यूपी में होगा ये खेलः मतदाता की सहानुभूति कैश कराने की तैयारी, मिशन है बड़ा
प्रदेश में रिक्त विधानसभा की सात सीटों के उपचुनाव में सहानुभूति भी एक बड़ा मुद्दा है। इन सीटों में चार सीटों पर सहाानुभूति के सहारे सभी प्रत्याशियों की चुनावी नैया पार हो सकती है।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: प्रदेश में रिक्त विधानसभा की सात सीटों के उपचुनाव में सहानुभूति भी एक बड़ा मुद्दा है। इन सीटों में चार सीटों पर सहाानुभूति के सहारे सभी प्रत्याशियों की चुनावी नैया पार हो सकती है। लेकिन पिछले कुछ सालों से सहानुभूति बटोरने का फार्मूला धीरे धीरे फेल होने लगा है। अब इस बात की कोई गारण्टी नहीं रहती है कि सहानुभूति के सहारे प्रत्याशी की चुनावी नैया पार हो जाए।
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नौगांव सादात ( संगीता चौहान )
भारतीय क्रिकेट टीम में रहकर कई वर्षो तक देश की सेवा करने वाले चेतन चौहान जब नब्बे के दषक में भाजपा म शामिल हुए तो वह पहली बार अमरोहा से सांसद बने। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में नौगांव सादात सीट से विधायक बनकर प्रदेश सरकार में मंत्री बने। कुछ महीनों पहले हुए उनके असमायिक निधन के कारण इस सीट पर अब उपचुनाव हो रहा है जहां पर उनकी पत्नी संगीता चौहान को भाजपा ने अपना प्रत्याषी बनाया है।
बुलन्दशहर (उषा सिरोही)
इस सीट से तीन बार विधायक रहे वीरेन्द्र सिंह सिरोही भाजपा विधायक दल के मुख्य सचेतक भी रहे। पर कुछ महीनों पहले हुए उनके निधन के कारण हो रहे इस सीट के उपचुनाव में उनकी पत्नी ऊषा सिरोही को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है। अब देखना है कि भाजपा केा अपने इस फैसले का कितना लाभ मिल पाता है।
देवरिया सदर (अजय सिंह)
भाजपा विधायक जन्मेजय सिंह के निधन के कारण हो रहे उपचुनाव के पहले उम्मीद थी कि उनके बेटे अजय सिंह को टिकट दिया जाएगा। पर यहां पर अन्य दलों ने जब ब्राम्हण प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा तो भाजपा ने भी अपना ब्राम्हण प्रत्याशी उतार दिया। अब जन्मेजय सिंह के बेटे अजय सिंह निर्दलीय ही चुनाव मैदान में है। उनके चुनाव मैदान में उतरने से भाजपा प्रत्याषी के लिए मुसीबत पैदा हो गयी है।
मल्हनी (लकी यादव)
जौनपुर की मल्हनी सीट से पारसनाथ यादव सात बार विधायक रहने के साथ हर बार सपा सरकार में मंत्री बने। कुछ महीनों पहले उनके निधन के कारण हो रहे उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने सहानुभूति बटोरने के लिए उनके बेटे लकी यादव को चुनाव मैदान में उतारा है। लकी यादव यहां पर बहुत बढिया ढंग से चुनाव लड रहे हैं। वह पहले से भी राजनीति में सक्रिय रहे हैं।
अब यूपी के राजनीतिक इतिहास पर गौर करे तो चुनाव में सहानुभूति लहर का चुनाव पर बडा असर पडता रहा है। इसका सबसे बडा उदाहरण 1984 का लोकसभा चुनाव है जब प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 514 सीटों के चुनाव में 404 सीटे मिली थी। तब से यह फार्मूला राजनीतिक दलों को भाने लगा और जब भी प्रदेश में उपचुनाव हुए तो परिवार के ही किसी सदस्य को उतारा जाता रहा है।
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लेकिन कुछ सालों से इसके उलट परिणाम भी आने लगे हैं। पिछले साल हुए बिजनौर जिले की नूरपुर सीट पर भाजपा विधायक लोकेन्द्र सिंह के निधन से रिक्त हुई सीट पर जब उनकी पत्नी अवनी सिंह को चुनाव मैदान में उतारा गया तो वह चुनाव हार गयी। उनके साथ ही लोकसभा के उपचुनाव में कैराना लोकसभा सीट से भाजपा नेताा हुकुम सिंह की बेटी मृगाका सिंह भी चुनाव हार चुकी हैं।
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