दारू के लिए गजब की दीवानगी, शौकीनों के साथ ही राज्य सरकारें भी क्यो थीं बेकरार
शराब की बिक्री के लिए राज्य सरकारों की इस बेकरारी का कारण क्या है? इसका जवाब काफी आसान है। राज्य सरकारें शराब की बिक्री के लिए इसलिए बेकरार थीं क्योंकि...
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली। लॉकडाउन के तीसरे चरण में रियासतों के बाद देश के विभिन्न राज्यों में 40 दिनों से बंद चल रही शराब की दुकानों के शटर भी खुल गए हैं। देश के विभिन्न शहरों में दुकानों के बाहर उमड़ी भीड़ इस बात का सबूत है कि लोगों को कितनी बेसब्री से इस दिन का इंतजार था। वैसे दुकानों के खुलने की जितनी बेकरारी शराब के शौकीनों में दिख रही थी, उतनी ही बेकरारी राज्य सरकारों को भी थी। इसका कारण यह है कि शराब पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी राज्य सरकारों की कमाई का बड़ा स्रोत है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह तो लॉकडाउन की कड़ाई के दिनों में भी शराब की दुकानों को खोलने के पक्ष में थे और उन्होंने इस बाबत केंद्र को चिट्ठी तक लिख डाली थी।
पिछले साल हुई ढाई लाख करोड़ की कमाई
सवाल यह उठता है कि शराब की बिक्री के लिए राज्य सरकारों की इस बेकरारी का कारण क्या है? इसका जवाब काफी आसान है। राज्य सरकारें शराब की बिक्री के लिए इसलिए बेकरार थीं क्योंकि शराब पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी राज्य सरकारों की कमाई का अहम स्रोत है। पिछले साल शराब बेचने से राज्य सरकारों से को ढाई लाख करोड़ रुपए का टैक्स हासिल हुआ था।
रोज लग रही थी 700 करोड़ रुपए की चपत
एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान शराब की बिक्री बंद होने से राज्य सरकारों को रोजाना 700 करोड़ रुपए की चपत लग रही थी। यही कारण है कि लॉकडाउन के तीसरे चरण में कुछ रियायतें मिलते ही राज्य सरकारों ने शराब की दुकानों को खोलने का फैसला किया।
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सोशल मीडिया पर उठे सवाल
वैसे राज्य सरकारों के इस फैसले पर सवाल भी उठाए गए क्योंकि लोगों के जीवन से जुड़ी कई जरूरी चीजों की दुकानें अभी भी बंद चल रही हैं। सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर खूब लिखा गया कि आखिर शराब की दुकानों को खोलने की इतनी जल्दी क्यों पड़ी थी? भीड़ से कोरोना का संक्रमण फैलने का भी खतरा है। लेकिन कमाई के आंकड़ों से आसानी से समझा जा सकता है कि राज्य सरकारें शराब की दुकान खोलने के लिए इतना बेकरार क्यों थीं।
कैप्टन अमरिंदर ने लिखी थी केंद्र को चिट्ठी
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह लॉकडाउन के कड़ाई के दिनों में भी शराब की बिक्री करवाने के इच्छुक थे। उन्होंने केंद्र सरकार से इस बाबत इजाजत भी मांगी थी मगर केंद्र सरकार ने उनकी इस मांग को ठुकरा दिया था। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी सरकार को 6200 करोड़ रुपए की कमाई एक्साइज ड्यूटी से होती है। उन्होंने केंद्र सरकार से सवाल किया था कि आखिर मैं इस घाटे की भरपाई कैसे करूंगा?
उनका कहना था कि कोरोना वायरस की वजह से वैसे ही राज्य सरकार की अर्थव्यवस्था की कमर टूट गई है और उसमें इतना बड़ा घाटा कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है। उन्होंने इस बाबत केंद्र सरकार पर हमला भी बोला था कि क्या दिल्ली वाले इस मामले में मेरी मदद करेंगे। वे तो पंजाब को एक रुपया तक नहीं देने वाले।
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इस तरह होती है राज्य सरकारों की कमाई
शराब बिक्री के प्रति राज्य सरकारों की बेकरारी को एक दूसरे तरीके से भी समझा जा सकता है। राज्य सरकारों की कमाई का मुख्य स्रोत स्टेट जीएसटी, लैंड रेवेन्यू, पेट्रोल- डीजल पर लगने वाला वैट व सेल्स टैक्स, शराब पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी और अन्य टैक्स होते हैं। सरकार को होने वाली कमाई में एक्साइज ड्यूटी का एक बड़ा हिस्सा होता है। एक्साइज ड्यूटी सबसे ज्यादा शराब पर ही लगती है और इसका कुछ हिस्सा दूसरी चीजों पर लगता है। पेट्रोल- डीजल और शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। यही कारण है कि राज्य सरकारें समय-समय पर इन दोनों पर टैक्स लगाकर अपना रेवेन्यू बढ़ाने की कोशिश करती हैं।
एक्साइज ड्यूटी भी कमाई का बड़ा स्रोत
पीआरएस इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य सरकारों को सबसे ज्यादा कमाई स्टेट जीएसटी से होती है। इससे औसतन 43 फ़ीसदी का रेवेन्यू आता है। इसके बाद सेल्स और वैट टैक्स से औसतन 30 फ़ीसदी और स्टेट एक्साइज ड्यूटी से करीब 13 फ़ीसदी की कमाई होती है। गाड़ियों और बिजली पर लगने वाला टैक्स भी राज्य सरकारों की कमाई का स्रोत बनता है।
उत्तर प्रदेश में 24 फ़ीसदी तक की कमाई
शराब पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी से राज्य सरकारों को एक से लेकर 24 फ़ीसदी तक की कमाई होती है। मिजोरम और नागालैंड में इससे सबसे कम मात्र एक फीसदी की कमाई होती है जबकि उत्तर प्रदेश और ओड़िसा में सबसे ज्यादा 24 फ़ीसदी की कमाई होती है।
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सिर्फ गुजरात और बिहार में लागू है शराबबंदी
देश में सिर्फ दो ही राज्य ऐसे हैं जहां पूरी तरह से शराबबंदी लागू है। गुजरात 1960 में महाराष्ट्र से अलग होकर नया राज्य बना और वहां पर तभी से शराबबंदी का नियम लागू है। इसलिए गुजरात सरकार को शराब के जरिए कोई कमाई नहीं हो पाती। एक दूसरा और प्रमुख राज्य बिहार है जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2016 से शराबबंदी लागू की हुई है। बिहार में शराब की बड़ी खपत वाला राज्य रहा है और शराबबंदी लागू होने से बिहार की भी उस मद में अब कोई कमाई नहीं हो पा रही। तमाम दबावों के बावजूद नीतीश इस मुद्दे पर नहीं झुके हैं।
शराब से होती हैं इतनी ज्यादा मौतें
भारत में शराब से होने वाली मौतों को आधार बनाकर तमाम सामाजिक संगठनों ने कई अभियान भी चलाए मगर फिर भी शराब पीने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आई। कई राज्यों में तो जहरीली शराब पीने से एक साथ काफी संख्या में लोगों की मौत की घटनाएं हुई हैं। फिर भी शराब के प्रति लोगों की दीवानगी नहीं घट रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में भारत में शराब पीने से 2.64 लाख से ज्यादा मौतें हुई थीं। रिपोर्ट में बताया गया है कि इनमें 140632 जानें लीवर सिरोसिस की वजह से गई थीं जबकि 92000 से ज्यादा लोग सड़क हादसों के शिकार हुए। करीब 31000 लोग कैंसर की वजह से अपनी जान से हाथ धो बैठे। डब्ल्यूएचओ के यह आंकड़े डरावने हैं। फिर भी शराब पीने वाले अपनी मस्ती में किसी प्रकार की कमी नहीं आने देना चाहते।
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दिल्ली में 70 फ़ीसदी टैक्स का भी असर नहीं
शराब के प्रति लोगों की दीवानगी को दिल्ली के उदाहरण से समझा जा सकता है। सोमवार को शराब की दुकानों के खुलते ही बाहर लगी भारी भीड़ और लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाए जाने की वजह से केजरीवाल सरकार ने शराब पर 70 फ़ीसदी का कोरोना टैक्स लगा दिया। इसके बावजूद मंगलवार को भी शराब की दुकानों पर भीड़ कम नहीं हुई। आलम यह था कि कई दुकानों के बाहर सुबह छह बजे से ही लंबी -लंबी लाइनें लग गईं जबकि दुकानें खुलने का समय नौ बजे था। यहां तक कि कुछ लोग तो शराब की दुकानें खुलने पर जश्न मनाते और लोगों पर फूल बरसाते तक दिखे।
अर्थव्यवस्था को दे रहे मजबूती
दिल्ली के चंद्रनगर इलाके में एक व्यक्ति कतार में खड़े लोगों पर फूल बरसाता दिखा। इसका कारण पूछने पर उसने कहा कि आप लोग ही हमारे देश की अर्थव्यवस्था की जान हो। इस समय सरकार के पास पैसा नहीं है और आप लोगों की बदौलत ही देश की अर्थव्यवस्था चलेगी। शराब की एक दुकान पर लाइन में लगे एक शख्स ने कहा कि हमें ज्यादा टैक्स देने में कोई आपत्ति नहीं है। यह तो देश के लिए तरह का दान है मगर दुकानों पर पुलिस और प्रशासन को भी व्यवस्था बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए।
आंध्र ने भी शराब पर ड्यूटी बढ़ाई
दिल्ली सरकार के शराब पर अतिरिक्त टैक्स लगाए जाने के बाद आंध्र प्रदेश की सरकार ने भी उसी दिशा में कदम उठाते हुए शराब पर ड्यूटी बढ़ा दी है। मजे की बात है कि वहां भी शराब पर ड्यूटी बढ़ाए जाने का शराब दुकानों पर उमड़ी भीड़ पर कोई असर नहीं दिखा और लोग पहले की तरह बेफिक्र होकर शराब की खरीदारी करते दिखे। यही नजारा कर्नाटक,उत्तर प्रदेश, बंगाल, उड़ीसा और तेलंगाना सहित कई राज्यों की शराब की दुकानों पर भी दिखा।
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यूपी में एक दिन में सौ करोड़ से ज्यादा की बिक्री
उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में भी रियायत के पहले दिन से ही शराब की दुकानों पर भारी भीड़ उमड़ पड़ी। आबकारी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सोमवार को पहले दिन ही सूबे में 100 करोड़ से ज्यादा की शराब बिकी। शराब की बिक्री करने वाले विक्रेताओं के एसोसिएशन का कहना है कि यह आंकड़ा 200 करोड़ रुपए तक का भी हो सकता है। वैसे आमतौर पर रोजाना बिक्री का औसत आंकड़ा 70-80 करोड़ रुपए होता है।
राजधानी वाले पी गए इतनी ज्यादा शराब
राजधानी लखनऊ में ही एक दिन में 6.3 करोड़ रुपए की शराब बिक गई। देश की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली काशी में सोमवार को एक दिन में 88000 लोगों ने करीब पौने पांच करोड़ रुपए की देसी-अंग्रेजी शराब और बीयर की बोतल खरीद डालीं। यह स्थिति भी तब रही जब हॉटस्पॉट घोषित मोहल्लों में स्थित शराब और बीयर की दुकानें पूरी तरह बंद रहीं। प्रयागराज के एक दुकानदार ने बताया कि लोगों ने दुकान खुलने से काफी पहले ही लाइन लगा ली थी और शाम के समय दुकान बंद होने तक लोग शराब की खरीदारी करने के लिए कतारों में लगे रहे। इस दुकानदार ने बताया कि प्रीमियम ब्रांड की मांग ज्यादा रही और इस ब्रांड की बोतलें कुछ ही समय में खत्म हो गईं।
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कानपुर में भी पहले दिन करीब सवा चार करोड़ की शराब बिकने की खबर है। यहां भी जैसे ही शराब की दुकानों के शटर उठे, खरीदार सारे नियम कानून और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते हुए काउंटर पर उमड़ पड़े। सबसे ज्यादा भीड़ देसी शराब के ठेकों पर दिखी और आलम यह रहा कि दोपहर तक महंगी शराब को छोड़कर ठेकों पर अन्य स्टॉक ही नहीं बचा।
लोग इसलिए जुटाने लगे शराब का स्टॉक
उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में भी शराब की दुकानों के बाहर उमड़ी भीड़ का हाल कमोबेश ऐसा ही रहा। शराब की दुकानों के बाहर जुटे लोग कई-कई दिनों का स्टॉक जुटाते दिखे। उनका कहना था कि ना जाने कब फिर शराब की दुकानों की बंदी का आदेश जारी हो जाए। इसलिए पहले ही स्टॉक जुटा लेना बेहतर होगा।
देसी शराब की खपत पर इसलिए पड़ा असर
आबकारी विभाग के प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि कोई इंडस्ट्री ऐसी होगी जो एक लाख से कम वर्कफोर्स में एक दिन में 100 करोड रुपए का राजस्व पैदा कर दे। उधर लखनऊ निकलस एसोसिएशन के सचिव कन्हैयालाल मौर्य ने कहा कि शहरों में देसी शराब की बिक्री की हिस्सेदारी बहुत कम थी। इसका कारण यह है कि मजदूर वर्ग में ही इसकी अधिकांश खपत है और अधिकांश मजदूर लॉकडाउन के कारण या तो अपने घर जा चुके हैं या उनके पास शराब की खरीदारी करने के लिए पैसा ही नहीं बचा है। उनका अनुमान है कि हो सकता है कि गांव में अधिक बिक्री हुई हो, लेकिन वहां भी पैसे की अड़चन जरूर सामने आ रही होगी।
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