कारगिल युद्ध: वो दिन जो कभी नहीं भूलेगा भारत, सेना ने पाकिस्तान के छुड़ाए थे पसीने

कारगिल युद्ध के 21 साल पूरे हो चुके हैं। साल 1999 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान को युद्ध में हराकर कारगिल में तिरंगा फहराया था।

Update:2020-07-26 13:20 IST
Kargil Vijay Diwas

नई दिल्ली: कारगिल युद्ध के 21 साल पूरे हो चुके हैं। साल 1999 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान को युद्ध में हराकर कारगिल में तिरंगा फहराया था। तब से हर साल इस दिन को कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है। 21 साल पहले पहले 26 जुलाई 1999 को ही भारतीय सेना ने पाकिस्तान को कारगिल की पहाड़ियों से मार भगाया था।

इस जंग में 527 भारतीय जवान हुए थे शहीद

1998 की सर्दियों में ही कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्‍तानी घुसपैठियों ने कब्‍जा कर लिया था। 1999 की गर्मियों की शुरुआत में जब सेना को पता चला तो सेना ने उनके खिलाफ ऑपरेशन विजय चलाया। करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल में लड़ी गई इस जंग में 527 भारतीय जवान शहीद हुए थे और 1363 जवान बुरी तरह घायल हुए थे।

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जान की बाजी लगाते हुए पाकिस्तान सेना से लिया लोहा

कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों ने अपनी जान की बाजी लगाते हुए पाकिस्तान सेना से लोहा लिया था। कारगिल युद्ध भारत के लिए आन-बान और शान की लड़ाई थी। जिसमें हर एक सैनिक ने पाकिस्तान को भारत के सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। पाकिस्तान ये मानने को तैयार ही नहीं था उसके सैनिकों ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया है।

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दुश्मनों को मार भगाना सबसे बड़ी थी चुनौती

वहीं दूसरी ओर हथियारों से लैस पाकिस्तानी सैनिक वहां चौकियां तक बना चुके थे। लेकिन भारतीय सेना भी कहां हार मानने वाली थी। जिन चोटियों पर कब्जा किया हुआ था, वहां से पाकिस्तान के सैनिकों को मार भगाना सेना के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी, लेकिन हौसला ना हारते हुए सेना ने दुश्मनों का डट कर सामना किया।

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कारगिल की चोटी पर तिरंगा

दुश्मनों की तरफ से अंधाधुंध फायरिंग हो रही थी। कई सैनिकों ने इसमें अपनी जान भी गंवा दी। इधर से भारत की तरफ से भी दुश्मनों के खिलाफ जवाबी फायरिंग में कोई कमी नहीं हुई। सेना का हौसला देख पाकिस्तानी फौजियों के हौसले पस्त होने लगे और वो अपने हथियारों को छोड़ भाग खड़े हुए। वहीं अपना मिशन पूरा करने के बाद भारत ने कारगिल की चोटी पर तिरंगा फहराया था।

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युद्ध से पता चल गया कितनी कमजोर है पाकिस्तानी सेना

वहीं कारगिल युद्ध में शामिल हुए जाबांजों का कहना है कि कारगिल युद्ध लड़ने के बाद हमें यह पता चल गया कि पाकिस्तानी सेना बहुत कमजोर है और शायद इसलिए वह सामने से नहीं बल्कि छद्म युद्ध में विश्वास करती है।

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