खास दोस्त है भूटान, संजो कर रखना जरूरी
भारत और भूटान के बीच हमेशा परम्परागत रूप से रिश्ते बड़े मधुर रहे हैं और दोनों देशों के बीच एक विशेष संबंध भी है। भारत और चीन के बीच भूटान एक बफर स्टेट है
लखनऊ: भारत के कुछ ही ऐसे मित्र देश हैं जो भारत के हितों को अपने हित के साथ जोड़कर देखते हैं। भूटान भी एक ऐसा ही देश है। लेकिन चीन नेपाल में अपने पैर जमाने के बाद भूटान को अपनी ओर आकर्षित करने का लगातार प्रयास कर रहा है। चूंकि भूटान में संसदीय लोकतंत्र स्थापित हो गया है और बहुदलीय चुनाव प्रणाली भी शुरू हो गई है। सो भूटान के राजनीतिक दल चीन के साथ भी संबंधों को मज़बूत बनाने की पहल कर सकते हैं। जैसा कि नेपाल में हो चुका है। ऐसे में भारत के लिए बहुत जरूरी है कि वह भूटान जैसे देश के साथ अपनी मित्रता को बहुत संजो कर रखे।
चार राज्यों से लगी सीमा
भारत और भूटान के बीच हमेशा परम्परागत रूप से रिश्ते बड़े मधुर रहे हैं और दोनों देशों के बीच एक विशेष संबंध भी है। भारत और चीन के बीच भूटान एक बफर स्टेट है जिससे भारत की 699 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है। भूटान भारत की सुरक्षा के लिये अत्यधिक संवेदनशील है क्योंकि यह पूर्वोत्तर राज्यों को भारत के मुख्य भाग से जोड़ने वाले क्षेत्र सिलीगुड़ी गलियारे के निकट है। भूटान से भारत के चार राज्यों– असम, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और सिक्किम से सीमा लगती है। असम से 267 किमी, अरुणाचल प्रदेश से 217 किमी, पश्चिम बंगाल से 183 किमी और सिक्किम से 32 किलोमीटर सीमा भूटान से लगी हुई है। दोनों देशों के बीच सीमा का रेखांकन 1973 से 1984 के बीच हुआ था।
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दोनों देशों के बीच सीमा का कोई विवाद नहीं है। हालांकि अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों को लेकर असहमति बनी हुई है। भारत ने चीन के अलावा अन्य देशों के साथ व्यापार करने के लिए भूटान को 16 एंट्री और एक्ज़िट पॉइंट्स के इस्तेमाल की अनुमति दी हुई है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण भूटान बहुत लंबे समय तक दुनिया के बाकी हिस्सों से कटा हुआ था। लेकिन अब भूटान ने दुनिया में अपनी जगह बना ली है। हाल के दिनों के दौरान भूटान ने एक खुली-द्वार नीति विकसित की है। दुनिया के कई देशों के साथ राजनीतिक संबंधों को भी इस देश के द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। भूटान के 52 देशों और यूरोपीय संघ के साथ राजनयिक संबंध है।
भारत-भूटान मैत्री संधि
आज़ादी के बाद 1949 में भारत भूटान मैत्री संधि हुई जिसमें दोनों देशों के बीच शांति और एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर सहमति जताई गई थी। लेकिन भूटान इस बात पर भी सहमत हुआ कि भारत उसकी विदेश नीति को गाइड करेगा। और दोनों देश विदेश और रक्षा मामलों पर एक दूसरे से सलाह मशविरा करेंगे। इसके अलावा दोनों देशों में मुक्त व्यापार और प्रत्यपर्ण पर भी समझौता हुआ।
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वैसे तो भारत-भूटान के बीच संबंध काफी प्रगाढ़ रहे लेकिन धीरे धीरे भूटान अपने विदेशी मामलों में स्वतंत्र रुख अख़्तियार करने लगा। तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद भूटान की भारत से नज़दीकियाँ और भी बढ़ीं। 1958 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भूटान गए और भूटान की स्वतन्त्रता को भारत के पूर्ण समर्थन की बात दोहराई। बाद में नेहरू ने संसद में घोषणा की कि भूटान के खिलाफ कोई भी आक्रमण भारत पर आक्रमण माना जाएगा।
2007 की संधि
भारत ने भूटान के संग 1949 में हुई संधि में 2007 में कुछ बदलाव किए और एक नई मैत्री संधि की। नई संधि में भूटान द्वारा अपनी सीमाओं की संप्रभुता के मामले में भारत का मार्गदर्शन लेने का प्रावधान हटा दिया गया था। इसके अलावा हथियारों के इम्पोर्ट में भारत की स्वीकृति लेने की बात भी हटा दी गई। अब सिर्फ भारत के हितों संबंधी मामलों पर ही भूटान भारत की राय लेगा।
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रणनीतिक मुद्दों पर भारत को भूटान का मुखर समर्थन अंतर्राष्ट्रीय मंचों और संयुक्त राष्ट्र में भारत के लिये बड़ा संबल रहा है। इसी प्रकार भूटान का नेतृत्व भारत पर खतरों का विरोध करने में कभी पीछे नहीं रहा है। वर्ष 2003 में उल्फा विद्रोहियों को भूटान से बाहर धकेलने में भूटान के राजा के प्रयासों या हाल ही में डोकलाम पठार पर चीनी सैनिकों के विरुद्ध भारत के रुख के समर्थन से इसकी पुष्टि होती है।
मोदी की पहली विदेश यात्रा
भूटान का भारत के लिए कितना महत्व है ये इसी बात से स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी की पहली विदेश यात्रा भूटान की थी। मोदी ने भूटान में सुप्रीम कोर्ट परिसर का उदघाटन किया था और भूटान को आईटी और डिजिटल सेक्टर में मदद करने का वादा किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भूटान व भारत के बीच में संबंध अधिक मजबूत हुए हैं।
जल विद्युत पर निर्भर अर्थव्यवस्था
भूटान की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से जल विद्युत निर्यात पर निर्भर करती है। सार्क देशों में मालदीव के बाद भूटान की प्रति व्यक्ति आय दूसरे नंबर पर है। भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी भारत ही रहा है। 1961 में भूटान की पहली पंचवर्षीय योजना के बाद से ही भारत लगातार वहां पर वित्तीय निवेश कर रहा है। भारत 1020 मेगावाट की तला हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट, 336 मेगावाट की चुखा जलविद्युत परियोजना, पेंडन सीमेंट प्लांट, पारो हवाई अड्डे, भूटान प्रसारण स्टेशन सहित अनेक परियोजनाओं में प्रमुख रूप से सहयोग कर रहा है।
दोनों देशों के बीच लगभग 9,000 करोड़ रुपये का द्विपक्षीय व्यापार है। भूटान अपने कुल आयात के 80 प्रतिशत से अधिक का आयात भारत से करता है और भूटान के कुल निर्यात का 85 प्रतिशत से अधिक का निर्यात भारत को किया जाता है। भूटान की तीन-चौथाई बिजली भारत को निर्यात की जाती है।
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भारत के लगभग 60 हज़ार लोग भूटान के जलविद्युत तथा विनिर्माण उद्योग में कार्यरत हैं। इसके अलावा 8 हज़ार से 10 हज़ार लोग रोजाना काम के सिलसिले में भूटान आते-जाते हैं। भारत और भूटान के बीच यह निर्णय हुआ है कि इसरो भूटान में एक ग्राउंड स्टेशन का निर्माण करेगा। भारत ने इससे पहले भी भूटान को व्यक्तिगत स्तर पर सार्कसैटेलाइट का लाभ देने का प्रस्ताव किया था।
संबंधों में नई चुनौतियां
भारत व भूटान मजबूत पड़ोसी देश है। भारत हरसंभव अपने पड़ोसी देश की मदद करता है। लेकिन अब भूटान जैसा छोटा देश भी दुनिया में अपनी खुद की पहचान विकसित कर रहा है। भूटान भारत के अधीन रहने वाला देश नहीं है। भूटान धीरे-धीरे भारत पर निर्भरता कम कर रहा है। 1971 में भूटान ने संयुक्त राष्ट्र को जॉइन कर लिया, बांग्लादेश को बतौर राष्ट्र मानिता दे दी और 1972 में एक नया ट्रेड सम्झौता किया जिसके तहत भूटान से अन्य देशों को होने वाले एक्सपोर्ट को एक्सपोर्ट ड्यूटी से मुक्त कर दिया। 1979 में गुट निरपेक्ष आंदोलन के शिखर सम्मेलन में भूटान ने भारत से अलग रुख अपनाया और कंबोडिया के मसले पर चीन और अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ वोटिंग की।
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अब यह बिम्सटेक, विश्व बैंक और आईएमएफ का सदस्य भी बन चुका है। भारत से बहुत अधिक व्यापार परिवहन और पर्यटन को भूटान अपने पर्यावरण के लिये खतरे के रूप में देखता है। बांग्लादेश – भूटान – भारत - नेपाल समूह के बीच एक मोटर वाहन समझौते की भारत की योजना में भूटान ने अड़ंगा लगा रखा है। इसके अलावा भारतीय पर्यटकों पर प्रवेश शुल्क लगाने के भूटानी प्रस्ताव से भी मतभेद की स्थिति उभर सकती है। चीन लगातार कोशिश करता रहा है कि वह भूटान को अपने पाले में खींच ले। इसकी रणनीति के तहत भारत - भूटान मैत्री संबंधों का चीन द्वारा विरोध किया जाता है।
डोकलाम विवाद
भूटान और चीन के बीच डोकलाम एक विवादित क्षेत्र है, भारत का कहना है कि यह क्षेत्र भूटान का है। चीनी सैनिक इस क्षेत्र में अक्सर घुस आते हैं जिससे भारत के रणनीतिक हित प्रभावित होते हैं। डोकलाम में एक स्थान पर सिक्किम, भूटान और तिब्बत की सीमाएँ मिलती हैं। यह त्रिमुहानी ही इस विवाद की जड़ है। भारत का दावा है कि यह बटांग ला क्षेत्र में है जबकि चीन का दावा है कि यह दक्षिण में 6.5 किमी. दूर जिमोचेन में है।
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दोनों के दावे ब्रिटेन और चीन के बीच 1890 में हुई कलकत्ता संधि की व्याख्याओं पर आधारित हैं। 2012 में भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों के बीच हुए समझौते के अनुसार दोनों पक्ष तब तक यथास्थिति बनाए रखेंगे, जब तक उनके प्रतिस्पर्द्धी दावे को तीसरे पक्ष (भूटान) से परामर्श कर सुलझा नहीं लिया जाता।
इतिहास के आईने में
1864 से 1865 तक भूटान से युद्ध चला जिसमें कुछ क्षेत्रीय ताकतवर गुटों के सरदारों ने अपने आपको आज़ाद घोषित कर दिया। ऐसे में ब्रिटिश हुक्मरानों ने वहाँ एक शांति प्रतिनिधिमंडल भेजा और आपस में लड़ रहे गुटों में शांति बहाल करने की कोशिश की लेकिन भूटान ने शांति और मैत्री की संधि ठुकरा दी। इसकी वजह ये थी कि ब्रिटिश शासन ने भूटान का कुछ क्षेत्र हथिया लिया था। अब नतीजा ये हुआ कि ब्रिटेन ने भूटान पर हमला बोल दिया। भूटान के पास कोई नियमित सेना नहीं थी और जो भी सैनिक थे वे मामूली हथियारों से लैस थे। फिर भी उन्होने ब्रिटिश सेनाओं का जम कर मुक़ाबला किया।
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देओथंग में ब्रिटेन को भारी पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन बाद में ब्रिटिश सेनाओं ने देवांगिरि किले पर कब्जा कर जी भर के विध्वंस मचाया। पाँच महीने तक चली डुआर की लड़ाई में भूटान को अंततः भारी नुकसान झेला पड़ा और 11 नवंबर 1865 को सिंचूला की संधि पर हस्ताक्षर हुए जिसमें भूटान ने काफी क्षेत्र ब्रिटिश हुकूमत के हवाले कर दिया और बदले में 50 हजार रुपये की सालाना सबसिडी पाने पर सहमति जताई। ये संधि 1920 तक चली जिसके बाद पुनाखा की संधि हुई जो 1947 तक प्रभावी रही।
नीलमणि लाल