UP Nikay Chunav 2023: क्या अखिलेश यादव का संतकबीरनगर दौरा सपा की गुटबाजी को खत्म कर पाएगा?

UP Nikay Chunav 2023: कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ऐसे नेताओं को भी उनके राजसी ठाठ को देख बड़ा नेता बना दिया जाता है जो ग्राम पंचायत सदस्य का चुनाव भी जीतने के काबिल नही होते हैं।

Update:2023-04-29 14:36 IST
UP Nikay Chunav 2023 Sant Kabir Nagar SP (Photo: Social Media)

UP Nikay Chunav 2023 Sant Kabir Nagar: कबीर की सरजमीं पर समाजवादी पार्टी का अंदाज भी निराला है। कभी जिले की सपा में संघर्षी तेवर से सपाइयों के कद का आंकलन होता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों से सपा में लंबा कुर्ता और लक्जरी गाड़ी ही पार्टी का बड़ा नेता होने का शायद मुख्य पैमाना बन गया है। आम जनमानस के बीच भले ही कोई ग्राफ न हो लेकिन अगर संगठन में पद और चुनाव में टिकट नहीं मिला तो उनका कथित सम्मान ही डोलने लगता है। वर्ष 2012 में पार्टी को मिली सफलता के बाद जिले में सपा के संगठनात्मक ढांचे में कुछ यूं दरार पड़ी कि पार्टी के तथाकथित नेता गुटबाजी में जुट गए।

खुद के गंदे स्वार्थ में कार्यकर्ताओं को भी बांट डाला। पार्टी के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ताओं की माने तो इसके लिए प्रदेश नेतृत्व से लेकर जिला कार्यकारिणी भी जिम्मेदार है। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ऐसे नेताओं को भी उनके राजसी ठाठ को देख बड़ा नेता बना दिया जाता है जो ग्राम पंचायत सदस्य का चुनाव भी जीतने के मोहताज हैं। गुटबाजी के चलते वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के समय से ही टिकट मिलने और कटने का सिलसिला कुछ यूं शुरू हुआ कि आज तक चुनाव कोई भी हो बिना टिकट काटे सपा ने कोई चुनाव लडा ही नही। यही कारण है कि पार्टी को जिला पंचायत अध्यक्ष और सेमरियावां ब्लॉक के प्रमुख की कुर्सी ही हासिल हो सकी।

इसमें भी पार्टी नेताओं की एकजुटता और संघर्ष से अधिक तब के भाजपा के बागी विधायक रहे जय चौबे का मुख्य योगदान रहा था। जय चौबे ने शासन सत्ता के तमाम दबावों को रौंदते हुए एक जुट सपाइयों के साथ मिलकर विपरीत परिस्थितियों के बाद भी बलिराम यादव को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया था। राजनैतिक हलकों में सरगर्मी बढ़ी कि शायद पार्टी के नेता और कार्यकर्ता अपनी गलतियों से सीख लेकर आने वाले चुनावों में एकजुट होकर पार्टी के प्रति निष्ठावान रहेंगे। कार्यकर्ताओं की उम्मीदों पर तुषारापात तब हुआ जब निकाय चुनाव के टिकट मिलने और पर्चा दाखिल होने के बाद फिर टिकट कटने लगे।

टिकट टिकट के खेल में पार्टी की गुटबाजी अधिकृत रूप से सामने आने लगी। समर्पित कार्यकर्ताओं की माने तो निकाय चुनाव में अलग अलग प्रत्याशियों के समर्थन में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा सोशल मीडिया पर की जा रही अपील भविष्य में पार्टी को और गर्त में ले जाने का संदेश दे रही है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि ऐसे हालात के लिए पार्टी का जिले का संगठन जिम्मेदार है या फिर शीर्ष नेतृत्व में ही निर्णय लेने की क्षमता नही रह गई है? सूत्रों की मानें तो पार्टी के हालात देख गुटों से इतर पार्टी के प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं का मोह भंग होने लगा है। आने वाले दिनों में अगर पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं के सामूहिक इस्तीफे का दौर शुरू हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

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