उम्मीद का नया साल, सभी चुनौतियां पार करेंगे हम
तमाम दिक्कतों के बाद भी गुजरे साल में जीने के लिए हमें कुछ सिल्वर लाइन तलाशनी ही होगी। क्योंकि रात चाहे कितनी भी अंधेरी हो, चाहे कितनी भी लम्बी हो एक दिन उसे ढलना ही है। वर्ष 2020 की एक बहुत लंबी काली रात के बाद उम्मीद और उजाले का दौर शुरू हो रहा है।
योगेश मिश्र
यह कयामत का, उदासीनता का, अब तक का सबसे खराब साल। टाइम पत्रिका ने 2020 को अब तक का सबसे खराब कहा है। गुजरे साल के बारे में यही आम धारणा रही। सब ने माना कि दुनिया के किसी कालखंड में, किसी की जिंदगी में ऐसा साल न आये। क्योंकि दुनिया को भय व दहशत में जीना पड़ा। तकरीबन पूरा साल कोरोना वायरस और उससे उपजी चुनौतियों का वर्ष रहा। अभूतपूर्व लॉकडाउन लगाया गया जिसके चलते आर्थिक गतिविधियों का चक्का जाम हो गया। काम धंधे बंद हो गए। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए।
अंधेरी रात ढलनी ही होगी
तमाम दिक्कतों के बाद भी गुजरे साल में जीने के लिए हमें कुछ सिल्वर लाइन तलाशनी ही होगी। क्योंकि रात चाहे कितनी भी अंधेरी हो, चाहे कितनी भी लम्बी हो एक दिन उसे ढलना ही है, यह विश्वास ही हमें रोशनी की किरण दिखाएगा, क्योंकि जीवन में मुश्किलें आती ही हैं, हमें मजबूत बनाने के लिए। हर अंधेरी रात के बाद सवेरा होता है। वर्ष 2020 की एक बहुत लंबी काली रात के बाद उम्मीद और उजाले का दौर शुरू हो रहा है।
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इस लिहाज से देखें तो कह सकते हैं कि 1346 में महामारी ब्लैक डेथ आई थी। पूरी दुनिया में बीस करोड़ लोग मरे थे। यह चार साल तक चली थी। स्पैनिश व पुर्तगाली यात्रियों की वजह से 1520 में अमेरिकी चेचक की वजह से महाद्वीप के 60 फीसदी से अधिक लोग मरे। 1918 में सेना के जवानों से फैले स्पैनिश फ़्लू ने पांच करोड़ लोगों की जान ले ली थी।
एडस ने अब तक 3.2 करोड़ लोगों की जान ले ली है। 1029 से 1933 तक चली मंदी में बेरोजगारी कोरोना काल से भी अधिक रही। 536 ईस्वी में दुनिया के ज़्यादातर लोग 18 महीने तक छायी रहस्यमयी धुंध के चलते आसमान नहीं देख पाये थे। फसल बर्बाद होने के चलते लोग भूखों मरे। यह विपदा आइसलैंड या उत्तरी अमेरिका में हुए ज्वालामुखी विस्फोट की वजह थी।
अच्छा भी बहुत कुछ रहा
पिछले साल राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा। बीस देशों में महिलाएं नेतृत्व कर रही है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर् बताती है कि 2020 में महिलाओं का प्रतिनिधित्व दो गुना हो गया है। कमला हैरिस अमेरिका में उप राष्ट्रपति बन सकीं। कार्बन उत्सर्जन कम हुआ। नासा ने बताया कि चांद पर उम्मीद से ज़्यादा पानी है।
बीते साल, सब लोग अपने अपने परिवार से निकट परिचय पा सके। उनके बीच समय बिताया। घर का खाना लजीज लगा। मोबाइल पर सबसे अधिक समय गुजरा। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2020 में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया। वर्क फ्राम होम, मास्किंग, सोशल डिस्टेंस्सिंग, ऑनलाइन पढ़ाई लाइफ स्टाइल का स्थायी हिस्सा बने। डिजाइनर मास्क बाजार पा गये।
इनका दिखा कमाल
सिनेमाघर, बार, पार्क, मॉल बंद होने की वजह से लोग घरों पर ही टीवी के आगे बैठे। दूरदर्शन पर रामायण, महाभारत आदि पुराने धारावाहिक फिर हिट रहे। सीरियलों के नये एपिसोड नहीं आये। लोगों ने वेब सीरीज देखकर समय बिताया। बड़े पर्दे की फिल्में भी ओटीटी पर रिलीज हुईं। ऑनलाइन शॉपिंग ने मॉल या सामान्य दुकानों से खरीदारी की जगह ली। डिजिटल पेमेंट का दायरा बढ़ा। लोगों ने हाथ धोना सीखा। जिन्दगी में लॉकडाउन, क्वारंटाइन, आइसोलेशन, वायरल लोड, सोशल डिसटेंसिंग, मास्किंग, नाईट कफ्र्यू, फेस शील्ड जैसे कई नये शब्द जुड़े। पाजिटिव शब्द का अब तक का मतलब उलट गया।
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संवेदनाओं पर हमले का साल
यह सबसे निर्मम साल रहा। ऐसा साल जिसने संवेदनाओं और भावों पर संघातिक हमले किये, उन्हें मार डाला या कम से कम अधमरा तो कर ही दिया। पहले मोहल्ले या गांव या इलाके में हुई मौत पर स्वाभाविक रूप से अपनी सामाजिक जिम्मेदारियां समझ कर वहां पहुंच जाने वाले लोग इस साल अपने निकटतम लोगों के अंत्येष्टि या जनाजे में शामिल न होने के लिए कोरोना का कवच ओढ़ते नजर आये। यह मनुष्यता का सबसे पतनशील दृश्य था। प्रार्थना करूंगा कि नया साल मनुष्यता की मृतप्राय देह में समय कुछ संजीवनी बूंदे डाले। हम फिर से इस समाज में रहने का अनुभव करें जिसमें ‘स्व’ से ज्यादा बड़ा ‘सरोकार’ हुआ करता था।
उम्मीद है कि परिवार और पारिवारिक मूल्यों का ककहरा हमें आने वाला साल और सालों साल याद रहेगा। उम्मीद है कि अपनी व्यस्तता का भ्रम, अपनी परेशानियों का भ्रम हम परिवार पर नहीं डालेंगे। अपने बच्चों को कम झिडक़ेंगे, अपने बुजुर्गों को कम भूलेंगे, अपने जीवन के सहयात्री पर कम बिगड़ेंगे।
हमारे जीवन मूल्यों को बदलता रहा यह साल
यह साल बहुत तेजी से हमारे जीवन मूल्यों को बदलता रहा। लोगों से दूर रहना। अपनों से कतराते जाना। किसी मुसीबत को सिर्फ एक ‘खराब सूचना’ से ज्यादा तवज्जो न देना। तकनीकी प्रगति और आधुनिक होते जा रहे हमारे समाज में यह प्रवृत्तियां तो अरसे से दिख रही थीं। लेकिन इस साल इसकी रफ्तार भयावह थी। कोरोना ने इन सब प्रवृत्तियों के लिए आसान से बहाने-वजह गढ़ दीं। कई बार सोचता हूं कि क्या कुछ ताकतें ऐसा करना चाहती थीं?
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आखिरकार ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग’ के लिए ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ शब्द -क्यों इस्तेमाल किया गया। आप कौन सी दूरी बढ़ाना चाहते थे? आप कहते गये, हम करते गये। नये साल में चाहता हूँ कि हमारी डिक्शनरियों से ये मनहूस शब्द निकल जाये। सामाजिक दूरी जानलेवा विचार है। इसे हटना ही चाहिए। पिछले तीस वर्षों में हमारे आसपास की दुनिया में अगर मनोचिकित्सकों की जरूरतें लगातार बढ़ती गयी हैं तो इसके लिए सामाजिक दूरी का यह विचार ही जिम्मेदार है।
पहले हमने अपने घरों के अहाते को चारदीवारी में कैद किया। लम्बे खुले स्वागत करते बरामदों, बालकनियों पर ग्रिल लगाये। कमरों का बंटवारा किया। वो पापा का कमरा, ये बच्चों का, ये अंकल का। फिर सबने मोबाइल पर आंखे गड़ा लीं। यह सरोकार से कटने का चरम था। नये साल! तुम इसे बदल सको तो हम तुम्हारे अहसानमंद होंगे।
चिंता सेहत की
पिछले साल की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक रहा स्वास्थ्य। नये साल में हम अपने स्वास्थ्य के प्रति आशावान हों, हमारी उम्मीद की सेहत और सेहत की उम्मीद दोनों कायम रहे। सिर्फ आशा से काम नहीं चलने वाला हमें सतर्क भी रहना होगा। उम्मीद है कि वैक्सीन के साथ हमारे स्वास्थ्य पर लटकती तलवार को हम हमेशा से लिए खत्म कर सकेंगे। इस साल से उम्मीद है कि समृद्धि शंकाओं को बौना साबित करे। व्यक्तिगत समृद्धि के साथ हमें सामाजिक समृद्धि, राष्ट्रीय समृद्धि का भी ध्यान रहे।
पर्यावरण भी चिंता भी उतनी ही जरूरी
पिछले साल में कुछ दिनों के लिए हमारी गाड़ियां सडक़ों से गायब हुई तो पहाड़ की चोटियां शहरों से दिखने लगीं। कुछ दिन के लिए हमारी चिमनियों के धुएं पर विराम लगा तो हमारा हांफना कम हो गया। कुछ दिन के लिए हमारी बिल्डिंगें बननी बंद हुईं, कारखानों में ताले लगे तो आक्सीजन की खोज कितनी आसान हो गयी है। नदियों का पानी साफ हो गया जिसे साफ करने में हजारों करोड़ रुपये बह चुके हैं। विकास के लिए यह सब जरुरी है। लेकिन पिछले साल ने हमें सिखाया कि विकास यात्रा की गाड़ी सही दिशा चले और विनाश के प्लेटफार्म पर ना पहुंचे ।इसके लिए पर्यावरण भी चिंता भी उतनी ही जरूरी है।
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हमारी चौखट पर वैश्विक बीमारी ने दस्तक दी तो हमारी रक्षा हमारी संस्कृति ने, हमारे रीति रिवाजों, हमारी परंपरा ने की। पीढिय़ों से हमें सिखाया जाता था कि घर पर लौटने के बाद मुंह, हाथ, पैर धोना है फिर घर में प्रवेश करना है। सुबह का काढ़ा और तुलसी, अदरख, हल्दी के गुण भारत के गुणधर्म में रचे बसे हैं।
भारतीय संस्कृति में संध्या आरती में कपूर जलाने, घी के दिए या फिर भारत के ही दूसरे पंथों में लोबान सुलगाने की परंपरा हमेशा से रही है, वैश्विक बीमारी से बचाव इन्हीं चीजों से है ये हमें अहसास हुआ। उम्मीद है कि अगले साल भी हम इस सबक को संजोकर रखेंगे। 2020 ने बहुत से सबक भी सिखा दिए हैं सीमित जरूरतें, आज में जीना, नए स्किल सीखना, ये सब 2021 और उसके भी आगे हमें ज्यादा जोश और उमंग से ले जाएंगे।
सीख ली आत्मनिर्भरता की अहमियत
2020 में हमने आत्मनिर्भरता की कीमत बहुत अच्छे से समझी है। सो नए साल में आत्मनिर्भर बनने के हर जतन करेंगे। खुद के लिए और देश के लिये। अपना हाथ जगन्नाथ वाली बात चरितार्थ करके दिखाएंगे। 2020 में हमने अपनी जरूरतों को कम करके खुशी से जीना सीखा, उसी तरह 2021 और आने वाले सालों में भी रहें।
उम्मीद का दामन कभी मत छोड़ें
सपने टूटते हैं तो उन्हें टूटने दो। उनमें से एक टुकड़ा चुनें और फिर से सपने बुनें। उम्मीद का दामन कभी मत छोड़ें आखिरी साँस तक नहीं। जो उम्मीद की नाव पर सवार होकर निकलेंगे तो साहिल का मिलना तय है। जो हार कर भी कभी नहीं हारा, सफलता उसी के सर चढ़ कर बोलती है। उम्मीद वाले तो प्रतिबंधों में भी अवसरों को ढूँढ निकालते हैं। वे तो पहाड़ों से भी अपनी राह बनाने का हुनर जानते हैं। वे रास्ते तलाशते नहीं रास्ते तराशते हैं।
हर शख्स की है एक ही प्रार्थना
हम सबने हेलन केलर के बारे में सुना पढ़ा है। वह बचपन से ही बधिर और दृष्टिहीन थीं। जिन्हें 3 वर्ष एक शब्द सीखने में लगे। पर बाद में उन्होंने दर्जनों पुस्तकें लिखीं। दो बार उन्होंने हवाई जहाज उड़ाया। विश्व भर में वह मानवता पर वार्ता के लिए बुलाई गईं। उन्होंने दोहरी विकलांगता के बावजूद दुनिया को एक नई दिशा दी। हर शख्स की यह प्रार्थना है कि नया साल अच्छा हो। उम्मीद है कि यह कुबूल होगी।
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