बड़ी खबरः भाजपा-माया की नजदीकियां, कांग्रेस की सतर्क नजर
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश सचिव चौधरी यशपालसिंह कहते हैं कि राजस्थान में विधानसभा सत्र चल ही नहीं रहा है तो बसपा के व्हिप का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
मेरठ: उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बसपा सुप्रीमो के एक-एक बयान पर नजर रखे हुए है। दरअसल, कांग्रेस का मानना है कि मायावती के हालिया बयानों से संदेश जा रहा है कि वह भाजपा का पक्ष ले रही हैं। चाहे कोरोनाकाल में श्रमिकों की घर वापसी का मुद्दा हो, उनको लाने के लिए प्रियंका गांधी के बस देने का मुद्दा, कानपुर कांड, मध्यप्रदेश में कुछ दिन में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में अकेले सभी 24 सीटों पर चुनाव लड़ना रहा हो।
या फिर हाल ही में राजस्थान में गहलोत सरकार के खिलाफ छह विधायकों को कांग्रेस के खिलाफ वोट देने के लिए व्हिप जारी करने का मामला हो। कांग्रेस की रणनीति मायावती को बीजेपी के साथ खड़ी होने वाली पार्टी के रूप में पेश कर दलितों के साथ ही मुसलमानों को यह समझा कर अपने पाले में लाने की कोशिस रहेगी कि बसपा भाजपा की तरफ झुक रही है।
राजनीतिक मजबूरियां
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश सचिव चौधरी यशपालसिंह कहते हैं कि राजस्थान में विधानसभा सत्र चल ही नहीं रहा है तो बसपा के व्हिप का कोई मतलब नहीं रह जाता है। बसपा के राष्ट्रीय पार्टी होने का संबंध राजस्थान के विधानमंडल की संख्या से नहीं है। ऐसे में बसपा का यह बयान सिर्फ भाजपा को राजनीतिक संदेश देने के लिए दिया गया है कि राजस्थान की लड़ाई में हम आपके साथ खड़े हैं। मायावती की अपनी कुछ राजनीतिक मजबूरियां हैं, जिसकी वजह से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वो कहीं न कहीं अपने आपको कांग्रेस के खिलाफ और भाजपा के साथ खड़ी दिखाना चाहती हैं।
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उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के इस नेता का यह दावा भी है कि उत्तर प्रदेश में जब से कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी ने संभाली है तब से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश जोर पकड़ने लगा है। यही कारण है कि महज सात विधायकों वाली कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल के रूप में अपनी जगह लगातार बनाती जा रही है। यहां बता दें कि कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश में 2022 में पार्टी की सरकार बनवाने की जिम्मेदारी दी है। जिसके बाद से प्रियंका गांधी दिन रात मेहनत कर रही हैं।
पुराना वोट बैंक पाने की कोशिश
कांग्रेस की कोशिश किसी भी तरह अपने पुराने वोट बैंक मुसलमानों, दलितों और ब्राह्मणों को फिर से अपने पाले में लाने की है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में फिर से अपना पैर जमाने के लिए खासकर दलितों को अपने पाले में लाना कांग्रेस बेहद जरुरी समझती है। यही वजह है कि सूबे में कांग्रेस दलित मुद्दों को लेकर योगी सरकार को घेरने से नहीं चूकती है। उत्तर प्रदेश में दलित मतदाता करीब 22 फीसदी हैं। अस्सी के दशक तक कांग्रेस के साथ दलित मतदाता मजबूती के साथ जुड़ा रहा, लेकिन बसपा के उदय के साथ ही ये वोट उससे छिटकता ही गया।
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उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी के हाथों में आने के बाद से वह अपने पुराने दलित वोट बैक को फिर से जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही हैं। चंद्रशेखर से कांग्रेस की निकटता की वजह भी दलित ही हैं। कांग्रेस का मानना है कि दलित युवा फिलहाल चंद्रशेखर से प्रभावित दिख रहे हैं, इसलिए उनको साथ लेकर चलने से पार्टी को सियासी फायदा हो सकता हैं।
22 फीसदी दलित
उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी लगभग 22 फीसदी है। दलितों का यह समाज दो हिस्सों में बंटा है - एक, जाटव जिनकी आबादी करीब 14 फीसदी है और जो मायावती की बिरादरी है। चंद्रशेखर भी जाटव हैं तो मायावती का डरना लाजिमी है। मंडल आंदोलन में दलितों के जाटव वोट वाले हिस्से की राजनीति से बसपा मजबूत बनी है। ठीक वैसे ही जैसे ओबीसी में यादवों के समर्थन से सपा। उत्तर प्रदेश में जाटव समुदाय बसपा का कोर वोटबैंक माना जाता है।
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गैर-जाटव दलित आबादी तकरीबन 8 फीसदी है। इनमें 50-60 जातियां और उप-जातियां हैं और यह वोट विभाजित होता है. हाल के कुछ वर्षों में दलितों का उत्तर प्रदेश में बीएसपी से मोहभंग होता दिखा है। दलितों का एक बड़ा धड़ा अब मायावती के साथ नहीं है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में गैर-जाटव वोट बीजेपी के पाले में खड़ा दिखा है, लेकिन किसी भी पार्टी के साथ स्थिर नहीं रहता है। इस वोट बैंक पर ही कांग्रेस की खास नजर है।
दलित आबादी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक मेरठ में 18.44 फीसदी , सहारनपुर में 21.73 फीसदी, मुजफ्फरनगर में 13.50 फीसदी, बागपत में 10.98 फीसदी, गाजियाबाद में 18.4 फीसदी, गौतमबुद्धनगर में 16.31 फीसदी, बिजनौर में 20.94 फीसदी, बुलंदशहर में 20.21 फीसदी, अलीगढ़ में 21.20 फीसदी, आगरा में 21.78 फीसदी, मुरादाबाद में 15.86 फीसदी, बरेली में 12.65 फीसदी और रामपुर में 13.38 फीसदी दलित आबादी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों के साथ ही मुसलमानों की संख्या भी काफ़ी ज़्यादा है। दलित-मुस्लिम समीकरण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा और मोदी लहर के बावजूद ख़ासा सफल रहा।
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इस इलाक़े मेंपिछले चुनाव में बसपा, सपा, रालोद गठबंधन को लोकसभा में आठ सीटें मिली हैं और कुछ सीटों पर हार-जीत का अंतर बेहद कम रहा। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने 4-4 सीटें जीतने में कामयाब रहीं। इससे पहले 2014 में दलित-मुसलमान गठजोड़ कमजोर पड़ने के कारण ही वेस्ट यूपी समेत पूरे प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को एक भी लोकसभा सीट पर जीत नहीं मिली थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी का एक तरह से सूपड़ा साफ हो गया था।
कांग्रेस से दूरी
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो मायावती ने बहुत पहले ही तय कर लिया है कि कांग्रेस के साथ उन्हें नहीं जाना है। कांशीराम के दौर में बसपा ने कांग्रेस से गठबंधन किया था, उसके बाद से किसी तरह का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर कोई रिश्ता नहीं रखा। इसकी वजह यह है कि बसपा का जो दलित, मुस्लिम, ब्राह्मण वोटबैंक है यह कभी कांग्रेस का हुआ करता था।
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मायावती को डर है कि वो कांग्रेस के साथ जाती हैं या फिर समर्थन में खड़ी होती हैं तो उनका परंपरागत वोटर छिटक जाएगा। वे कांग्रेस से दूरी बनाए रखना चाहती हैं क्योंकि कांग्रेस की नजर दलित और मुस्लिम वोटों पर है। ऐसे में बसपा का पहला संघर्ष भाजपा से नहीं, कांग्रेस से है। यही वजह है कि मायावती किसी मुद्दे पर कांग्रेस की तरफदारी कर यूपी में कांग्रेस को जगह नहीं देना चाहती हैं।
बसपा के वोट में सेंध
कांग्रेस का पूरा जोर बसपा के वोट में सेंध लगाने पर है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं प्रवक्ता हरिकिशन अम्बेडकर कहते हैं कि पार्टी की रणनीति के तहत दलित बहुल इलाकों के साथ हर बूथ पर दलितों की असल स्थिति की जानकारी कर उनसे संपर्क किया जाएगा। उनको कांग्रेस की दलितों के बारे में आगे की सोच, पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों में दलित समुदाय के हित में किए गए काम और आरक्षण पर कांग्रेस की रणनीति के बारे में बताया जाएगा।
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साथ ही, बीजेपी की मौजूदा केंद्र और प्रदेश सरकारों में दलित उपीड़न के बढ़ते मुद्दों, दलितों से जुड़ी योजनाओं के बजट में कटौती, छात्रवृत्ति की बंदी आदि की जानकारी दी जाएगी।
प्रियंका ने डाली कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जान
पार्टी के दूसरे नेताओं की तरह हरिकिशन अम्बेडकर भी मानते हैं कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की लगातार सक्रियता ने पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक कांग्रेस के नेताओं में जान डाल दी है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि 2022 में कांग्रेस बड़ी चुनौती देने वाली पार्टी के रूप में दिखाई पड़ सकती है। प्रियंका लगातार राजनीतिक, संगठन की मजबूती और तैयारी के लिए काफी समय दे रही हैं। प्रियंका का पूरा ध्यान हर रोज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के कमजोर नस दबाने पर रहता है। कांग्रेस महासचिव का दूसरा ध्यान उत्तर प्रदेश कांग्रेस के संगठन को खड़ा करने में लगा है।
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उनकी टीम हर जिले में छात्र ईकाई, युवक कांग्रेस, कांग्रेस जिलाध्यक्ष, मंडल के नेताओं के चयन, उन्हें जिम्मेदारी देने में लगी है। इसके लिए परंपरागत कांग्रेस मतदाताओं के वर्ग को वरीयता दी जा रही है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस का ध्यान अगले 20 साल का संगठन खड़ा करना है, इसलिए युवाओं को अवसर दिया जा रहा है। प्रियंका गांधी जिस तरह उत्तर प्रदेश में विशेषकर दलित मुद्दों को लेकर सक्रिय हैं। इससे दलित समुदाय में एक संदेश तो जा रहा है और इससे मायावती की राजनीतिक चिंता व तकलीफ बढ़ना स्वाभाविक है, लेकिन वोटों में कितना तब्दील होगा यह तो वक्त ही बताएगा।
सुशील कुमार