NDA को मूल मुद्दों पर खींचने में जुटा महागठबंधन, तभी हो सकता है सियासी फायदा
महागठबंधन के नेताओं को चुनाव प्रचार की रोज तीखी हो रही जंग में रोजगार और विकास के मूल मुद्दों से बहस को न भटकने देने की सलाह दी गई है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली। बिहार चुनाव में महागठबंधन सियासी बहस को रोजगार और विकास के अपने मूल एजेंडे पर केंद्रित रखने में जुटा हुआ है। पहले चरण के मतदान की तिथि नजदीक आने के साथ ही महागठबंधन के नेताओं का आकलन है कि रोजगार और विकास के मुद्दे पर चुनावी बहस के केंद्रित रहने से उसे ज्यादा सियासी फायदा होता दिख रहा है।
यही कारण है कि महागठबंधन के नेताओं को चुनाव प्रचार की रोज तीखी हो रही जंग में रोजगार और विकास के मूल मुद्दों से बहस को न भटकने देने की सलाह दी गई है। खासतौर से पीएम मोदी के अनुच्छेद 370 और तीन तलाक जैसे मुद्दे उठाने के बाद महागठबंधन ज्यादा सतर्कता बरत रहा है।
दस लाख नौकरियों पर सबसे ज्यादा फोकस
महागठबंधन की ओर से मौजूदा चुनाव में सबसे ज्यादा फोकस दस लाख सरकारी नौकरियों के वादे पर रखा जा रहा है। महागठबंधन के नेताओं का मानना है रोजगार से जुड़ा यह महत्वपूर्ण मुद्दा आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। इसके साथ ही विकास की दौड़ में बिहार के पिछड़ने के मुद्दे पर भी लोगों के बीच व्यापक चर्चा हो रही है।
राजद और कांग्रेस नेताओं को सलाह
इस कारण राजद और कांग्रेस के प्रत्याशियों के साथ ही प्रचार में जुटे सभी नेताओं को अपने चुनावी भाषणों में ऐसी बातों से दूर रहने को कहा गया है जिससे चुनावी बहस इन मूल मुद्दों से भटक जाए।
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महागठबंधन के नेताओं का मानना है कि रोजगार और विकास के मुद्दे का काफी जमीनी असर दिख रहा है और इसी मुद्दे पर बहस केंद्रित रहने से उसे सियासी फायदा हो सकता है।
मोदी की रैलियों के बाद ज्यादा सतर्कता
महागठबंधन के चुनावी रणनीतिकारों का मानना है कि एनडीए के नेता चुनावी बहस की दिशा बदलने की कोशिश में जुटे हुए हैं। उनकी कोशिश है कि राजद और कांग्रेस को रोजगार और विकास के पिच से बाहर ले जाया जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहले चरण में हुई तीन रैलियों के बाद महागठबंधन की ओर से ज्यादा सतर्कता बरती जा रही है। अपनी रैलियों में पीएम मोदी ने अनुच्छेद 370 और तीन तलाक जैसे मुद्दे उठाए। महागठबंधन के नेताओं को यह बात बखूबी पता है कि भाजपा राष्ट्रीय मुद्दे उठाकर चुनाव में भुनाने की कला में काफी माहिर है।
ऐसे में कमजोर हो जाएगी मूल एजेंडे की धार
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा लगातार मोदी के सशक्त नेतृत्व, उनके द्वारा अभी तक किए गए काम, बिहार में डबल इंजन की सरकार बनाने और राज्य की कानून व्यवस्था का मुद्दा उठाने में जुटे हुए हैं। भाजपा की इन कोशिशों के बाद महागठबंधन के नेताओं को इन मुद्दों को लेकर वार पलटवार की जंग से दूर रहने को कहा गया है।
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महागठबंधन के नेताओं का मानना है कि यदि चुनावी बहस को भाजपा अपनी पिच पर ले जाने में कामयाब हो गई तो महागठबंधन के मूल एजेंडे की धार कमजोर पड़ जाएगी।
तेजस्वी का जोर रोजगार और विकास पर
महागठबंधन की चुनावी सभाओं में राजद नेता तेजस्वी यादव का सबसे ज्यादा जोर दस लाख सरकारी नौकरियां देने पर होता है। वे रोजगार न होने के कारण बिहार से लोगों के पलायन के मुद्दे को प्रमुखता से उठाते हैं। इसके साथ ही विकास की दौड़ में बिहार के लगातार पिछड़ते जाने का मुद्दा भी उनके भाषण का प्रमुख तत्व होता है।
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लोगों के बीच वे इस बात को कहने से नहीं चूकते कि पिछले 15 साल से राज्य की सत्ता नीतीश के हाथ में है मगर रोजगार और विकास के मुद्दे पर कुछ भी काम नहीं किया गया। वे यादव और मुस्लिम वर्ग पर अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश के साथ ही दूसरे समुदायों को भी राजद से जोड़ने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
नीतीश दे रहे जंगलराज का हवाला
दूसरी ओर एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोगों के बीच लगातार लालू राज के जंगलराज का हवाला देते हैं। वे लोगों को यह याद दिलाना नहीं भूलते कि लालू राज में शाम ढलने के साथ ही लोग घरों में कैद हो जाया करते थे क्योंकि कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज ही नहीं थी। वे राज्य को ढिबरी और लालटेन युग से बाहर ले जाने का हवाला देते हैं। मालूम हो कि राजद का चुनाव निशान लालटेन ही है।
राजद के चुनावी मुद्दे की हवा निकालने की कोशिश
नीतीश का जोर इन बातों पर होता है कि बिहार में विकास की दौड़ में काफी अच्छी प्रगति की है, लेकिन अभी बहुत कुछ काम करना बाकी है जिसके लिए मुझे एक मौका और मिलना चाहिए।
लोगों के बीच वे यह कहना भी नहीं भूलते कि दस लाख सरकारी नौकरियों का वादा करने वाले लोग इसके लिए पैसा कहां से लाएंगे। अपने इस बयान के जरिए वे राजद के मुख्य चुनावी मुद्दे की हवा निकालने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
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