वे बल्ला संभालते तो भारत के श्रेष्ठतम क्रिकेटर होते। पहला प्यार था खेल। राबड़ी के बाद। हालांकि बैट पा गया पुत्ररत्न तेजस्वी।
लालू को फिल्म अभिनेता बनने की चाहत रही
लालू को फिल्म अभिनेता बनने की चाहत रही। अटल बिहारी वाजपेयी का तंज तो अब कहावत ही बन गयी कि हेमा मालिनी के कपोल जैसी सड़कें बनेंगी, लालू के बिहार की। रेल मंत्री लालू प्रसाद ने बालीवुड में ''ड्रीमगर्ल'' के नाम से मशहूर हेमा मालिनी से फिल्मों में काम भी मांगा था। पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिये संसद भवन में वोट डालने के बाद लालू, हेमा मालिनी और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी एक साथ बाहर निकले थे। लालू ने हेमा मालिनी, भाजपा सांसद, से कहा, ''मैं फिल्मों में काम करना चाहता हूं, मुझे काम दिलाओ।'' इस पर हेमा मालिनी ने कहा ''ठीक है, नकवीजी कहानी लिखते हैं, वह कहानी लिख देंगे और मैं फिल्म बना दूंगी।'' उन्होंने तपाक से कहा, ''पर फिल्म में आप भी एक्टिंग करेंगी।''
यूं केश—सजावट के मशहूर निष्णात जावेद हबीब मानते है कि लालू यादव की हेयर स्टाइल उनपर निखार ले आती है। विश्व हेयरस्टाइल दिवस (30 अप्रैल 2008) पर लालू के केश—विन्यास पर हबीब के ये उद्गार थें।
रेल मंत्री काल में लालू का यादगार काम
अपने रेल मंत्री काल में लालू का यादगार काम था कि भारतीय रेल के खानपान कोच में उन्होंने सिलबट्टा रखवाया। कारण? इस गांव वाले को पता था कि डिब्बा—बंद पीसे हुये मसाले की तुलना में सिलबट्टा पर पीसे मसाले अधिक लजीज़ होते हैं।
विकास हेतु लालू के महान योगदान पर नीतीश ने विधानसभा चुनाव में बड़ी सटीक टिप्पणी की थी। बोले ''महिला कल्याण में लालू यादव ने एक ही भला योगदान किया। राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री नामित कर दिया।'' हालांकि इसके मूलभूत कारण थे। सीबीआई अदालत लालू यादव को जेल भेजने वाली थी। प्रधानमंत्री इन्दर कुमार गुजराल ने लालू से कहा कि त्यागपत्र तो देना ही पड़ेगा। अपने विश्वासपात्र को मुख्यमंत्री बना दें, जो बाद में इस्तीफा दे दे। लालू जानते थे कि सालेद्वय साधु और सुभाष यादव में किसी को बनाया तो वे सवा सेर पड़ेंगे। हटेंगे नहीं। पतिव्रता राबड़ी देवी ही आज्ञाकारिणी रहेंगी।
प्रधानमंत्री मददगार बने क्योंकि लालू ने पंजाब के गुजराल को पटनावासी दिखा दिया था, सांसद बनने हेतु। गुजराल को गुज्जर जाति का पिछड़ा बताया था। इन्दर गुजराल की छवि बड़ी नैतिकता भरी रही। सत्यवादी वाली मगर वे तब मौन ही रहे।
इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स से रहा नाता
लालू यादव का नाता हमारे इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (आईएफडब्ल्यूजे) से भी रहा। उन्होंने मेरे प्रतिनिधि मंडल से वादा किया था कि बिहार के पत्रकारों हेतु दुघर्टना बीमा तथा पेंशन योजना लागू करायेंगे। दो दशकों तक हम आस लगायें रहे। हमारा (आईएफडब्ल्यूजे) प्रतिनिधि अधिवेशन राजगृह (राजगीर) में (18—20 फरवरी 2010) में हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उद्घाटन किया था। विपक्ष से लालू यादव ने 16 फरवरी को बिहार बंद की घोषणा की थी। राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते मुझे सम्मेलन के लिये घोर चिंता लगी थी।
ये भी पढ़ें: बापू ने अफ्रीका से लौटकर देश को एकता सूत्र में बांधा- के. विक्रम राव
इसलिये कि 29 प्रदेशों से हमारे 1680 प्रतिनिधि, विशेषकर गुवाहाटी, कोचीन, अहमदाबाद, गोवा, जम्मू, मैसूर, सिक्किम आदि से बिहार कैसे पहुंच पायेंगे? पटना जंक्शन उतर का सड़क मार्ग से राजगीर आना था। नीतीश कुमार के सचिव रामचन्द्र प्रसाद सिंह, आईएएस, ने वाहनों की सम्यक व्यवस्था की। नीतीश बोले, ''इन यादव दम्पति ने पन्द्रह साल तक लगातार बिहार बंद रखा था। एक दिन और सही।'' मेरी चिंता का निवारण किया। हमें राहत मिली।
और अब अन्त में। एक बार लालू प्रसाद यादव पश्चिमी राजस्थान के दूरवर्ती रेगिस्तानी नगर एहोरा में जैन मुनि हेमेन्द्र जी से आशीर्वाद लेने (7 नवंबर 2003) आये थे। हमारी जोधपुर जिला यूनियन के साथियों से वार्ता में वे बोले थे, ''मैं प्रधानमंत्री बनूंगा, क्योंकि अगली लोकसभा चुनाव में राजग के अटल बिहारी वाजपेयी का सूपड़ा साफ हो जायेगा। ''फील गुड'' एकदम बैड हो जायेगा।'' मगर बात बनी नहीं, सरदार मनमोहन सिंह बाजी ले गये। सोनिया की वे प्रथम पसंद थे। तो अब जेल में लालू की शेष उम्र कटेगी। सजा भी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)